1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

त्रिपुरा में धरने पर हैं नौकरी से बर्खास्त हजारों शिक्षक

प्रभाकर मणि तिवारी
१२ जनवरी २०२१

पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में नौकरी से बर्खास्त किए गए हजारों शिक्षक बीते 37 दिनों से धरने पर बैठे हैं. इस दौरान इनमें से दो लोगों की मौत हो चुकी है और एक शिक्षिका ने कथित रूप से आत्महत्या कर ली है.

https://p.dw.com/p/3npOt
Indien | Lehrer-Proteste in Tripura
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ ने इन शिक्षकों से धरना वापस लेने की अपील की है. लेकिन शिक्षकों के वैकल्पिक रोजगार का इंतजाम नहीं होने तक धरना खत्म नहीं करने की जिद के चलते इस मुद्दे पर गतिरोध जस का तस है. शिक्षकों के साथ उनके घरों के बच्चे और महिलाएं भी कड़ाके की सर्दी में धरने पर हैं. राज्य की पूर्व लेफ्टफ्रंट सरकार की कथित गलत नियुक्ति प्रक्रिया के तहत नियुक्त 10,323 शिक्षकों को लंबी अदालती लड़ाई के बाद बर्खास्त कर दिया गया है.

दरअसल, 2010 और 2014 में तत्कालीन लेफ्टफ्रंट सरकार ने संशोधित रोजगार नीति के तहत इन शिक्षकों की नियुक्ति की थी. लेकिन हाईकोर्ट ने इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट का फैसला बहाल रखा था. लेकिन उसने एडहॉक आधार पर मार्च 2020 तक इन शिक्षकों से काम कराने की अनुमति दी थी. अब उसके बाद तमाम शिक्षक बेरोजगार हो चुके हैं. इसलिए राज्य की बीजेपी सरकार ने अब शीर्ष अदालत से इन लोगों को चपरासी के पद पर नियुक्त करने की अनुमति मांगी है.

इन शिक्षकों की नियुक्ति महज मौखिक इंटरव्यू के जरिए की गई थी. लेकिन सात मई 2014 को त्रिपुरा हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था. उसके बाद 29 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने उसी साल 31 दिसंबर को कहा था कि आगे से तमाम ऐसी नियुक्तियां नई नीति बना कर की जाएं.

अदालती निर्देश के बाद सरकार ने 2017 में एक नई नीति बनाई और बर्खास्त शिक्षकों को तदर्थ आधार पर बनाए रखा. उसकी दलील थी कि राज्य में शिक्षकों की भारी कमी है. उसके बाद नवंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्त शिक्षकों को तदर्थ आधार पर 31 मार्च 2020 तक काम करने की अनुमति दे दी थी. अदालती आदेश के बाद सरकार ने बर्खास्त शिक्षकों को दूसरे पदों पर नियुक्त करने का प्रस्ताव रखा और 1200 पदों पर नियुक्तियां भी हो गईं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को अदालत की अवमानना का नोटिस भेज दिया. उसके बाद ऐसी नियुक्तियां रोक दी गईं. मार्च 2020 में इन सबकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं.

Indien | Lehrer-Proteste in Tripura
धरने पर बैठे तीन शिक्षकों की मौत के शोक में कुछ अन्य शिक्षकों ने अपना सर मुंडवाया तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

अब तक 81 लोगों की मौत

शिक्षकों के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली ज्वायंट मूवमेंट कमिटी के नेता सत्यजित दे बताते हैं, "बर्खास्त शिक्षकों में अब तक 81 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. बीते शनिवार को मानसिक अवसाद से पीड़ित रूमी दे नामक शिक्षिका ने आत्महत्या कर ली. इससे पहले दो जनवरी को दक्षिण त्रिपुरा जिले में 32 साल के उत्तम त्रिपुरा ने भी आत्महत्या कर ली थी.” एक शिक्षक गौतम देबबर्मा कहते हैं, "अब जल्दी ही स्कूल-कॉलेज खुलने वाले हैं. शिक्षकों की कमी का पठन-पाठन पर बेहद प्रतिकूल असर होगा.”

राज्य मंत्रिमंडल ने बीते साल सितंबर में एक नई नीति का अनुमोदन किया था जिसके तहत इन बर्खास्त शिक्षकों में से 9,686 लोग गैर-तकनीकी ग्रुप सी के 9,700 खाली पदों के लिए आवेदन कर सकते थे. इनके मामले में 31 मार्च 2023 तक उम्र के मामले में रियायत देने का भी फैसला किया गया था.

लेकिन शिक्षकों ने दूसरे विभागों में खाली पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन के सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. इन पदों पर नियुक्ति की अधिसूचना जारी की जा चुकी है.

शिक्षकों के हितों के खिलाफ

शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ मौजूदा समस्या के लिए राज्य की पूर्व लेफ्टफ्रंट सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं. वे कहते हैं, "सरकार इंटरव्यू और दूसरी औपचारिकताओं के बिना किसी को नौकरी नहीं दे सकती. सुप्रीम कोर्ट ने इन शिक्षकों को सरकारी नौकरियों के लिए तय उम्र सीमा में छूट दे दी है. इन लोगों को इसका लाभ उठाना चाहिए.”

दूसरी ओर, पूर्व मुख्यमंत्री और अब विधानसभा में विपक्ष के नेता मानिक सरकार कहते हैं, "त्रिपुरा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की ओर से इन शिक्षकों की नियुक्तियां रद्द होने के बाद तत्कालीन लेफ्टफ्रंट सरकार ने इन सबको वैकल्पिक रोजगार मुहैया कराने के लिए 13 हजार पदों का सृजन किया था. 2018 के चुनावों के दौरान बीजेपी ने सत्ता में आने पर इन पदों पर नियुक्त शिक्षकों की नौकरी नियमित करने का वादा किया था. लेकिन उसने कुछ भी नहीं किया.

ज्वायंट मूवमेंट कमिटी की संयुक्त संयोजक डालिया दास कहती हैं, "सरकार का प्रस्ताव शिक्षकों के हितों के खिलाफ है. कई शिक्षक सात से दल साल पढ़ा चुके हैं. अब वे दूसरा काम नहीं कर सकते.” उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने बीते साल तीन अक्टूबर को दो महीने के भीतर शिक्षकों की समस्याओं के स्थाई समाधान का वादा किया था, "लेकिन दो महीने से ज्यादा समय तक इंतजार के बाद हमने सात दिसंबर से धरना शुरू किया. अब तक सरकार ने चुप्पी साध रखी है."

उधर, शिक्षा मंत्री की दलील है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की वजह से सरकार के हाथ बंधे हुए हैं. वह इस मामले में कुछ नहीं कर सकती. नाथ कहते हैं, "हमें इन शिक्षकों से पूरी सहानुभूति है. लेकिन सरकारी नौकरियों के लिए उनको इंटरव्यू में शामिल होना पड़ेगा.”

दोनों पक्षों की दलीलों और कानूनी पेचीदगियों से साफ है कि इस गतिरोध के शीघ्र खत्म होने के आसार कम ही हैं.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी