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नए तरह के ग्राहकों का बाजार

१६ जनवरी २०१४

कपड़ा खरीदते समय आप कीमत पर ज्यादा ध्यान देंगे या इस बात पर कि इसके बनाने में किसी का शोषण तो नहीं हुआ? बाजार में 'एथिकल फैशन' के लिए नई जगह बन रही है. क्या है एथिकल फैशन और इसकी क्या खूबी लोगों को लुभा रही है, जानिए.

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तस्वीर: Getty Images

'एथिकल फैशन' यानि मूल्यों को ध्यान में रख कर तैयार किए गए कपड़े. ऐसी कंपनियां बाजार में जगह बनाने लगी हैं जो कपड़ों के उत्पादन में पर्यावरण और मानवाधिकारों को नुकसान न पहुंचाने का भरोसा दिलाती हैं. बर्लिन में इस हफ्ते अंतरराष्ट्रीय फैशन वीक की शुरुआत हुई है तो साथ ही 'एथिकल फैशन शो' भी चल रहा है. फैशन शो के आयोजक ओलाफ श्मिट कहते हैं कि इन कपड़ों के बारे में जागरुकता फैली है और इनके लिए बाजार में अलग जगह बनाने की संभावनाएं भी खुली हैं.

ईमानदार फैशन

दो साल पहले शुरू हुए इस शो में पिछले साल 85 ब्रांड शामिल हुए थे जबकि इस साल ऐसे ब्राडों की संख्या 116 है. यह दिखाता है कि कंपनियां ग्राहकों की दिलचस्पी को समझ रही हैं. श्मिट ने कहा, "यह दिखाता है कि यह विषय ग्राहकों के लिए कितना अहम है." इस फैशन शो में उन कपड़ों को पेश किया जा रहा है जिनमें ऑर्गेनिक कॉटन, ऊन और ऐसी ही अन्य सामग्री का इस्तेमाल हुआ है, जैसे रीसाइकिल किया हुआ चमड़ा या प्लास्टिक. यहां इस बात पर भी जोर दिया जा रहा है कि फैक्ट्री कर्मचारियों का वेतन और उनकी हालत में सुधार हो.

लंदन की मार्केट रिसर्च कंपनी मिंटेल के अुसार ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और स्पेन जैसे देशों में ग्राहक दाम से ज्यादा गुणवत्ता पर ध्यान देते हैं. मिंटेल का कहना है कि दक्षिणी यूरोपीय देशों के लोगों का नैतिक मूल्यों और पर्यावरण सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान है.

दाम नहीं गुणवत्ता अहम

बर्लिन में पुरुषों के परिधान पेश कर रहे युर्ग ब्रैंडली ने कहा, "हम ग्राहकों के पीछे नहीं पड़ना चाहते. हम उन्हें कूल, सामाज और पर्यावरण के दोस्त लगने चाहिए." उनका ब्रांड जर्मनी, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया के बाजार में पुरुषों के लिए टीशर्ट, स्वेटशर्ट और जैकेट जैसे कपड़ों का प्रचार कर रहा है जिनकी कीमत 39 से 149 यूरो यानि साढ़े तीन हजार से लगभग पंद्रह हजार तक है.

इसी तरह बर्लिन की कंपनी कांचा के सहसंस्थापक सेबास्टियान ग्लूशाक लैपटॉप और मोबाइल के ऐसे कवर पेश कर रहे हैं जिनपर किर्गिस्तान के कढ़ाई करने वाले कारीगरों के हस्ताक्षर हैं. उन्होंने कहा, "हम केवल प्रयावरण प्रेमी ग्राहक नहीं चाहते हैं, हम ऐसे ग्राहक चाहते हैं जिन्हें अच्छे डिजाइन की परख हो."

तमाम पर्यावरण और मानवाधिकार संगठनों से आ रहे दबाव के बीच कई बड़ी कंपनियों ने भी इस बारे में गौर करना शुरू कर दिया है. इसमें हेनेस एंड मॉरिट्स और मार्क्स एंड स्पेंसर्स शामिल हैं. वे अनचाहे कपड़ों की रीसाइकलिंग और फैक्ट्रियों में काम करने वाले कर्मचारियों की स्थिति सुधारने की तरफ भी ध्यान दे रहे हैं.

मिंटेल के रीटेल विश्लेषक जॉन मर्सर मानते हैं कि कंपनियों को कपड़ों के लेबल पर इस बात की भी जानकारी देनी चाहिए कि वे कहां से आ रहे हैं. बर्लिन में चल रहे इस फैशन शो में हाथ से बुनी हुई जैकेट पहने मॉडल लेवेकी कहती हैं, "लोग सस्ते दाम चाहते हैं, लेकिन अगर आप उन्हें पैसे खर्चने की सही वजह देंगे तो वे और पैसे चुकाने को भी तैयार हैं."

बड़े ब्रांडों की आलोचना

एशियाई गार्मेंट फैक्ट्रियों में कर्मचारियों की हालत को लेकर दुनिया भर में नैतिकता पर बहस छिड़ी है. पिछले साल बांग्लादेश में राणा प्लाजा गार्मेंट फैक्ट्री में 1,135 लोगों के मारे जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी निंदा हुई. चीन, बांग्लादेश और भारत जैसे कई अन्य एशियाई देशों में कपड़ा फैक्ट्रियों में कर्मचारियों की हालत पर अब दुनिया भर के ग्राहकों का भी ध्यान जा रहा है.

इस बीच बड़े ब्रांडों की भी कड़ी आलोचना हो रही है जो इन फैक्ट्रियों से सस्ते दामों पर कपड़े बनवा रही हैं. हाल में ग्रीनपीस की रिपोर्ट में सामने आया कि कई बड़े ब्रांडों के कपड़ों के उत्पादन में ऐसे हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है जो सेहत को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसे में उन कंपनियों को अपने लिए बाजार में अच्छी संभावनाएं दिख रही हैं जो नैतिकता और कर्मचारियों के अधिकारों से संबंधित तमाम बातों का ध्यान रख कर उत्पादन करने का दावा कर रही हैं.

एसएफ/आईबी (रॉयटर्स)

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