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दोहरे मानदंड झेलते मानवाधिकार

१९ जून २०११

मानव मर्यादा अलंघनीय है, पर अगर सचमुच उसे तोड़ा जाए? विश्व बाजार यदि गरीबी बढ़ाएं? जर्मन मानवाधिकार संस्थान के उप निदेशक मिषाएल विंडफुअर कहते हैं कि बेहतर भविष्य के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून में बढ़ती विषमता दूर करनी होगी.

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तस्वीर: Adam Berry

मानवाधिकारों को बाहुबली सरकार से सुरक्षा के लिए लड़कर हासिल किया गया है और अंततः 1948 में मानवाधिकारों की आम घोषणा की गई. मानवाधिकार ऐसे अत्यंत ताकतवर राज्य व्यवस्थाओं के खिलाफ लोगों की मर्यादा की रक्षा करते हैं जो यातना देती हैं, लोगों को गिरफ्तार करती हैं, गायब कर देती हैं, जन्म, रंग, लिंग या यौन पसंद के नाम पर भेदभाव करती हैं, उन्हें काम नहीं करने देतीं, जमीन खरीदने या कर्ज पाने में भेदभाव करती हैं क्योंकि वे गलत लिंग या गलत समुदाय के हैं.

नागरिक और राजनीतिक मानवाधिकारों की तरह आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मानवाधिकार एक आत्मनिर्भर जिंदगी की लोगों की मांग पर आधारित हैं, दमन और उत्पीड़न, सामाजिक अभाव और जोर जबरदस्ती, बहिष्कार और शोषण से मुक्त. राष्ट्रों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सभी मानवाधिकारों का आदर करने, उनकी सुरक्षा करने और उन्हे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है. इसका मतलब इस बात का ध्यान रखना भी है कि निजी उद्यम और गैर सरकारी तत्व इन अधिकारों का हनन न करें. इसके अलावा अधिकतम उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल कर, खासतौर पर पिछड़े समूहों के अधिकारों की गारंटी भी उनकी जिम्मेदारी है. भूमंडलीकरण के समय में इस बीच ऐसी परिस्थितियों की संख्या बढ़ रही हैं जिनमें यह संभव नहीं हो पाता.

Mosambik Straßenverkäufer informeller Markt
तस्वीर: Ismael Miquidade

बाधा अंतरराष्ट्रीय संधियां

मिसाल के तौर पर अंतरराष्ट्रीय संधियों के जरिए राष्ट्रों को इन अधिकारों पर अमल के लिए आवश्यक कदम उठाने से रोका जा सकता है. यह समस्या इस सवाल से सामने आई कि सरकारें किस हद तक एड्स दवाओं के पैटेंट की अनेदेखी कर सकती है और दवाओं की सस्ती नकल का लाइसेंस दे सकती है. अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा भी सरकारों को मानवाधिकारों पर आधारित राजनीतिक कदम उठाने में बाधा डाली जा सकती है. मसलन विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा संघ ने कर्ज में डूबे विकासशील देशों को खर्च घटाने के लिए वर्षों तक ग्रामीण विकास की संरचना को समाप्त करने और बाजार को खाद्य पदार्थों के आयात के लिए खोलने की सलाह दी. अकसर कर्ज की मंजूरी इस पर निर्भर हुआ करती थी. नतीजतन छोटे किसानों के लिए आय की सुरक्षा मुश्किल होती गई.

बाधा सीधा निवेश

सीधे निवेश वाले फैसलों में निजी उद्यमों का अकसर अधिक प्रभाव होता है. तभी निवेश होता है जब निवेशकों की पसंद वाली शर्तें तय की जाती हैं. व्यवहार में इसका अर्थ होता है कि श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा और जबरी विस्थापन से सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता. खनन उद्यमों के लिए हजारों परिवारों को दूसरी जगह बसाया जाता है. और ऐसा बिना पर्याप्त मुआवजा या समान मूल्य वाली जमीन दिए होता है. अनुचित और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाली काम की परिस्थितियों को ट्रेड यूनियन और प्रभावित लोग आम तौर पर बेहतर नहीं बना पाते क्योंकि अंतरराष्ट्रीय उद्यमों पर शायद ही राष्ट्रीय अदालतों में मुकदमा चलाया जता है. अकसर स्थानीय और क्षेत्रीय सरकारों तथा निगरानी संस्थाओं को रिश्वत के जरिए प्रभावित किया जाता है और वे उद्यमों या खानों में नियमों की अवहेलना की जांच नहीं करते.

Obdachloser Armut Symbolbild
तस्वीर: fotolia

बाधा सरकारी सबसिडी

अपनी जनता के लिए अपने ही देश में बेहतरी के लिए उठाए जाने वाले सरकारी कदमों का भी दूसरे देशों के मानवाधिकारों पर असर पड़ सकता है. यूरोपीय कृषि सब्सिडी या यूरोपीय मछली मारने की नीति ने पश्चिम अफ्रीका में बाजारों और काम तथा जीवन की परिस्थितियों को कितना प्रभावित किया है, इसकी जानकारी विभिन्न गैर सरकारी संगठनों ने पिछले सालों में दी है. सब्सिडी की वजह से सस्ते यूरोपीय मुर्गियों के आयात या यूरोपीय जहाजों द्वारा तटों में मछली मारा जाना आबादी के कुछ हिस्सों में बढ़ती गरीबी और भूखमरी का कारण बना है. यहां पोषण के अधिकार का हनन हुआ है, जिसे पश्चिम अफ्रीका के देशों की सरकारें नहीं रोक सकतीं.

बाधा कमजोर सरकारें

लोगों के लिए स्थिति तब और समस्याजनक हो जाती है जब उनकी राष्ट्रीय सरकारें पंगु होती हैं. यदि स्थानीय सरकार अंतरराष्ट्रीय असर पर नियंत्रण रखने या उन्हें प्रभावित करने के लिए बहुत कमजोर है, तो मानव मर्यादा पर अमल नहीं होता. खासकर गृह युद्ध वाले देशों या विफल राष्ट्रों में खानों या बागानों में मानकों की जिम्मेदारी वहां सक्रिय उद्यमों की होती है. वे अकसर अपने ऑपरेशंस की निगरानी निजी सुरक्षा एजेंसियों से करवाते हैं. मसलन कांगो में महत्वपूर्ण धातुओं का खनन अमानवीय परिस्थितियों में होता है. रिश्वत से प्रभावित सप्लाई चेन के जरिए उनका एक हिस्सा यूरोप पहुंचता है और उनका उपयोग सेलफोन में होता है. ये सब अफ्रीकी महाद्वीप पर मानवाधिकारों पर अमल के लिए मुश्किल विरासत है.

चुनौती भूमंडलीकरण

ये उदाहरण दिखाते हैं कि भूमंडलीकरण के युग में मानवाधिकारों की रक्षा में खाई पैदा हो रही है. उसे तभी भरा जा सकता है जब अंतरराष्ट्रीय कानून के जरिए कर्ताओं को नियमों के दायरे में लाया जा सके, सरकारें जो विदेशों में मानवाधिकारों के हनन के लिए जिम्मेदार हैं, विश्व भर में सक्रिय निजी तत्व और अंतरराष्ट्रीय संगठन. अब तक ऐसा संभव नहीं है, इसलिए मानवाधिकारों के हनन के शिकार अपने अधिकारों के लिए अदालतों में नहीं जा सकते और कोई मुआवजा नहीं पा सकते.

विश्व के हर हिस्से में मानवाधिकार कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ और समाजशास्त्रियों ने इस बीच निजी तत्वों द्वारा भी मानवाधिकारों के पालन और उसकी रक्षा की मांग करनी शुरू कर दी है. गैर सरकारी संगठन अभियान चलाकर मानवाधिकारों के हनन को जनमत के सामने ला रहे हैं और उसे रजिस्टर कर रहे हैं. नाम बताने और शर्मशार करने की इस प्रक्रिया से कपड़ा और खिलौना उद्योग जैसे कई आर्थिक क्षेत्रों में स्वैच्छिक रूप से आचार संहिता तय की गई हैं.

Anti Rassismus Konferenz 2001 in Durban Demonstration
तस्वीर: picture-alliance / dpa

तकाजा राष्ट्रों की अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी का

इसके बावजूद मानवाधिकारों का आदर, उसकी सुरक्षा और पालन पहले की ही तरह इस पर निर्भर है कि गैर सरकारी संगठन, साहसी वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता कितने मामलों का पता लगाते हैं और उन्हें लोगों के सामने लाते हैं. यह समस्या का समाधान नहीं हो सकता. इसी तरह यह भी स्वीकार्य नहीं कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मानवाधिकारों के पालन को स्वैच्छिक बनाया जाए.

मानवाधिकारों में इस तरह की वैश्वीकरण पर आधारित खाईयों को पाटने के लिए राज्यों की अपने क्षेत्रों से बाहर की जिम्मेदारी एजेंडे पर है. सभी देशों की जिम्मेदारी है कि वे कारोबार में और विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में अपना व्यवहार मानवाधिकार सम्मत बनाएं. शरद् 2011 में हॉलैंड के मासट्रिष्ट विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय कानून के विशेषज्ञ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में मानवाधिकारों के अंतरराष्ट्रीय अमल के सिद्धांत तय करना चाहते हैं. यह भूमंडलीकरण की चुनौती पर उनका अंतरराष्ट्रीय कानून आधारित जवाब होगा.

लेख: मिषाएल विंडफुअर, डीआईएमआर, बर्लिन(मझा)

संपादन: ए कुमार