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तुर्की में अब मौन प्रदर्शन

२० जून २०१३

मौन खड़े होकर हजारों लोग तुर्की में प्रधानमंत्री रेचेप तय्यप एर्दोआन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. वे पिछले हफ्तों में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस दमन के विरोध की मिसाल कायम करना चाहते हैं.

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तस्वीर: Reuters

ढेरों गिरफ्तारियां, अनगिनत घायल और चार मौतें, यह नतीजा है तुर्की में दो हफ्ते से ज्यादा तक चले प्रदर्शन का, जिसमें हजारों तुर्क अपने देश में ज्यादा अधिकारों और आजादी की मांग कर रहे थे. विरोध प्रदर्शनों का मुख्य निशाना प्रधानमंत्री बन गए थे, "तय्यप इस्तीफा," उनके इस्तीफे की मांग करता यह नारा सबसे अधिक जोर शोर से लगाए जा रहे नारों में शामिल हो गया.

प्रदर्शनकारियों ने इस्तांबुल की सड़कों पर रैली निकाली, दीवारों को सरकार विरोधी नारों से भर दिया और पुलिस के साथ झड़पों में उलझे. गेजी पार्क विरोध आंदोलन का प्रतीक बन गया. वहां लोग नाच रहे थे, गा रहे थे, खा-पी रहे थे और तंबुओं में सो रहे थे. पार्क को पुलिस द्वारा जबरन खाली कराए जाने के बाद इस सब का अंत हो गया लगता है. नारों की जगह मौन विरोध ने ले ली है, रैलियों की जगह ठहराव है.

Türkei Stiller Protest
आयलेम ओएजकानतस्वीर: DW/S. Sokollu

विरोध का नया तरीका

शाम में बर्तनों पर थाप की आवाज, सीटियां, तालियां और बत्तियों को जलाना बुझाना पिछले हफ्तों में भी पूरे देश में विरोध प्रदर्शन का वैकल्पिक तरीका था. लेकिन खड़े होकर मौन प्रदर्शन नया है. इसकी शुरुआत सोमवार 17 जून को हुई, जब एक आदमी विरोध में तकसिम स्क्वेयर पर खड़ा हो गया. चुप, दोनों हाथ पैंट की जेब में और तुर्की के संस्थापक कमाल अतातुर्क की विशाल तस्वीर की ओर घूरती निगाहें. कोरियोग्राफ एर्देम गुंडूज इस मुद्रा में साढ़े पांच घंटे खड़े रहे. जल्द ही उन्हें दूसरे प्रदर्शनकारियों ने देखा और वे उनके साथ होते गए.

रात होते होते अकेले प्रदर्शनकारी के इर्द गिर्द लोगों की भीड़ जमा हो गई. सब चुप थे, कोई नारे नहीं , कोई मांग नहीं. खड़े होकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन. पुलिस को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. तकसिम स्क्वैयर पर प्रदर्शन पर एर्दोआन ने रोक लगा दी थी. उनकी सरकार ने कहा था कि अब जो भी वहां प्रदर्शन करेगा उसे आतंकवादी समझा जाएगा. आखिर में पुलिस ने मौन प्रदर्शनकारियों को वहां से खदेड़ दिया. गुंडूज को हिरासत में ले लिया गया और पूछताछ की गई, लेकिन बाद में छोड़ दिया गया.

खड़े आदमी का विरोध

कुछ ही घंटों के अंदर तकसिम स्क्वैयर पर "दुरान आदम" यानि खड़े आदमी के मौन विरोध की तस्वीरें ट्विटर के जरिए पूरी दुनिया में फैल गईं. बहुत से तुर्क शहरों में लोगों ने उससे प्रेरणा लेकर खुद मौन विरोध शुरू कर दिया. इस्तांबुल में यह शांतिपूर्ण विरोध अब शहर के दूसरे इलाकों में भी फैल गया है. बेसिक्तास में लोग एर्दोआन सरकार के विरोध में खड़े हैं. एक आदमी सरकार के करीब समझे जाने वाले दैनिक सबह के दफ्तर के आगे विरोध कर रहा है. सोशल मीडिया पर विरोध का समय तय किया जा रहा है, जब पूरे देश में लोग पांच मिनट तक मौन विरोध करेंगे. मंगलवार को शाम 8 बजे पूरा देश विरोध में मौन था.

Türkei Stiller Protest
हुसैन गुनेसतस्वीर: DW/S. Sokollu

26 वर्षीया प्रदर्शनकारी आयलेम ओएजकान कहती है कि दुर्भाग्यवश पिछले दिनों में इस देश में घटने वाली घटनाओं पर प्रतिक्रिया करना अपराध हो गया है. "गेजी पार्क में युवा लोगों ने अपनी कला और हास्य की भावना के साथ विरोध दर्ज करने की कोशिश की. लेकिन उसका फायदा नहीं हुआ. अब हमने चुप्पी दिखाने का फैसला किया है. कभी कभी चुप्पी सबसे अच्छी प्रतिक्रिया होती है."

बुद्धिमान और मजबूत हैं हम

तकसिम स्क्वेयर पर सबकी नजरें अतातुर्क कल्चर सेंटर पर हैं, जिसे एर्दोआन ने गिराने का फैसला किया है. लोग बैठकर, प्रार्थना कर और ध्यान लगाकर अपना विरोध जता रहे हैं. निगाहें पुलिस पर होती हैं, जिसने गेजी पार्क की नाकेबंदी कर रखी है. लोग पुलिस के सामने घंटों तक खड़े रहते हैं, पलक झपकाए बिना उन्हें घूरते. एक प्रदर्शनकारी गोएक्चे इसिलसेन कहती है, "यह सबसे अच्छा रास्ता है, उन्हें दिखाने का कि हम उनसे ज्यादा स्मार्ट और मजबूत हैं. वे हमें पीटते हैं और धक्कामुक्की करते हैं. हमें प्रदर्शन के बेहतर तरीके ढूंढने होंगे."

एक प्रदर्शनकारी ने चार मोमबत्तियां जला रखी हैं, प्रदर्शन में मरने वाले चार लोगों की याद में, तीन प्रदर्शनकारी और एक पुलिसकर्मी. "जब हम आवाज बुलंद करते हैं तो हमारा सामना दर्द से होता है, लेकिन जब हम शांत होते हैं, तब नहीं." पत्रकार हुसैन गुनेस पहले दिन से विरोध प्रदर्शन के साथ हैं. मौन विरोध कर रहे गुनेस कहते हैं, "मेरे हाथ में प्लास्टिक की गोली लगी, मेरा सामना आंसू गैस से हुआ और मुझ पर पानी की बौछारें पड़ीं." मौन विरोध लोगों की चित्कार है, और गुनेस उसमें शामिल होकर उसे असरदार बनाना चाहते हैं.

रिपोर्ट: सेनादा सोकुलु/एमजे

संपादन: निखिल रंजन

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