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दर दर भटकते रोमा पहुंचे जर्मनी

२४ सितम्बर २०१२

उनका पीछा किया जाता है, उन्हें किनारे पर रखा जाता है. इतना ही नहीं, कई देशों में उनके साथ भेदभाव भी होता है. बेहतर जिंदगी की तलाश में रोमा समुदाय के कई लोग जर्मनी आते हैं, लेकिन कुछ ही को रहने की अनुमति मिलती है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

वह अपने देश में नहीं रहना चाहते. इस साल अगस्त में सर्बिया से 930 और मसेडोनिया से करीब 1,000 लोगों ने जर्मनी में शरण मांगी. जर्मनी के आव्रजन और शरणार्थी विभाग बीएएमएफ के मुताबिक यह जुलाई के आंकड़ों से चार गुना ज्यादा थी. जर्मनी आने वाले इन लोगों में अधिकतर रोमा और सिंती समुदाय के लोग हैं. इन अल्पसंख्यक बंजारों के साथ भेदभाव तो होता ही है, कई बार उनके अपने देश से उनको खदेड़ दिया जाता है.

आर्थिक कारण

बीएएमएफ अध्यक्ष मानफ्रेड श्मिट को लगता है कि ये लोग अच्छी स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक फायदों से आकर्षित होते हैं. "वह साफ साफ कह देते हैं कि उन्हें ये आकर्षित करता है." डॉयचे वेले से बातचीत में श्मिट ने कहा कि शरणार्थी आवेदन में अचानक बढ़ोतरी होने का कारण उनके लिए साफ है. क्योंकि जुलाई में जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने फैसला दिया था कि शरणार्थियों के लिए मानक मुनाफे बढ़ाए जाएंगे, "खासकर बेरोजगारी भत्ते के सिलसिले में. नए आवेदन पहले के सालों की तुलना में तेजी से बढ़े हैं."

लेकिन आवेदनों में बढ़ोतरी का मतलब ये नहीं कि उनके पास मौके बढ़ गए हैं. हालांकि श्मिट मानते हैं कि ये लोग बहुत बुरी स्थिति में रहते हैं. लेकिन चूंकि वह राजनीतिक तौर पर उन्हें समान अधिकार दिए गए हैं, इसलिए उनकी स्थिति शरणार्थियों के लिए बने जेनेवा समझौते के खाके में नहीं बैठती और न ही जर्मन कानून में. इसलिए कुल आवेदनों के केवल 0.1 फीसदी ही स्वीकार किए जाते हैं.

यूरोपीय नागरिकता गारंटी नहीं

बुल्गारिया और रोमेनिया के रोमा लोग जर्मनी में रह सकते हैं. उन्हें इसके लिए किसी आवेदन की जरूरत नहीं. 2007 में यूरोपीय संघ में इन दोनों देशों के शामिल होने के बाद से ये लोग यूरोपीय संघ के किसी भी सदस्य देश में रह सकते हैं. तब से अब तक जर्मनी के डुइसबुर्ग में पांच हजार बुल्गारियाई और रोमेनियाई लोग आए हैं-कारण है यहां के सस्ते घर.

डुइसबुर्ग में समेकन आयुक्त लैला ओएजमाल कहती हैं, "हमारे पास वो लोग आते हैं जो अपने देश में गरीब होते हैं. रोमा और सिंती जाति के लोगों के बारे में हम यह भी जानते हैं कि वह शायद भेदभाव से भाग रहे हैं."

लेकिन इन लोगों के साथ जर्मनी में भेदभाव की मुश्किल खत्म नहीं होती. पूर्वी यूरोपीय देशों के लोगों के लिए रोजगार में नियम हैं. उन्हें जर्मनी में काम नहीं मिलता या फिर वह गैरकानूनी और बहुत कम पैसे में काम करते हैं. उनके अधिकतर बच्चे स्कूल नहीं जाते और अक्सर वयस्कों के पास किसी तरह का स्वास्थ्य बीमा नहीं होता. न तो उनके पास पैसे होते हैं और न ही रहने के लिए ठीक ठाक घर.

बहिष्कार की मुश्किल

जर्मनी के निवासी अक्सर इन लोगों से परेशान महसूस करते हैं और कचरे और आवाज की शिकायत करते हैं. सड़कों पर खड़े, बतियाते युवाओं से अक्सर नाराजगी होती है. स्थानीय प्रशासन के पास अकसर पहले से ही कई समस्याएं होती हैं. डुइसबुर्ग में खदान उद्योग और स्टील उद्योग बंद होने से कई लोग बेरोजगारी का शिकार हुए हैं. कई कैफे सालों साल से खाली पड़े हैं.

पहली जनवरी 2014 से रोमानिया और बुल्गारिया में रोमा की स्थिति सुधर सकेगी क्योंकि पूर्वी यूरोपीय देशों के निवासियों पर रोजगार से जुड़ी रोक हट जाएगी.

लेकिन नए लोगों का समाज में एकीकरण, समय और पैसा दोनों मांगता है. ओएजमल का कहना है कि जर्मन भाषा सीखने और रोजगार के लिए फिट बना सकना तब ही संभव हो सकेगा जब इन कार्यक्रमों के लिए निधि उपलब्ध हो सकेगी. उनका मानना है कि रोमा समुदाय के समेकन के लिए दी जाने वाली यूरोपीय निधि कम है.

एक मुश्किल यह भी है कि रोमा लोगों के साथ होने वाले भेदभाव के कारण वह ये मानते ही नहीं कि वह रोमा हैं. इसलिए ओएजमल मानती हैं कि इन लोगों को किसी खास समुदाय में बांटने की बजाए यूरोपीय श्रेणी में ही रखना चाहिए.

रिपोर्टः ओले कैम्पर/आभा मोंढे

संपादनः अनवर जमाल अशरफ