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तीन साल में बहुत अच्छे दिन आए: जावड़ेकर

२६ मई २०१७

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक नया भारत बनाना चाहते हैं. लेकिन इसके लिए देश कितना तैयार है और इस दिशा में मोदी के तीन साल के कार्यकाल में कितनी प्रगति हुई? यही पूछा हमने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर से.

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Indien | Prakash Javadekar
तस्वीर: UNI

युवाओं को अलग अलग तरह का कौशल सिखाने पर मोदी सरकार का बहुत जोर है. साथ ही उन्हें उद्यमिता के लिए भी प्रेरित किया जाता है, ताकि देश के आर्थिक विकास में उनका सीधा योगदान हो. मोदी सरकार के विरोधी जहां पिछले तीन साल के कार्यकाल को हर मोर्चे पर नाकाम करार देते हैं, वहीं सरकार देश को प्रगति के पथ पर लगातार आगे ले जाने का दावा करती है. इसी सिलसिले में हमने बात की केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से. पेश है इसके मुख्य अंश:

मोदी सरकार को तीन साल हो गए हैं. इन तीन सालों में कितने अच्छे दिन आए?

बहुत अच्छे दिन आए क्योंकि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के नेतृत्व में दस साल में सरकार महंगाई को रोक नहीं पाई. अब तीन साल में महंगाई पर पूरी लगाम लगी है. दूसरा, पहली बार लोग भ्रष्टाचार मुक्त सुशाशन देख रहे हैं. इसके लिए बहुत उपाय किए गए हैं. पहले तो सारी प्रक्रियाएं सरल और पारदर्शी कीं. साथ ही कोयला, लोहा अयस्क या अन्य खनिज संसाधनों और स्पेक्ट्रम का आवंटन नीलामी से होता है. यूपीए के जमाने में जो घोटालों का माहौल था, वह अब खत्म हो गया है. तीन साल में सरकार पर एक भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा. यह बहुत बड़ी सफलता है. रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफोर्म. यह मोदी जी का नारा है. उनके कहने पर 1.2 करोड़ लोगों ने अपनी एलपीजी सब्सिडी छोड़ी. किसानों, शोषितों और पीड़ितों के लिए यह समर्पित सरकार है. देश की तरक्की के लिए हम जीएसटी लाये. आर्थिक दृष्टि से भारत आज सबसे गति से प्रगति करने वाला देश है. हमने जनता की भागीदारी वाली सरकार दी.

आपके विरोधी कहते हैं कि जीडीपी की रफ्तार कम हो गई है और हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा सरकार पूरा नहीं कर पाई. क्यों?

जीडीपी घट नहीं रही है. सिर्फ हम ही ऐसे देश हैं जहां 7 प्रतिशत की दर से लगातार आर्थिक प्रगति हो रही है, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुश्किल हालात हैं. जहां तक नौकरियों का सवाल है तो जो आंकड़े प्रचारित किए जा रहे हैं, वे सिर्फ सरकारी नौकरियों के हैं. मुद्दा सरकारी नौकरी का नहीं है. ज्यादा नौकरियां तो निजी, संगठित और असंगठित क्षेत्र में पैदा हुई हैं. सात करोड़ युवाओं को चार लाख करोड़ रुपये का ऋण दिया है. तो इन लोगों के कारोबार भी शुरू होंगे. बहुत से लोगों ने अपने कारोबार को बढ़ाया तो वहां लोगों को रोजगार मिला. आप एक हेक्टेयर की सिंचाई करते हैं तो तीन रोजगार तैयार होते हैं.

डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया जैसी पहलें कितनी कारगर रही हैं?

बहुत कारगर रही हैं. 70 लाख युवकों ने पिछले डेढ़-दो साल में कौशल प्राप्त किया है और उसमें 80 फीसदी लोगों को नौकरियां भी मिली हैं. हम इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं. इसके लिए तीन साल का एक्शन प्लान बना है, सात साल की रणनीति और 15 साल की दीर्घकालीन योजना. इससे एक नई सोच दिखाई देती है, जिसकी परिचायक मोदी सरकार है. मोदी जी जर्मनी में आ रहे हैं, आप भी देखिएगा कितनी सार्थक बैठक होगी. कितनी लंबी चर्चा होगी, कितनी तैयारी के साथ बैठक होगी. यह सिर्फ खाना पूर्ति का दौरा नहीं है. यह बहुत सघन सहयोग है. भारत में अध्यापकों को जर्मन भाषा पढ़ाने की ट्रेनिंग जर्मन अध्यापकों ने यहां आकर दी है. हम अभी जर्मनी में अध्यापक भेज कर वहां के अध्यापकों को हिंदी पढ़ाने की ट्रेनिंग देंगे. क्योंकि यह तय हुआ है कि भारत में जर्मन की पढ़ाई को प्रोत्साहन दिया जाएगा और जर्मनी में हिंदी पढ़ने को. जर्मनी ने हिंदी को स्वीकार किया है. तो बहुत सारे पहलें हैं.

लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ टेक्नीकल एजुकेशन की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत के 60 प्रतिशत इंजीनियरिंग ग्रैजुएट काम पर रखे जाने लायक नहीं हैं.

यह हमें विरासत में मिला है. इसीलिए हम इंजीनियरिंग शिक्षा की पूरी पुनर्रचना कर रहे हैं. इसी के तहत इंजीनियर काबिल बनेंगे. हमने एक काम किया. जर्मनी में भी ऐसा होता है. पहली बार भारत में स्मार्ट इंडिया हेकेथॉन किया. इसमें दो हजार इंजीनियरिंग कॉलेजों के 42 हजार छात्रों ने हिस्सा लिया. हमने उनको छह सौ स्टेटमेंट प्रोब्लम दिए, जिनके समाधान निकल सकते हैं और ये लोगों के काम आएंगे, लेकिन अभी उनके समाधान नहीं हैं. छह छह छात्रों की सात हजार टीमें बनीं. उन्होंने तीन महीने अपने विषयों पर काम किया. हमें खुशी है कि पहली बार भारत के छात्रों को हैंडसम प्रोजेक्ट करने को मिला और इसमें 200 समाधान निकल आए. सारी रिसर्च लैब को बेहतर बनाया जा रहा है. इसके लिए तीन अरब डॉलर का फंड मार्केट से जुटाया जा रहा है. हम प्राथमिक क्षेत्र में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने पर जोर दे रहे हैं और उच्च शिक्षा में अनुसंधान और शोध पर जोर दे रहे हैं. आज छह सौ विद्यार्थियों के स्टार्टअप हॉस्टल रूम से शुरू हो गए हैं. पहले ऐसा नहीं होता था.

भारत अफ्रीका के साथ स्किल शेयरिंग कार्यक्रम चला रहा है. भारत उन्हें क्या क्या सिखा सकता है?

हम उच्च शिक्षा में हजारों अफ्रीकी छात्रों को स्कॉलरशिप देते हैं और आईआईटी से लेकर बाकी संस्थानों में उनके लिए जगह भी बनाते हैं. अफ्रीका के सभी 54 देशों से हमारे यहां छात्र आते हैं. यह संख्या बढ़े, इसके लिए हम कोशिश कर रहे हैं. वहां भी अच्छे अध्यापक हैं. हम चाहते हैं कि वे भी यहां पढाने आएं.

लेकिन भारत में अफ्रीकी छात्रों से दुर्व्यवहार के मामले भी सामने आए हैं.

देखिए एकाध घटना होती है, जिसपर कड़ी कार्रवाई की गई. सबने निंदा की. यह भारत की संस्कृति नहीं है. यहां हजारों छात्र रहते हैं, लेकिन कभी कुछ नहीं होता है.

भारत में सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर अकसर सवाल उठाए जाते हैं. आप इस बारे में क्या सोचते हैं?

इसके लिए हमने कई बड़े फैसले लिए हैं जो बीते दस साल में नहीं लिए गए. पहले सारा जोर इनपुट और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर था, हमने शिक्षा का पूरा जोर लर्निंग आउटकम पर दिया है. यह निश्चित और परिभाषित किया गया है कि बच्चे को पहली, दूसरी, तीसरी कक्षा में क्या सीखना चाहिए. माता पिता को बताया जाएगा कि अगर आपका बच्चा छठी क्लास में है तो उसे क्या क्या आना चाहिए. तो इससे टीचर, माता पिता और छात्र, सबकी जवाबदेही बनेगी. पांचवीं और आठवी कक्षा में बच्चों को रोकने का अधिकार भी राज्यों को दे रहे हैं. मार्च में जो फेल होंगे वे जून में परीक्षा देंगे. जून में भी फेल होंगे तो उन्हें उसी कक्षा में रखा जाएगा.

आम चुनावों से पहले सरकार के बाकी बचे दो साल में किन मुद्दों और क्षेत्रों पर जोर होगा?

एक भी घर और गांव बिजली के बिना नहीं रहेगा. सरकारी स्कूलों में शिक्षा की क्वॉलिटी में जबरदस्त सुधार दिखेगा. उच्च शिक्षा में शोध और अनुसंधान पर जोर होगा ताकि ब्रेनड्रेन की बजाय ब्रेनगेन शुरू हो. इसके अलावा सड़क, बिजली और पानी, रेलवे और एयर कनेक्टिविटी की सुविधा बेहतर होगी. फाइबर ऑप्टिक का नेटवर्क छह लाख गांवों तक पहुंचेगा जो अभी डेढ़ लाख गांवों तक पहुंचा है. यह हम करेंगे. डिजिटल कनेक्टिविटी, डिजिटल एंपावरमेंट, ट्रांसपेरेंसी और डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर जैसे जो भी काम शुरू किए गए हैं उन्हें पूरा किया जाएगा.

इंटरव्यू: अशोक कुमार