1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

त्रिलोचन शास्त्री नहीं रहे

शिवप्रसाद जोशी१० दिसम्बर २००७

हिंदी के सबसे बुज़ुर्ग कवि का जाना

https://p.dw.com/p/DVXP

हिंदी के मशहूर कवि और आधुनिक हिंदी कविता के शीर्षस्थ स्तंभ त्रिलोचन शास्त्री नहीं रहे। 90 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। उन्होंने नौ दिसंबर की शाम उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद स्थित अपने आवास पर अपनी अंतिम सांस ली। हिंदी में सॉनेट को स्थापित करने का श्रेय त्रिलोचन शास्त्री को ही जाता है। उन्होंने करीब 550 सॉनेटों की रचना की थी।

पहले पहल तुम्हें जब मैंने देखा

सोचा था

इससे पहले ही

सबसे पहले

क्यों न तुम्हीं को देखा

त्रिलोचन शास्त्री की कविता की ये लाइनें लगता है आज उन्हीं के लिए पढ़ी जा सकती हैं ..उन्ही को संबोधित की जा सकती है। 90 साल की उम्र में त्रिलोचन लंबी बीमारी से जूझते हुए दुनिया में नहीं रहे। हिंदी के वो दूसरे नंबर के बुज़ुर्ग थे। कथाकार विष्णु प्रभाकर 95 साल की उम्र में काल से होड़ ले रहे हैं और काल से होड़ लेते लेते त्रिलोचन चले गए। इस तरह प्रगतिशील प्रयोगधर्मी हिंदी कविता की पहली पीढ़ी की त्रयी की आखिरी कड़ी भी चली गयी। पहले नागार्जुन फिर शमशेर और अब त्रिलोचन।

लेकिन त्रयी तो बनाने वालो ने बनायी। त्रिलोचन तो अकेले थे। साईकिल लेकर चलने वाले अलग लिखने वाले। तोड़ने वाले और तोड़ कर फिर रचने वाले। शेक्सपियर के सॉनेट को हिंदी में ले आए और स्थापित कर दिया।

हरिद्वार के ज्वालापुर इलाके में लोहा मंडी की एक तंग गली में रहते थे त्रिलोचन। शायद किसी को इस बात का अंदाज़ा तक नहीं था कि उनके बीच हिंदी का इतना बड़ा जनकवि रहता आया। हरिद्वार में रहते थे गंभीर रूप से बीमार पड़ने से पहले। बिस्तर पर पड़े हुए बढ़ी हुई दाढ़ी विशाल ललाट और आंखे ऐसी चमक से भरीं कि आपको पढ़ लें। एक कवि और क्या कर सकता है। पढ़ेगा या लिखेगा। त्रिलोचन ने वही लिखा जो कमज़ोर के पक्ष में था। वो मेहनतकश और दबे कुचले समाज की एक दूर से आती आवाज़ थे। उनकी कविता भारत के ग्राम और देहात समाज के उस निम्न वर्ग को संबोधित थी जो कहीं दबा था कही जग रहा था कहीं संकोच में पड़ा था।

उस जनपद का कवि हूं

जो भूखा दूखा है

नंगा है अनजान है कला नहीं जानता

कैसी होती है वह क्या है वह नहीं मानता

त्रिलोचन जी का जन्म 20 अगस्त 1917 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर ज़िले के गांव कठधरा चिरानी पट्टी में हुआ था। उस जनपद का कवि हूं, फूल नाम है एक, ताप के ताए हुए दिन, 'रधान, दिगंत, गुलाब और बुलबुल, तुम्हें सौंपता हूं, अनकहनी भी कहानी है, सबका अपना आकाश और अमोला उनके प्रमुख कविता संग्रह है। ताप के ताए हुए दिन कविता संग्रह पर उन्हें 1981 में साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था. इसके अलावा उन्हें कई और प्रमुख पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

त्रिलोचन की काव्य ऊर्जा से क्या सीखें। उनकी कविता और उनके जीवन से क्या सीखें। उनकी ही एक कविता है तुम्हें सौंपता हूं। शायद अपने नाम की सार्थकता मे जाते हुए त्रिलोचन ने आज के ही हाल को देख कर नयी पीढ़ी के लिए ये लिखा होगा।

फूल मेरे जीवन में आ रहे हैं

सौरभ से दसों दिशाएँ
भरी हुई हैं
मेरी जी विह्वल है
मैं किससे क्या कहूँ

जरा ठहरो
फूल जो पसंद हों, उतार लो
शाखाएँ, टहनियाँ
हिलाओ, झकझोरो
जिन्हे गिरना हो गिर जायें
जाएँ जाएँ

लो जो भी चाहे लो
जिसे चाहो, उसे दो

लो
जो भी चाहो लो

एक अनुरोध मेरा मान लो
सुरभि हमारी यह
हमें बड़ी प्यारी है
इसको सँभालकर जहाँ जाना
ले जाना

इसे तुम्हे सौंपता हूँ।