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दुनिया के भारतीयों के लिए काय पो छे

२२ फ़रवरी २०१३

यूटीवी के सीईओ और 22 फरवरी को भारत में रिलीज होने वाली फिल्म काय पो छे के प्रोड्यूसर सिद्धार्थ रॉय कपूर के साथ डॉयचे वेले हिन्दी की बातचीत के कुछ अंश...

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तस्वीर: DW/A. Mondhe

डॉयचे वेलेः जब आपने ये फिल्म शुरू की थी और अब जब आप इसे देखते हैं, क्या आपकी सारी उम्मीदों पर खरी उतरी है फिल्म?

सिद्धार्थ रॉय कपूरः हमने जैसा सोचा था उससे बहुत बेहतर बनी है. स्क्रिप्ट जब हमने पढ़ी थी बहुत अच्छी लगी लेकिन अब जब हम स्क्रीन पर देखते हैं तो लगता है जो हमने सोचा था उससे बहुत बेहतर बना है. हम इससे ज्यादा मांग ही नहीं सकते थे. अभिषेक इसे बहुत सफलता के साथ स्क्रिप्ट से स्क्रीन तक ले गए हैं.

क्या आपको ऐसा लगता है कि बड़े कलाकारों के साथ फिल्म ज्यादा अच्छी बनती?

हमारी फिल्म इंडस्ट्री में एक बात बहुत अच्छी है. आजकल कि स्टार के साथ और उनके बगैर भी फिल्में बन रही हैं और सफल भी हो रही हैं. मेरा ये मानना है कि यह फिल्म स्टार के बगैर ज्यादा अच्छी बनी है क्योंकि जब आप स्टार लेते हैं तो एक लालच होता है कि स्टार की भूमिका बड़ी होनी चाहिए. क्योंकि स्टार फिल्म में है तो उसका पूरा फायदा उठाना चाहिए. लेकिन इस फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी संवेदनशील है कि अगर एक चरित्र को दूसरे से ज्यादा कर दिया जाए तो फिर स्क्रिप्ट बदल जाएगी. तो मेरा यह मानना है कि यह बेस्ट था कि हम स्टार्स को फिल्म में न लें और फिल्म न्यू कमर्स के साथ बनाएं क्योंकि उनका सेट इमेज नहीं है. तो दर्शक ऐसी स्थिति में कैरेक्टर को देखते हैं स्टार को नहीं. और मैं सोचता हूं कि यह फिल्म ऐसी बनी है क्योंकि हमने स्टार्स को नहीं लिया है.

Regisseur Siddharth Roy Kapur with Abhishek Kapoor
निर्माता सिद्धार्थ रॉय कपूर (बाएं) और निर्देशक अभिषेक कपूरतस्वीर: DW/A. Mondhe

इस फिल्म में गाने पीछे चलते हैं और सिर्फ तीन ही गाने हैं. इसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे

अक्सर ऐसा होता है फिल्मों में कि पांच गानों का एल्बम बनना चाहिए. या फिर नाच गाना होना चाहिए. वो फिल्में भी हम बनाते हैं लेकिन इस फिल्म में ऐसा अगर हम करते तो थोड़ा अजीब लगता. ऐसा लगता कि हम कहानी से बहुत दूर जा रहे हैं. लड़का लड़की के बीच गाना बहुत आर्टिफिशियल लगता. फिल्म के गाने कहानी को आगे ले जाते हैं. इन्हें बहुत अच्छे से अमित त्रिवेदी ने रचा है.

ये फिल्म आपने बर्लिनाले में दिखाई है. फिल्म एकदम देसी लेकिन इस अंतरराष्ट्रीय पटल ये फिल्म अनिवासी भारतीयों के लिए है या वर्ल्ड ऑडियंस के लिए?

देखिए शुरुआती तौर पर तो ये फिल्म भारतीयों के लिए है. कहीं भी रहने वाले भारतीय भूकंप और 2001 के दंगों से खुद को जोड़ सकते हैं. उसे समझ सकते हैं. लेकिन फिल्म दोस्ती के बारे में है और दोस्ती एक ऐसी चीज है जो यूनिवर्सल है. मुझे लगता है कि फिल्म की ये भावना ट्रांसलेट होगी.

इंटरव्यूः आभा मोंढे

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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