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धूम्रपान नहीं करने वालों में भी सीओपीडी रोग आम

२२ नवम्बर २०१८

दुनिया भर में क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिसीज (सीओपीडी) पांचवां सबसे घातक रोग बन चुका है.

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तस्वीर: Colourbox

विश्व में तीन करोड़ से अधिक जिंदगियों को प्रभावित करने वाले सीओपीडी को हमेशा धूम्रपान करने वालों का रोग माना जाता रहा है लेकिन अब नॉन स्मोकिंग सीओपीडी विकासशील देशों में एक बड़ा मामला बन चुका है.

सीओपीडी 50 वर्ष से अधिक के भारतीयों में मौत का दूसरा अग्रणी कारण है. हाल के अध्ययनों में पता चला है कि ऐसे अन्य अनेक जोखिम कारक हैं, जो धूम्रपान नहीं करने वालों में रोग को उत्प्रेरित करते हैं. दुनिया भर में करीब आधी जनसंख्या बायोमास ईंधन के धुएं के संपर्क में आती है जिसका उपयोग रसोई और हीटिंग के लिए किया जाता है. इसीलिए ग्रामीण इलाकों में बायोमास के संपर्क में आना सीओपीडी का मुख्य कारण है, जिससे सीओपीडी के कारण मृत्यु दर ऊंची है.

नई दिल्ली स्थित मेट्रो हॉस्पिटल एंड हार्ट इंस्टीट्यूट के पल्मनरी क्रिटीकल केयर एंड स्लीप मेडीसिन के कंस्लटेंट डॉक्टर अजमत करीम ने इस बारे में बताया, "विकासशील देशों में सीओपीडी से होने वाली करीब 50 फीसदी मौतें बायोमास के धुएं के कारण होती हैं, जिसमें से 75 फीसदी महिलाएं होती हैं. बायोमास ईंधन जैसे लकड़ी, पशुओं का गोबर, फसल के अवशेष, धूम्रपान करने जितना ही सक्रिय जोखिम पैदा करते हैं. महिलाओं में सीओपीडी के मामलों में करीब तीन गुना बढ़ोतरी देखी गई है."

डॉक्टर करीम के अनुसार, "भारत जैसे देश में रहन सहन का कम स्तर होने के कारण सीओपीडी से कई जानें जाती है. यह अधिकतर घातक होता है क्योंकि हम सही समय पर रोग की पहचान और उसका उपचार नहीं कर सकते. खासकर जब मरीज धूम्रपान नहीं करता है, तो बीमारी का पता लगने में लंबा समय लगता है."

बायोमास ईंधन के अलावा वायु प्रदूषण की मौजूदा स्थिति ने भी शहरी इलाकों में सीओपीडी को चिंता का सबब बना दिया है. वायु प्रदूषण की दृष्टि से दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 10 भारत में हैं. डॉक्टर करीम कहते हैं, "आज हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं, वह विषैली हो गई है. हवा में इन सूक्ष्म कणों की मौजूदगी के साथ हमारे फेफड़ों की क्षमता पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है. शहरी क्षेत्रों में इस रहन सहन की शैली के साथ श्वसन संबंधी रोग चिंता का विषय है."

भारत के ग्रामीण इलाकों के श्वसन संबंधी रोगों से ग्रस्त 300 से अधिक मरीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि अपनी स्थिति के लिए उचित इलाज नहीं लेने वाले और लंबी अवधि तक अकेले ब्रोंकोडायलेटर्स पर रहने वाले 75 प्रतिशत दमाग्रस्त मरीजों में सीओपीडी जैसे लक्षण उभरे. रिसर्च के अनुसार दुनिया भर में खासकर विकासशील देशों में, पुराने और गंभीर दमा के खराब उपचार से सीओपीडी का बोझ बड़े पैमाने पर बढ़ सकता है.

आईएएनएस/आईबी

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