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दुर्लभ होता पीने का पानी

मानसी गोपालकृष्णन१८ मार्च २००९

हम में से कई लोगों को पानी की चिंता नहीं करनी पड़ती, लेकिन कई लोगों के लिए सड़कों पर टैंकर से पानी लेना या कहीं से भी पानी ले आना रोज़मर्रा की बात है. इस्ताम्बूल के विश्व जल फोरम में पानी की गहराती किल्लत पर चिंतन मनन.

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गंदा पानी पीने को मजबूर लोगतस्वीर: AP

पानी. हमारे लिए एक ऐसा संसाधन जिसको लेकर विश्व के सारे देश आने वाली परेशानियों से लड़ने के लिए नई तरक़ीब निकालने की कोशिश कर रहे हैं, इस हफ्ते इस्तान्बुल में शुरु हुई विश्व जल गोष्ठी में. दक्षिण एशिया में ही नहीं, पानी की समस्या आज के अनुमान के मुताबिक दुनिया के समृद्ध देशों के लिए भी एक बड़ी परेशानी बन सकती है.

समृद्ध देशों में भी पानी की कमी का कारण लगभग वही है जैसे विकासशील देशों में. पानी को बरबाद किया जाता है या फिर ज़मीन से इस तरह छेड़-छाड़ की जाती है कि वह पानी सोख नहीं पाती और भूमिगत जल में कमी आ जाती है. नतीजा हमारे सामने है- हम सब पानी की कमी से जूझ रहे हैं.

अमेरिका और यूरोप में हर व्यक्ति सालाना 10 हज़ार घन मीटर पानी इस्तेमाल करता है जब कि सीरिया में प्रति व्यक्ति तौर पर केवल साढ़े चौदह सौ घन मीटर पानी खर्च होता है. भारत और चीन में सालाना केवल 470 घन मीटर पानी का इस्तेमाल होता है. विश्व में प्राकृतिक तौर पर भी पानी का वितरण समान नहीं है.

Welt Wasser Forum in Istanbul Türkei
विश्व जल मंच की इंस्ताम्बूल में बैठक, नेताओं का फोटो सेशनतस्वीर: AP

विश्व जल गोष्ठी के महासचिव प्रोफेसर ओक्ते ताबासारन बताते हैं कि विश्व की ज़्यादातर आबादी के लिए पीने का पानी दुर्गम है, मतलब लगभग 2 अरब लोग. और हर साल कम से कम 20 करोड़ लोग गंदा पानी पीने की वजह से बीमार पड़ते हैं और इनमें से 20 लाख लोग इसी वजह से मर जाते हैं.

पीने का पानी अपने आप में ही बहुत दुर्लभ संसाधन है. पृथ्वी तीन चौथाई पानी से घिरी है लेकिन इसमें से साढ़े 97 प्रतिशत पानी खारा है. बचे उपयोग करने लायक पानी में से 70 प्रतिशत पृथ्वी के उत्तर और दक्षिण ध्रुवों में बर्फ के रूप में जमा हुआ है. बाकी 30 प्रतिशत पृथ्वी के भूतल में समाया हुआ है.

विश्व में बढ़ती आबादी और पानी की प्राकृतिक कमी की वजह से परेशानी बढ़ रही है. और इस्तानबुल में हो रही गोष्ठी की यही कोशिश है कि पानी की कमी के मसले को कैसे सुलझाया जाए.

लेकिन गोष्ठी के खर्चे की भी लोगों ने आलोचना की है और कहा है, कि पौने दो अरब यूरो जो इसके आयोजन में लगाया जा रहा है, समस्या को सुलझाने के बजाय इसे बढ़ा रहा है. गोष्ठी का लक्ष्य भले ही अच्छा हो, लेकिन 20 हज़ार लोगों का स्वागत, उसमें खाना, पीना और मनोरंजक आयोजन- ऐसे माहौल में सादगी की चर्चा करना, कुछ जंच नहीं रहा है.