थाईलैंड में रहने को मजबूर ये पाकिस्तानी ईसाई
५ नवम्बर २०१८पाकिस्तान से थाईलैंड पहुंचा 15 साल का फारुज (बदला हुआ नाम) बैंकॉक में अपने सात सदस्यीय परिवार के साथ दो कमरे के छोटे से घर में रहता है. गरीबी के चलते फारुज का परिवार मैले से घर में रहने को मजबूर है. इसके बावजूद फारुज को गरीबी और तकलीफ से डर नहीं लगता बल्कि दिन-रात उसे कुछ और ही चिंता सताती है. उसे डर है कि कहीं उसे और उसके परिवार वालों को गिरफ्तार कर थाईलैंड से वापस पाकिस्तान न भेज दिया जाए. दरअसल फारुज उन हजारों ईसाइयों में से एक है जो गैरकानूनी ढंग से थाईलैंड में अपना डेरा जमाए हुए हैं. इनके लिए वापस लौटना न तो आसान है और न ही सुरक्षित.
हाल में ईशनिंदा के मामले में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी को बरी कर दिया था, जिसके बाद देश के कट्टरपंथी गुट सड़कों पर आ गए. इस पूरे मामले ने थाईलैंड में रह रहे इन पाकिस्तानी ईसाइयों को और भी डरा कर रख दिया है. पाकिस्तान की कुल आबादी में महज दो फीसदी हिस्सा ही ईसाई धर्म के लोगों का है, जो इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर रहते हैं.
थाईलैंड में फंस गए
कई बार इनकी चर्चों पर हमले किए गए तो कई बार आपसी दुश्मनी के चलते ईशनिंदा जैसे आरोप भी इनके खिलाफ लगाए गए. आसिया बीबी के मामले के बाद इन ईसाइयों को डर है कि पाकिस्तान में हालात और भी बदतर हो जाएंगे. फारुज कहता है, "हम वापस नहीं जा सकते. हमारा देश हमें नहीं अपनाएगा, कोई भी देश हमें नहीं अपनाना चाहता, इसलिए हम थाईलैंड में फंस गए हैं." थाईलैंड में अल्पसंख्यकों के पास रिफ्यूजी अधिकार नहीं हैं, इस वजह से कई बार इन्हें पुलिस कार्रवाई का सामना भी करना पड़ता है.
फारुज ऊर्दु, पंजाबी, अंग्रेजी और थाई भाषाएं आसानी से बोल लेता है. लेकिन फारुज और उसके तीन छोटे भाई-बहन पिछले पांच सालों से स्कूल नहीं गए हैं. यही नहीं वे घर के भीतर दिन काटने के लिए मजबूर हैं. कानूनी तौर-तरीकों से कोई काम नहीं मिलता. आस पड़ोस में रहने वाले थाई लोग भी इन्हें पसंद नहीं करते हैं.
पाकिस्तान में नफरत
थाईलैंड संयुक्त राष्ट्र के रिफ्यूजी कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता देश नहीं है. इसके बावजूद देश के सरल वीजा नियमों के चलते थाईलैंड में आसानी से विदेशी लोग पहुंच लोग जाते हैं. थाई इमीग्रेशन पुलिस के मुताबिक उसने पिछले महीनों में दर्जनों ऐसे लोगों को हिरासत में लिया था जो वीजा की मियाद पूरी होने के बाद भी देश में गैरकानूनी ढंग से रह रहे थे. पुलिस ने बताया कि करीब 70 लोगों ने मर्जी से अपने देश वापसी का विकल्प चुना था.
थाईलैंड में रिफ्यूजियों को मदद करने वाली संस्था ब्रिटिश पाकिस्तानी क्रिश्चियन एसोसिएशन से जुड़े विल्सन चौधरी कहते हैं, "उन लोगों ने अनिश्चितकालीन हिरासत में रहने के बजाय ऐसी जगह जाने वाले का फैसला किया जहां उनके खिलाफ नफरत और शत्रुता अपने चरम पर है." उन्होंने आगे कहा, "कईयों को उत्पीड़न झेलना होगा, कुछ पर ईशनिंदा का आरोप लगेगा.. जो लोग वापस गए हैं, उनमें से किसी के पास भी पैसा और संपत्ति नहीं है क्योंकि थाईलैंड आने के लिए उन्होंने सब कुछ बेच दिया था."
एडवोकेसी समूह के मुताबिक दो साल पहले तक थाईलैंड में तकरीबन 7,400 पाकिस्तानी-ईसाई रहते थे. अब महज तीन हजार बाकी हैं. कुछ संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी के तहत पंजीकृत हैं, तो कुछ गुप्त रूप से रह रहे हैं. तकरीबन एक हजार लोगों को संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी ने निजी प्रायोजन स्कीम के तहत अन्य देशों में बसा दिया है.
नहीं जा सकते वापस
फारुज का परिवार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित गोजरा में रहता था. 2013 में ये लोग पाकिस्तान से थाईलैंड आ गए थे. पंजाब प्रांत के ही एक इलाके में 2009 में मुस्लिम कट्टरपंथियों ने सात ईसाइयों को जला कर मार दिया था. फारुज के पिता बताते हैं कि उन्होंने अपनी आंखों के सामने ईसाइयों को मरते हुए देखा था.
इस घटना के बाद उन्हें लगातार धमकी मिलने लगी. कुल मिलाकर मकसद उन्हें चुप कराना ही था. रोजाना मिलने वाली धमकियों ने फारुज के परिवार को पाकिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. थाईलैंड में भी जीवन आसान नहीं रहा, टूरिस्ट वीजा की मियाद खत्म होने के बाद थाई पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया. हालांकि कुछ समय बाद इन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया, शर्त रखी गई कि परिवार को हर महीने पुलिस के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी. वो भी तब जब ये संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के तहत रिफ्यूजी के रूप में दर्ज हैं.
यूनएचसीआर कहता है कि इन परिवारों को रिसैटेलमेंट लिस्ट में डालने के लिए इन्हें पाकिस्तानी प्रशासन से और भी कागजात की जरूरत होगी. वहीं बैंकॉक स्थित पाकिस्तानी दूतावास कहता है कि सारे कागजात उस देश को जारी होंगे, जहां ये अंत में जाएंगे.
इन सब मसलों के बीच फिलहाल फारुज और उसके परिवार को थाईलैंड में ही जैसे-तैसे रहना होगा. चुपचाप और शांत नजर आने वाली फारुज की मां कहती हैं कि अस्थिरता ने परिवार को मजबूर कर दिया है, "मुझे अपने बच्चों की चिंता होती है, बिना पढ़ाई-लिखाई के इनका भविष्य में क्या होगा? ये लोग कहां जाएंगे? मैं अपनी मां, अपने परिवार, अपने घर को दोबारा देखना चाहती हूं.. लेकिन अगर हम वापस गए तो वे लोग हमें मार डालेंगे."
एए/आईबी (एएफपी)