धरती पर इस साल का स्टॉक खत्म
2018 को बीतने में अभी 5 महीने बाकी है, लेकिन क्या आप जानते हैं, हमने इस साल के सारे संसाधन इस्तेमाल कर डाले हैं? ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के अनुसार, सालभर में औसतन इस्तेमाल किए जाने वाले संसाधन हम खत्म कर चुके हैं.
क्या है अर्थ ओवरशूट डे?
हर साल ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क अपने 90 सहयोगी संस्थानों के साथ यह कैलकुलेट करती है कि कितने संसाधन इस्तेमाल हुए हैं और कितने बचे हैं. जिस तारीख को यह मालूम चल जाए कि जरूरत से ज्यादा संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया गया है, उसे अर्थ ओवरशूट डे का नाम दिया जाता है. इस साल यह 1 अगस्त को ही खत्म हो गया.
हमें कितना संसाधन चाहिए?
आज हम इंसानों को पृथ्वी की तुलना में 1.7 गुना संसाधन चाहिए. यह अलग-अलग देशों के तौर-तरीकों पर भी निर्भर करता है. मसलन, अगर सब लोग जर्मनी की तरह रहने लगे तो हमें 3 और पृथ्वी चाहिए. अगर अमेरिकियों का तरीका अपनाया जाए तो 4.9 पृथ्वी के संधाधनों की जरूरत पड़ेगी.
कार्बनडाइऑक्साइड का बढ़ता उत्सर्जन
पर्यावरण को प्रदूषित करने में लकड़ियों और अन्य ईंधन का 60 फीसदी योगदान है. अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ और भारत दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बनडाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं.
जंगलों का सफाया
हर साल दुनियाभर में 33 लाख हेक्टेयर जंगलों का सफाया किया जा रहा है. इससे मिट्टी का कटाव तेज हो चुका है और भू-जल का स्तर नीचे होता जा रहा है. जंगलों के खत्म होने से कार्बनडाइऑक्साइड को सोखना मुश्किल हो गया है.
बढ़ती आबादी
आबादी बढ़ रही है और लोगों का स्थानांतरण भी बढ़ा है. खेती की जमीनों पर अब शहरी विकास किया जा रहा है. आज एक यूरोपीय नागरिक 0.31 हेक्टेयर खेती की जमीन का इस्तेमाल खाने के लिए करता है. दुनिया भर में अगर संसाधनों को बराबर बांटा जाए तो लोगों को औसतन महज 0.2 हेक्टेयर जमीन ही मिलेगी.
पानी की कमी
संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम का अनुमान है कि 2030 तक दुनिया की आधी आबादी को पानी के संकट से जूझना पड़ेगा. भूजल की मात्रा लगातार कम और प्रदूषित होती जा रही है. नदियों, झीलों और तालाबों का पानी इतना जहरीला हो चुका है कि जानवरों के पीने लायक भी नहीं रहा.