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डेनमार्क में मोटापा घटाने के लिए 'फैट टैक्स'

१२ अक्टूबर २०११

डेनमार्क ने मोटापे पर नियंत्रण के लिए एक नया तरीका निकाला है. सरकार ने क्रीम बटर जैसी बहुत ज्यादा सैचुरेटेड फैट वाली चीजें महंगी कर दी हैं ताकि लोग इन्हें न खाएं. अब दूसरे यूरोपीय देश भी ऐसा करने की सोच रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

डेनमार्क यूरोप का पहला ऐसा देश बन गया है और शायद दुनिया में भी पहला, जहां सैचुरेटेड फैट पर कर लगा दिया गया है. इससे पहले सोडा और कैंडी जैसे मीठे पदार्थों पर भी सिन नाम का कर लगाया गया था.

अक्टूबर की शुरुआत में डेनमार्क के लोगों को 2.3 प्रतिशत से ज्यादा वसा वाले सभी पदार्थों पर सवा दो यूरो प्रति किलो ज्यादा कीमत देनी है, करीब 144 रुपये ज्यादा. चिप्स के पैकेट पर 9 सेंट, बटर के छोटे पैकेट पर 21 सेंट और हैम्बर्गर पर 30 सेंट ज्यादा.

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तस्वीर: Fotolia/Birgit Reitz-Hofmann

मोटापे से लड़ाई

डेनमार्क की सरकार का कहना है कि सैचुरेटेड फैट (क्रीम, बटर आदि) दिल की बीमारियों और कैंसर का मुख्य कारण हैं. सरकार को उम्मीद है कि कर लगाने से मोटापे की समस्या कम होगी और नागरिकों का जीवन लंबा हो सकेगा. इस पूरे मामले में एक और अहम बात है कि सरकार मोटापे से होने वाली बीमारियों के इलाज से जुड़े खर्चे बचाना चाहती है.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ब्रिटिश लोगों की खाने की आदतें बदलना चाहते हैं. सितंबर में हंगरी ने ज्यादा वसा, शकर और नमक वाले पदार्थों पर कर लगा दिया है. सॉफ्ट ड्रिंक्स और बीयर भी इस श्रेणी में हैं. इससे मिलने वाले करीब सात करोड़ यूरो स्वास्थ्य सेवा में इस्तेमाल किए जाएंगे.

हंगरी में मोटापा बाकी यूरोपीय देशों से तीन फीसदी ज्यादा है. वहां 18 प्रतिशत लोग मोटे हैं.

रोमानिया और फिनलैंड में भी इस तरह के करों पर काफी समय से बहस चल रही है. अब डेनमार्क के फैसले के बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा कि वह भी मोटापे की समस्या से निबटने के लिए देश में इस तरह के टैक्स लगाना चाहते हैं.

Übergewichtiger Wassersportler auf der Warnow
तस्वीर: picture alliance/dpa

स्वास्थ्य के लिए होने वाले खर्चे बहुत तेजी से बढ़े हैं जिन्हें कम करने के लिए ठोस कार्रवाई करना बहुत जरूरी है और उपभोक्ताओं और उत्पादकों दोनों की आदतें बदलना भी.

मतभेद

इस कर पर डेनमार्क के कुछ लोग तो कहते हैं कि यह अच्छा कदम है. ट्रांसलेशन कंपनी में काम करने वाले फिन जूल हंसन कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह अच्छा विचार है कि कर लगा कर आदतें बदलने की कोशिश की जाए क्योंकि कई लोग बिना दबाव के अपनी आदतें बदल ही नहीं पाते." वहीं डेनमार्क के उद्योग संघ के खाद्य निदेशक लिनेट जूल कहते हैं, "कर ठीक नहीं. जिस तरह से इसे लागू किया गया है, वह उपभोक्ताओं के लिए बिलकुल पारदर्शी नहीं है और कंपनियों के लिए बहुत कागजी काम है."

सफल भी

डॉयचे वेले से बातचीत में यूरोपीय पब्लिक हेल्थ एलियांस की मोनिका कोसिंस्का ने कहा, "अगर तंबाकू और अल्कोहल की बात की जाए तो कर लगाना एक सफल तरीका है. जहां तक खाने की बात है, हमें स्वस्थ खाने की आदतों को प्रोत्साहन देना चाहिए और हानिकारक परिणामों वाले खाने के विकल्प बाजार से ही हटाने चाहिए. और इसके लिए हानिकारक वस्तुओं पर कर लगाना एक कदम है."

नाराजगी

खाद्य कानून और विज्ञान के लिए जर्मन संघ के क्रिस्टोफ सोकोलोवस्की कहते हैं, "तंबाकू पर कर लगाने का असर यह हुआ कि सिगरेट का अवैध व्यापार बढ़ गया. अल्कोपॉप्स पर कर लगाने के बाद दूसरे हार्ड ड्रिंक की मांग बढ़ गई."

Dänen führen Fettsteuer für Lebensmittel ein
तस्वीर: picture-alliance/dpa

वहीं ब्रसेल्स के लॉबी ग्रुप फूड ड्रिंक यूरोप का कहना है, "खाद्य और पेय पदार्थों पर कर लगाना गलत कदम है. कर से समाज के गरीब लोगों पर असर पड़ेगा क्योंकि उनकी आय का अधिकतर हिस्सा हफ्ते की खरीददारी में जाता है. उपभोक्ताओं को जानकारी, कर और स्वस्थ खाने के बारे में जागरुक बनाने की जरूरत है."

जर्मन सरकार तक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थों पर कर लगाने को तैयार नहीं है. जर्मन करदाता असोसिएशन की अनिता कैडिंग जर्मनी में वसा पर कर लगाने का कड़ा विरोध करती हैं. उनका कहना है, "कर लगाने का प्रमुख कारण सरकार के लिए राजस्व पैदा करना है. जैसे ही इसे आदतें बदलने जैसे काम या सैचुरेटेड फैट जैसी वस्तुओं पर रोक लगाने के लिए के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यह जटिल हो जाता है और नागरिकों की समझ से बाहर भी."

रिपोर्टः जॉन ब्लाउ/आभा एम

संपादनः ए कुमार

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