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तुर्की में अब भी सांस ले रहा है लोकतंत्र

एरकान अरिकान
२४ जून २०१९

तुर्की के सत्ताधारी दल के खिलाफ इस्तांबुल में विपक्षी दल का दोबारा जीतना असल में लोकतंत्र के लिए एक अहम जीत है. डॉयचे वेले के एरकान अरिकान का कहना है कि इससे देश के राजनीति में बदलाव का मंच तैयार होने की संभावना बनेगी.

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Istanbul-Wahl Ekrem Imamoglu  (Onur Günal)
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O.Gunay

इस्तांबुल में दोबारा कराए गए चुनावों में पहली बार से भी ज्यादा लोगों ने मतदान किया और देश के सत्ताधारी दल एकेपी के उम्मीदवार और पूर्व प्रधानमंत्री बिनाली यिल्दिरिम को हराकर विपक्षी दल रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी के एकरम इमामुग्लू को विजयी बनाया. 23 जून 2019 की तारीख तुर्की के इतिहास में दर्ज होने लायक है. पिछली बार के चुनाव में जो तेरह हजार वोटों के अंतर से जीता था, इस बार उसे लोगों ने करीब आठ लाख वोटों से जिताया है. तुर्की के लोगों के लिए यह एक इशारे से कुछ ज्यादा है. यह जागने की घंटी है. तुर्की में लोकतंत्र अब भी जिंदा है. इसका एक सबूत इमामुग्लू की जीत है, जिन्हें उनके विरोधियों ने पूरे चुनाव अभियान के दौरान अपमानित किया लेकिन जिन्हें जीत के बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन समेत वे सब बधाई देने को मजबूर हो गए.

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डॉयचे वेले के एरकान अरिकानतस्वीर: DW/B. Scheid

राष्ट्रपति एर्दोआन के लिए यह हार गाल पर तमाचे की तरह है. उनके बस में जो कुछ भी था वो लगाकर उन्होंने अपनी पार्टी के उम्मीदवार को जिताने का जोर लगाया था. यहां तक की सर्वोच्च चुनावी परिषद पर भी दबाव बनाया लेकिन मतदाताओं के हाथों उन्हें मुंहकी खानी पड़ी.

'हमें न्याय चाहिए'

कुर्द लोगों का वोट पाने के लिए इस बार भी एकेपी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन कुर्द समर्थक पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपने समर्थकों का इमामुग्लू को वोट देने के लिए आह्वान किया. तुर्की में पहली बार लोगों ने साफ तौर पर दिखाया है कि वे लोकतंत्र चाहते हैं.

जब से चुनाव की तारीख घोषित हुई थी तब से इस्तांबुल के निवासियों से अपील होने लगी थी कि वे छुट्टियों में घूमने ना निकल जाएं बल्कि मतदान के लिए वहीं रुकें. लोगों ने चार्टर्ड बसों और कार-पूलिंग जैसे यातायात के कई इंतजाम किए, जिससे उन्हें इस्तांबुल लाकर वोट डलवाया जा सके. बाहर से केवल वोट डालने आने वालों की तादाद के करीब 15 लाख होने का अंदाजा लगाया जा रहा है. ये लोग केवल एक दिन के लिए यहां अपना वोट डालने पहुंचे थे. एक टैक्सी ड्राइवर ने बताया, "मैंने हमेशा एकेपी को वोट डाला है. इस बार ऐसा नहीं करुंगा. हमें न्याय चाहिए. हम आस्तिक लोग हैं कोई पाखंडी नहीं!"

Türkei Rede des neuen Bürgermeister von Istanbul, Ekrem Imamoglu | Anhänger in Beylikdüzü
तस्वीर: Presseabteilung von Ekrem İmamoğlu

एर्दोआन के एकेपी के लिए क्या संदेश

एर्दोआन के सामने अब बड़ी दुविधा है. अपनी कड़ी नीतियों, प्रबंधनों और विपक्ष पर दबाव डालने के तरीकों को वे अब और जारी नहीं रख सकते. विदेश नीतियों की अनदेखी करते आए एर्दोआन के सामने अब घरेलू मोर्चे पर भी चुनौतियां गहरा गई हैं. 25 सालों के बाद इस्तांबुल की सत्ता उनके हाथ से निकल गई. इस शहर के मेयर के तौर पर ही उन्होंने राजनीति के शीर्ष तक पहुंचने का अपना सफर शुरु किया था.

बीते कुछ हफ्तों से इस बात की भी अटकलें लग रही हैं कि उनकी ही पार्टी के संस्थापक सदस्य एक नई पार्टी शुरु करना चाहते हैं. इस्तांबुल के नतीजे उन्हें इस दिशा में गंभीरता से और तेजी से सोचने के लिए प्रेरित कर सकते हैं. तो क्या एर्दोआन का अंत करीब आ गया है? नहीं, अभी नहीं. एर्दोआन इतनी आसानी से ऐसा नहीं होने देंगे. लेकिन क्या ये उनके लिए एक बड़ा मोड़ होगा? बेशक. उनके सामने दो रास्ते होंगे. या तो वे और सख्त रास्ता अपनाएं या फिर सत्ता में बने रहने के लिए समझौते करें.

फिलहाल उनका सबसे बड़ा लक्ष्य किसी भी तरह 2023 तक राष्ट्रपति पद पर बने रहने का है. 2023 में तुर्की गणतंत्र को 100 साल पूरे हो जाएंगे और तभी अगले संसदीय और राष्ट्रपति चुनाव भी होने हैं. अगर उन्हें तब तक सत्ता में बने रहना है तो इतना तो तय है कि अपने राजनीतिक करियर में शायद पहली बार उन्हें समझौते भी करने होंगे.

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