धरती को छलनी करने वाली वो मशीन
वो एक दैत्याकार मशीन थी, जो 40,000 लोगों के बराबर काम अकेले करती थी. पर्यावरण प्रेमियों की नजर में वह हमेशा विलेन बनी रही. आखिर कैसी माइनिंग मशीन थी बैगर 288?
सबसे बड़ी खुदाई मशीन
वह धरती पर सबसे बड़ी माइनिंग मशीन थी. उसे जर्मन कंपनी क्रुप ने भूरे कोयले की खुदाई के लिए बनाया. बैगर 288 नाम की इस दैत्याकार मशीन का निर्माण 1978 में किया गया.
विमान से भी दिखाई दे
225 मीटर ऊंची और 96 मीटर लंबी बैगर 288 मशीन का वजन 13,000 टन था. मशीन को डिजायन करने और उसके पार्ट्स बनाने में पांच साल लगे. इसके बाद सभी हिस्सों को जोड़ने में पांच साल और लगे.
अरबों टन कोयला खोदा
जर्मनी के हमबाख जंगल में चली इस मशीन से हर दिन 2,40,000 टन कोयला खोदा जा सकता था. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ये मशीन एक दिन मैं फुटबॉल के पूरे मैदान को 30 मीटर गहरा खोदती थी.
खुदाई की क्षमता
मशीन एक दिन में इतना कोयला खोदती थी कि दस टायर वाले 10,000 डंपर हर दिन भरे जा सकते थे.
धीमी लेकिन विध्वंसक रफ्तार
बैगर 288 को पांच लोग ऑपरेट करते थे. महाकाय मशीन एक घंटे में 100 से 600 मीटर की दूरी ही तय कर पाती थी.
ऊर्जा की प्यासी
यह मशीन बिजली की भूखी भी है. इसके ऑपरेशन में बाहरी स्रोत से 16.56 मेगावॉट बिजली की जरूरत पड़ती थी. इसकी एक दिन की ऊर्जा खपत 160 कारों के बराबर थी.
2001 में अंत
फरवरी 2001 में हमबाख जंगल से इस मशीन को हटा दिया गया. इसके बाद वहां छोटी खुदाई मशीन तैनात की गई.
हटाने पर भी करोड़ों का खर्चा
बैगर 288 के अलग अलग हिस्सों को 22 किलोमीटर दूर पहुंचाने में तीन हफ्ते लगे. मशीन को शिफ्ट करने में करीब डेढ़ करोड़ जर्मन मार्क का खर्च आया और 70 कर्मचारियों की टीम की जरूरत पड़ी.
ऐसी मशीनों की जरूरत नहीं
इंजीनियरिंग का प्रतीक कही जाने वाली ये मशीन प्रकृति प्रेमियों की निगाह में लगातार कांटे की तरह चुभती रही. इस मशीन ने हमबाख जंगल के बड़े इलाके को पूरी तरह उजाड़ सा दिया.