डीएमके ने सरकार से समर्थन वापस लिया
१९ मार्च २०१३चेन्नई में यूपीए सरकार से बाहर निकलने का एलान करते हुए करुणानिधि ने कहा, श्रीलंका और तमिलों के मुद्दे पर "हम केंद्र सरकार के रुख को स्वीकार नहीं कर सकते." करुणानिधि की पार्टी डीएमके 2009 से यूपीए 2 सरकार में शामिल थी. कांग्रेस के साथ उनका चुनाव से पूर्व ही गठबंधन था.
सात महीने बाद यह दूसरा मौका है जब यूपीए सरकार से दूसरी पार्टी ने समर्थन वापस लिया है. सितंबर 2012 में तृणमूल कांग्रेस यूपीए गठबंधन से बाहर हुई थी. तृणमूल के बाहर होने से केंद्र सरकार अल्पमत में आ चुकी थी. डीएमके के समर्थन वापस लेने से अल्पमत और अल्प हो चुका है. डीएमके यूपीए सरकार में कांग्रेस के बाद दूसरी बड़ी राजनीतिक पार्टी थी. 18 सांसदों वाली डीएमके के केंद्र में पांच मंत्री थे. कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव अब समय से पहले भी हो सकते हैं, शायद अगले साल के शुरुआती छह महीनों में.
नाटक की गंभीरता
लेकिन यह सिर्फ अटकलें भर हैं. कांग्रेस अब भी डीएमके मनाने में लगी है. 2009 में श्रीलंका में जब गृहयुद्ध अंतिम चरण में था तो भी भारत में यूपीए की सरकार थी. उस सरकार में भी करुणानिधि शामिल थे. करुणानिधि उस वक्त तमिनाडु के मुख्यमंत्री भी थे. तब युद्ध रोकने के लिए इतना शोरगुल नहीं हुआ. न ही श्रीलंका में रह रहे तमिलों के हित याद आए. लेकिन फिलहाल खतरा अपनी कुर्सी पर है तो तमिलों के आंसू दिखाई पड़ रहे हैं. यूपीए अध्यक्ष और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी भी अब तमिल अस्मिता की बात कर रही है. वित्त मंत्री पी चिदंबरम समेत कांग्रेस तीन बड़े नेता करुणानिधि को मनाने के लिए इस वक्त चेन्नई में हैं. चिदंबरम के मुताबिक अगर सरकार संसद में एक प्रस्ताव लाकर श्रीलंका की कार्रवाई की निंदा करें तो करुणानिधि का क्रोध ठंडा पड़ सकता है. वित्त मंत्री ने कहा, "अगर कैबिनेट के सामने कोई प्रस्ताव लाया गया तो वह अपने फैसले की समीक्षा करेंगे."
खुद डीएमके भी ऐसे संकेत दे रही है कि अगर सरकार ने श्रीलंका के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया तो वह खुशी खुशी कांग्रेस का हाथ फिर थाम लेगी. डीएमके के प्रवक्ता केटीएस इलनगोवन ने कहा, "मंत्रियों को अब भी अपना इस्तीफा भेजना है." सीबीआई जांचों से दुखी रहने वाले करुणानिधि खुद कह रहे हैं कि वह सरकार को बाहर से भी समर्थन देते रह सकते हैं.
मामला श्रीलंका का
दरअसल इसी हफ्ते संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार काउंसिल में श्रीलंका में हुए युद्ध अपराधों की जांच के लिए एक प्रस्ताव लाया जा रहा है. अमेरिका की अगुवाई में लाए जा रहे प्रस्ताव इसी हफ्ते पेश किए जाने की उम्मीद है. प्रस्ताव में श्रीलंका से तमिल विद्रोहियों के खिलाफ हुई आखिरी लड़ाई के दौरान हुए युद्ध अपराधों की जांच के लिए कहा जाएगा. 2009 की निर्णायक कार्रवाई में श्रीलंकाई सेना ने देश के उत्तरी और पश्चिमोत्तर इलाकों से तमिल विद्रोहियों को साफ कर दिया. 29 साल लंबे गृहयुद्ध के आखिरी चरण में श्रीलंकाई सेना पर हजारों बेकसूर तमिलों की हत्या के आरोप लगे. बार बार ऐसे वीडियो सामने आते रहे जिनमें सेना को निहत्थे लोगों को मारते हुए देखा जा सकता है.
हाल ही में आए एक वीडियो में एलटीटीई प्रमुख वी प्रभाकरण के बेटे का शव दिखाया गया है. हत्या से पहले प्रभाकरन का 12 साल का बेटा सेना के बैरक में बैठा है, वह कुछ खा रहा है लेकिन कुछ ही समय बाद उसका शव जमीन पर पड़ा दिख रहा है. सेना पर आरोप हैं कि उसने 12 साल के बच्चे की सुनियोजित ढंग से हत्या की. युद्ध अपराध के आरोप तमिल विद्रोहियों पर भी लगे. संयुक्त राष्ट्र ने आरोपों की जांच अंतरराष्ट्रीय जांचकर्ताओं से कराने की मांग की, श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने इसे बार बार ठुकरा दिया. अब प्रस्ताव के जरिए कोलंबो और राजपक्षे को कसने की तैयारी हो रही है.
डीएमके और करुणानिधि की मांग है कि भारत यूएन में आने वाले प्रस्ताव का समर्थन करे. विदेश नीति के लिहाज से भारत ऐसा करने में हिचक रहा था. लेकिन करुणानिधि सरकार को 'करो या मरो' की नीति पर ले आए हैं. अगर डीएमके सरकार से बाहर हुई तो यूपीए को मुलायम सिंह यादव और मायावती के सहारे की सख्त जरूरत पड़ जाएगी. भारतीय संसद में बहुमत के लिए 271 सीटों की जरूरत होती है. फिलहाल यूपीए अल्पमत में है, उसके पास (डीएमके को मिलाकर) 246 सीटें हैं. डीएमके के बाहर जाने से सरकार के पास सिर्फ 228 सीटें रहेंगी. मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी केंद्र सरकार में शामिल नहीं है. समाजवादी पार्टी के पास 22 लोकसभा सीटें हैं. वहीं मायावती की बीएसपी के पास 21 सीटें है.
ओएसजे/एमजे (एएफपी, पीटीआई)