डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान डील से बाहर जा कर "गलती" की है
१० मई २०१८अमेरिका के ईरान के साथ परमाणु करार से बाहर निकलने के बाद इसके भविष्य को लेकर आशंकाएं जताई जा रही हैं. हालांकि फ्रांस और जर्मनी ने इस करार को जारी रखने की बात कही है. इमानुएल माक्रों का कहना है कि इलाके में स्थिरता को बचाए रखने के लिए यूरोप को 2015 के परमाणु करार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को फिर से पुष्ट करने की जरूरत है. माक्रों ने कहा, "यूरोपीय फैसला हमें ईरान को तुरंत (परमाणु) गतिविधियां शुरू करने और तनाव को फैलने से रोकने में मदद करेगा. सबसे जरूरी है कि मध्यपूर्व में शांति और स्थिरता रहे."
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के ऐतिहासिक करार से बाहर निकलने का एलान करने के एक दिन बाद ही माक्रों ने कहा कि इस वक्त यूरोप बहुपक्षीय व्यवस्था का गारंटर है. माक्रों के मुताबिक, "यूरोप के लिए एक ऐतिहासिक लम्हे में हम खड़े हैं. दूसरे विश्व युद्ध के बाद जो बहुपक्षीय व्यवस्था बनाई गई और जब कभी कभी यह लड़खड़ा जाती है तो उसे कायम रखने की जिम्मेदारी यूरोप की है."
माक्रों से पूछा गया कि जब वो अमेरिकी दौरे पर थे तो उन्होंने ईरानी परमाणु करार को बचाने की कोशिश की थी, फिर वो नाकाम क्यों हो गए? इसके जवाब में माक्रों ने कहा, "मेरे ख्याल से सबसे जरूरी है मध्यपूर्व में शांति और स्थिरता. वॉशिंगटन में भी मैंने यही कहा था, मैं समझ गया था कि राष्ट्रपति ट्रंप 2015 के करार से बाहर निकलना चाहते हैं और हमारी संयुक्त प्रेस वार्ता में मैंने सुझाव दिया कि हमें विस्तृत ढांचे पर काम करना चाहिए. मुझे इस फैसले पर बेहद अफसोस है. मुझे लगता है कि यह गलती है. इसलिए जरूरी है कि हम यूरोपीय लोग 2015 के करार पर कायम रहें और (ईरानी) राष्ट्रपति रोहानी से भी मैंने यही कहा है."
2015 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्य और जर्मनी ने ईरान के साथ परमाणु करार किया था जिसके बाद ईरान ने अपनी परमाणु गतिविधियां बंद कर दीं और उस पर प्रतिबंधों में ढील दी गई. अब डॉनल्ड ट्रंप ने इस करार से बाहर निकलने का फैसला कर लिया है.
माक्रों ने बताया कि उन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप से कहा, "सब कुछ खत्म मत करिए, अगर ये चीजें आपको चिंता में डालती हैं तो आइए इस ढांचे को मजबूत करते हैं और उन्होंने तनाव पैदा करने का फैसला किया. मेरा ख्याल है कि उसे विस्तार दिया जाना चाहिए था, यह काम हम यूरोपीय देशों को करना है, यूरोपीय संघ, यूके, जर्मनी और फ्रांस को. हमें यह साबित करना होगा कि हम 2015 के करार से जुड़े हुए हैं ताकि ईरानी सरकार अपनी गतिविधियां ना शुरू करे."
डीडब्ल्यू ने उनसे पूछा कि अमेरिका के बगैर इस करार का क्या महत्व रह जाएगा? इसके जवाब में माक्रों ने कहा कि आने वाले हफ्तों और महीनों में "इसी पर हमारा ध्यान होगा. हम ईरान और अपने विदेश मंत्रियों को यह तय करने का अधिकार देंगे."
ऐसे में सवाल उठता है कि इसका उद्देश्य क्या होगा? माक्रों ने कहा, "यही करार था जिस पर हमने दस्तखत किए. एक दस्तखत करने वाला निकल गया है लेकिन बाकी सबने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है. मेरे ख्याल में यह हर लिहाज से दुखद है और हम इस पर अफसोस जता सकते हैं लेकिन जरूरी है कि हम सब इलाके में स्थिरता और शांति पर ध्यान दें.
हाल के समय में ऐसे कई मौके आए हैं जब यूरोप और अमेरिका के बीच तनाव की स्थिति आई है. ईरान का मुद्दा भी अब इसमें शामिल हो गया है. और यह भी कहा जा रहा है कि फिलहाल तो स्थिति काफी खतरनाक लग रही है. तो क्या ट्रांस अटलांटिक संबंधों को नुकसान पहुंचा है? इसके जवाब में माक्रों ने कहा, "कुछ तनाव है लेकिन इसके साथ ही ईरान और हमारे बीच भरोसा भी है. मेरे ख्याल में हम विस्तृत बातचीत के जरिए इससे आगे बढ़ सकते हैं और मैंने पिछले सितंबर में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के दौरान जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल, ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरीजा मे को इसका प्रस्ताव भी दिया था. हम इस दिशा में काम करना चाहते हैं. व्यापारिक स्तर पर भी हमारी कुछ योजनाएं हैं और मेरे ख्याल से इसका भी सम्मान किया जाना चाहिए. हम बहुत मजबूत व्यापारिक ताकत हैं और अमेरिका एक सहयोगी है लेकिन साथ ही हम डब्ल्यूटीओ के नियमों से भी बंधे हैं. सही मायने में यह एक विचारों का सम्मिलन है. हम साथ काम करते हैं और अमेरिका के साथ आतंकवाद के खिलाफ लड़ते हैं. सीरिया में हम अंतरराष्ट्रीय गठबंधन में साथ काम कर रहे हैं. हमारे बीच कुछ असहमतियां हैं लेकिन सबसे जरूरी तौर पर हमारे साझा हित हैं और हम अंतरराष्ट्रीय गठबंधन में काम करने की इच्छा रखते हैं. हम एक ऐतिहासिक मोड़ पर हैं और हमें यह बहुपक्षीय व्यवस्था बनाए रखनी है जो हमने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बनाई. कभी कभी यह खतरे में पड़ जाती है. हमें एक मजबूत संतुलित उदारवादी व्यवस्था बनानी होगी. जैसा कि मैंने वॉशिंगटन में भी कहा."
डीडब्ल्यू ने माक्रों से पूछा कि यूरोप में वह कुछ सुधार करना चाहते हैं जिसे जर्मनी मंजूरी नहीं दे रहा तो क्या वो चांसलर अंगेला मैर्कल से दुखी हैं? जवाब में माक्रों ने कहा, "बिल्कुल नहीं मैं उनके जवाब का इंतजार कर रहा हूं. जर्मनी ने भी फ्रांस के सुधारों के पूरा होने के लिए लंबा इंतजार किया है और मैं उन्हें यहां अच्छे या बुरे नंबर देने या फिर यह कहने नहीं आया कि मैं दुखी हूं. हम साथ काम करते हैं, हम सहयोगी हैं. मुझे लगता है कि जर्मन लोग जानते हैं कि फ्रांस ने पिछले साल काफी बदलाव किया है. आपमें से बहुत लोग इसके इंतजार में थे. मैं यह नहीं कहता कि जो कुछ भी मैंने कहा है उसे आप पूरी तरह से मान लें या छोड़ दें. मेरे पास महत्वाकांक्षा है. मैं प्रस्ताव बनाता हूं, बल्कि मैं मानता हूं कि यह मेरा कर्तव्य है. मौजूदा स्थिति बहुत अच्छी नहीं है हमें आगे बढ़ना है."
माक्रों ने कहा कि जर्मनी हमेशा यह मानता है कि वह यूरोप का खर्चा उठाता है जो गलत है, फ्रांस भी उतना ही पैसा देता है. लेकिन जब माक्रों से कहा गया कि आप इस वक्त जर्मनी के लोगों से मुखातिब हैं तो वो उनसे क्या कहना चाहेंगे? उनके पास सीधे जर्मन लोगों से बात करने का मौका है.
जवाब में माक्रों ने कहा, "मैं कहता हूं यह पूरी तरह से गलत है. आर्थिक संकट के वक्त से ही यह गलत है. हर किसी ने अपने कोटे के हिसाब से योगदान किया है. हमने हमारे बैंक सिस्टम की मदद नहीं की है, हमने आर्थिक तंत्र की मदद की है हमने देशों की भी मदद की है. इसलिए मैं कहता हूं कि हमें आगे बढ़ कर एक यूरोपीय संघ का बजट बनाना चाहिए जो यूरोजोन के भीतर और बाहर की आर्थिक नीतियों का सम्मिलन हो. हमें ज्यादा एकीकृत आर्थिक नीति की जरूरत है ताकि हमारे पास बजट हो और हम निवेश कर सकें."
माक्रों ने कहा कि वो फ्रांस के फायदे के लिए यह नीति नहीं चाहते. बल्कि वो दूसरे देशों की भी मदद करना चाहता हैं और साथ ही यह भी चाहते हैं कि दूसरे देश भी इसी दिशा में आगे बढ़ें. फ्रेंच राष्ट्रपति के मुताबिक फ्रांस ने पिछले एक साल में कई सुधार किए हैं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा, "बीते 10 सालों में जर्मनी के लिए फायदेमंद स्थिति रही है. जर्मनी ने संकट से पहले ही सुधार करने की समझदारी दिखाई है. उन्हें यूरोजोन के बाहर असंतुलन का भी फायदा हुआ है. ज्यादातर देशों के साथ जर्मनी व्यापारिक संतुलन में फायदे की स्थिति में है. यह हमेशा नहीं चल सकता. अगर हम वर्तमान से आगे नहीं बढेंगे, भविष्य के बारे में नहीं सोचेंगे तो यूरोजोन टूट जाएगा और यूरोप भी. इसलिए फ्रांस का प्रस्ताव फ्रांस के लिए नहीं है. यह पूरे यूरोप के लिए है. मैं अपने देश में सुधारों को जारी रखूंगा और मैं कह सकता हूं कि फ्रांस भी जर्मनी के बिल्कुल बराबर ही योगदान करता है."
इंटरव्यू: मार्क्स हॉफमन