तेज होती "राजनीतिक बंदियों" को रिहा करने की मांग
२० जुलाई २०२०वरावारा राव को जनवरी 2018 में महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव इलाके में हुई हिंसा के संबंध में गिरफ्तार किया गया था. उन पर गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत भीमा-कोरेगांव हिंसा के पीछे साजिश में शामिल होने का आरोप है. यूएपीए एक बेहद सख्त कानून है जिसे मूलतः आतंकवाद और देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरा पहुंचाने वाली गतिविधियों को रोकने के लिए बनाया गया था.
राव ने पहले भी अपनी जमानत की याचिकाओं में कहा था कि उनकी उम्र की वजह से उन्हें कोरोना वायरस संक्रमण होने का ज्यादा खतरा है, लेकिन उनकी दलील को नजरअंदाज कर दिया गया. मई में उनकी तबीयत खराब हो जाने के बाद उन्हें मुंबई के जे जे अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था, लेकिन कुछ दिनों बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे कर फिर से जेल भेज दिया गया. जुलाई में एक बार फिर उनकी तबियत काफी खराब हो गई और उन्हें एक बार फिर अस्पताल में भर्ती कराया गया.
अब राव के करीबी लोगों और पत्रकारों ने दावा किया है कि अस्पताल में भी उनका ख्याल नहीं रखा जा रहा है और उनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है. उनकी हालत को देखते हुए राव को रिहा करने की मांग बढ़ती जा रही है. पूर्व सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने डीडब्ल्यू से कहा कि वैसे भी भारत में विचाराधीन कैदियों के लंबे समय तक जेल में फंसे रहने की बहुत बड़ी समस्या है, राव का मामला उनकी उम्र और उनकी हालत की वजह से विशेष रूप से गंभीर है.
गांधी कहते हैं, "उपहार सिनेमाघर में लगी आग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघर के मालिक अंसल बंधुओं को दोषी पाए जाने के बावजूद उनकी उम्र की वजह से गिरफ्तार करने से मना कर दिया था. राव को भी इसी आधार पर रिहा कर दिया जाना चाहिए."
राव के अलावा और भी कई वकीलों, पत्रकारों और एक्टिविस्टों को पिछले कुछ सालों में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था. इनमें भीमा-कोरेगांव मामले में ही गिरफ्तार किए गए अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वर्नोन गोंसाल्वेस, शोमा सेन और दूसरे मामलों में गिरफ्तार किए गए अखिल गोगोई, डॉ कफील खान इत्यादि शामिल हैं. एक्टिविस्टों का कहना है कि भारत की भीड़ वाली जेलों में कोविड-19 के फैलने के खतरे को देखते हुए इन सभी को रिहा कर देना चाहिए.
बीजपी के आईटी सेल के पूर्व राष्ट्रीय सह-संयोजक विनीत गोयनका मानते हैं कि राव एक 'आतंकवादी' हैं और उनके खिलाफ देश को तोड़ने के और देश के लोगों के बीच नफरत फैलाने के प्रयास करने के गंभीर आरोप हैं. गोयनका पूछते हैं कि क्या ऐसे व्यक्ति के साथ कानून को अलग से पेश आना चाहिए? उनका यह भी कहना है कि इस बात पर जरूर देश में बहस होनी चाहिए कि चाहे जेल में कैद कोई "चोर हो, बलात्कारी हो या खूनी हो", उसे कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने के बाद जेल में रखना चाहिए या नहीं.
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