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त्रिपुरा: बीजेपी भेद पाएगी सीपीएम का किला?

१५ फ़रवरी २०१८

विधानसभा चुनावों की सरगर्मियों के बीच पर्वतीय प्रदेश त्रिपुरा की फिजा बदल गई है. भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वोत्तर में अपने पैर पसारने के मकसद से त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है.

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Indien Wahlen in Gujarat
तस्वीर: Reuters/A. Dave

करीब दो दशकों से त्रिपुरा की कमान संभाले हुए मुख्यमंत्री माणिक सरकार को कड़ी चुनौती मिल रही है. त्रिपुरा की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वाले लोगों को भी लगता है कि इस बार चुनाव के नतीजे कुछ अप्रत्याशित हो सकते हैं.

त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र की प्रोफेसर चंद्रिका बसु मजूमदार कहती हैं कि सत्तासीन वामपंथी दल, मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) की पकड़ मजबूत है. करीब दो दशक से प्रदेश में मुख्यमंत्री माणिक सरकार स्वच्छ और ईमानदार छवि के लिए जाने जाते हैं, लेकिन बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग पिछले कुछ समय से जिस प्रकार से जमीनी स्तर पर चुनाव प्रचार में जुटे हैं, उससे सीपीएम को नुकसान पहुंच सकता है.

चंद्रिका ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "मौजूदा सरकार के प्रति लोगों के भरोसे में प्रत्यक्ष रूप से तो कोई कमी नहीं दिख रही है, लेकिन लोकलुभावन वादे-इरादे चुनाव के ऐसे पहलू होते हैं जो नतीजों को प्रभावित करते हैं."

बीजेपी ने त्रिपुरा में युवाओं के लिए मुफ्त स्मार्टफोन, महिलाओं के लिए मुफ्त में ग्रेजुएशन तक की शिक्षा, रोजगार, कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने जैसे वादे अपने चुनाव घोषणापत्र 'त्रिपुरा के लिए विजन डॉक्यूमेंट' में किए हैं.

चंद्रिका ने कहा कि बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र से सभी वर्गों के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है, लेकिन इससे उतना फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि प्रदेश सरकार ने भी कई काम किए हैं और उनके भी अपने वादे हैं. सबसे अहम बात जो बीजेपी के पक्ष में जाती है, वह उसकी आक्रामक रणनीति है. भाजपा ने अपनी रणनीति से मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को इस चुनाव में हाशिये पर ला दिया है.

उन्होंने कहा, "कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव 2013 में 36 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे, जबकि बीजेपी को महज डेढ़ फीसदी. लेकिन बीजेपी ही इस चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को टक्कर दे रही है. यह चौंकाने वाला तथ्य है. इसका श्रेय बीजेपी की मजबूत रणनीति को जाता है जिसके जरिए वह पूर्वोत्तर को फतह करना चाहती है. बीजेपी ने कांग्रेस के तमाम प्रमुख नेताओं को तोड़कर अपने साथ मिला लिया है, जिससे कांग्रेस एक तरह से मुख्य मुकाबले से बाहर हो चुकी है." हालांकि उनका कहना है कि कांग्रेस का पूरा वोट बीजेपी को नहीं मिलेगा लेकिन आधे से अधिक पर कब्जा जरूर होगा.

मजूमदार ने कहा, "चुनाव दिलचस्प हो गया है. कोई भी पोल पंडित मतदाताओं के मिजाज का सही आकलन नहीं कर पा रहा है. लेकिन जिस पार्टी को पिछले चुनाव में करीब पचास फीसदी वोट मिला हो और उसके प्रति जनता में असंतोष की कोई ऐसी लहर भी न हो तो फिर उसको सत्ता से बाहर करना आसान नहीं होगा."

हालांकि विश्वविद्यालय के राजनीति विभाग में ही एसोसिएट प्रोफेसर गौतम चकमा का मानना है कि इस चुनाव में त्रिपुरा में दो दलों के बीच स्पर्धा है और वाम दल ढाई दशक से सत्ता में हैं, जबकि बीजेपी तेजी से पूर्वोत्तर में सक्रियता के साथ अपनी पैठ बना रही है. बीजेपी के पास विकास का मुद्दा काफी दमदार है. मतदाताओं में आकर्षण पैदा करने में विकास और व्यवस्था के मुद्दे ज्यादा होते हैं.

चकमा ने कहा, "पूर्वोत्तर के राज्यों में त्रिपुरा अपेक्षाकृत शांत प्रदेश रहा है, लेकिन पिछले दिनों यहां जो दुष्कर्म और हत्या की घटनाओं से कानून-व्यवस्था को लेकर लोगों में असंतोष है, जिससे वे व्यवस्था परिवर्तन के लिए वोट डाल सकते हैं. इसके अलावा बीजेपी ने इनसे विकास का वादा किया है."

चकमा ने बताया कि बीजेपी कह रही है कि केंद्र की योजनाओं के लिए जो पैसे दिए जाते हैं, प्रदेश सरकार ठीक ढंग से खर्च नहीं करती है. इससे लोगों में एक विश्वास पैदा होगा कि प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने से यहां ज्यादा विकास होगा. उन्होंने कहा, "प्रदेश में उद्योग का अभाव है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है. ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगार युवाओं की एक बड़ी फौज है. बीजेपी ने लोगों को नौकरियां देने का वादा किया है."

चकमा ने कहा कि त्रिपुरा में आदिवासियों की एक बड़ी आबादी है और आदिवासी संगठन आईपीएफटी बीजेपी के साथ है, जिसका उसे फायदा मिल सकता है. वह यह भी मानते हैं कि वाम दल के गढ़ में सेंध लगाना आसान नहीं है, लेकिन इस बार राजनीतिक फिजा कुछ बदली हुई है, इसलिए अप्रत्याशित नतीजे आ सकते हैं.

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में सरकार बनाने के बाद बीजेपी की नजर फिलहाल त्रिपुरा है और संघ कार्यकताओं के साथ बीजेपी के सभी बड़े नेता और मंत्री इस समय वहां डेरा डाले हुए हैं. करीब 37 लाख की आबादी वाले इस प्रदेश में मतदाताओं की संख्या तकरीबन 25 लाख है.

इससे पहले 2013 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ सीपीएम को 48.11 फीसदी मतों के साथ 49 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस 36.53 फीसदी मतों के साथ 10 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर थी. एक सीट भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के खाते में गई थी. बीजेपी और इस चुनाव में उसकी प्रबल सहयोगी इंडिजीनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) को क्रमश: 1.57 फीसदी और 0.46 फीसदी मत मिले थे और दोनों को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी.

इस बार, कुल 297 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, जिनमें बीजेपी के उम्मीदवार 51 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं तो आईपीएफटी ने नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. कांग्रेस उम्मीदवार 59 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं वाम मोर्चा ने भी सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान अंतिम दौर में है. प्रदेश के 60 सदस्यीय विधानसभा चुनाव के लिए 18 फरवरी को मतदान होगा और मतों की गिनती तीन मार्च को होगी.

प्रमोद कुमार झा (आईएएनएस)