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समाज

डिजीटल युग में खतरे में हैं लोकतांत्रिक चुनाव

मथियास फॉन हाइन
१८ फ़रवरी २०२०

फेसबुक, ट्विटर और दूसरे सोशल मीडिया का चुनावों में धोखाधड़ी के लिए दुरुपयोग हो रहा है. म्यूनिख के सुरक्षा सम्मेलन में इस बात पर चर्चा हुई कि ऐसे में लोकतंत्र की सुरक्षा कैसे हो?

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Symbolbild Twitter Fake News
तस्वीर: Imago Images/ZUMA Press/A. M. Chang

इस साल सिर्फ अमेरिका में ही चुनाव नहीं हो रहे हैं. यदि संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान के नाम पर बनी संस्था कोफी अन्नान फाउंडेशन ने सही गिनती की है तो 2020 में दुनिया भर में करीब 80 चुनाव होंगे. और उन सबके बारे में एक ही सवाल पूछा जा रहा है, विदेशी ताकतों और घरेलू हितों से उनकी रक्षा कैसे हो जो धांधली के लिए नई तकनीक, सोशल मीडिया और गलत सूचना के प्रसार का काम कर सकते हैं. कोफी अन्नान फाउंडेशन ने डिजीटल युग में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक चुनावों से जुड़े इस सबसे महत्वपूर्ण सवाल का जवाब देने की कोशिश की है.

कोफी अन्नान फाउंडेशन की रिपोर्ट म्यूनिख के सुरक्षा सम्मेलन में जारी की गई. रिपोर्ट में खासकर दुनिया के दक्षिणी हिस्से पर ध्यान दिया गया है, जहां अफ्रीका में अक्सर चुनाव नतीजों पर विवाद खूनी संघर्ष में बदल जाता है. रिपोर्ट के अनुसार वहां ऐसी धांधलियां संभव हैं जिनका पता न चले. इन देशों में निगरानी के तंत्र और स्वतंत्र संस्थानों का अभाव है. रिपोर्ट का कहना है कि आने वाले दिनों में दक्षिण के देशों में चुनावों में इंटरनेट में नफरत, गलत सूचना, विदेशी हस्तक्षेप, घरेलू धोखाधड़ी की घटनाएं आम हो सकती हैं.

अफ्रीका में परीक्षण

रिपोर्ट पेश करने के दौरान मंच पर एस्तोनिया के पूर्व राष्ट्रपति टोमस हेंडरिक इव्स भी मौजूद थे. एक देश जिसके पास विदेशी ताकतों के हस्तक्षेपों और डिजीटल नेटवर्क पर हमलों का व्यापक अनुभव है. 2007 में एस्तोनिया पर एक बड़ा हैकिंग हमला हुआ था, जिसने इस डिजीटलाइज्ड मुल्क को अस्तव्यस्त कर दिया था. हैकिंग हमलों का निशाना सरकारी संस्थान थे जिनमें एस्तोनिया की संसद, राष्ट्रपति का दफ्तर और विभिन्न मंत्रालयों के अलावा बैंक और मीडिया हाउस भी शामिल थे. 2009 में रूसी सरकार की करीबी युवा संगठन नाशी के एक अधिकारी ने हमलों के पीछे होने की जिम्मेदारी ली.

डॉयचे वेले के साथ बातचीत में इव्स ने कुख्यात डाटा अनेलिसिस कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका को आड़े हाथों लिया. उसने 2016 में न सिर्फ ब्रेक्जिट पर हुए जनमत संग्रह के दौरान बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में डॉनल्ड ट्रंप के चुनाव के समय भी भूमिका निभाई थी. इव्स का कहना है कैंब्रिज एनालिटिका इससे पहले भी दक्षिण के कई देशों में ग्राहकों की ओर से चुनाव नतीजों में हेरफेर करने के लिए सक्रिय था. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 2013 और 2017 में केन्या के चुनावों में हस्तक्षेप हुआ था. इव्स कहते हैं, "जब उन्होंने देखा कि उनके तरीके काम कर रहे हैं, तो उन्होंने उनका ट्रांस अटलांटिक देशों में भी इस्तेमाल किया."  

राजनीतिज्ञों की चुनौती

लोकतंत्र के केंद्रीय अंग समझे जाने वाले चुनावों की रक्षा के लिए रिपोर्ट में 13 कदम सुझाए गए हैं. इनमें उम्मीदवारों और पार्टियों से ये मांग भी शामिल है कि वे जीतने के लिए चुनावों में धांधली नहीं करेंगे, चोरी के मटीरियल का इस्तेमाल नहीं करेंगे, बदली गई तस्वीरों को प्रचार में नहीं लगाएंगे. इसके लिए संसदों को भी सक्रिय होना होगा. उन्हें स्पष्ट करना होगा कि राजनीतिक प्रचार क्या है. उन्हें सोशल मीडिया कंपनियों पर राजनीतिक प्रचार का ऑर्डर देने वालों का नाम जाहिर करने के लिए दबाव डालना होगा. इंटरनेट प्लेटफॉर्म चलाने वालों को भी पारदर्शिता लानी होगी. यूजर्स को मौका देना होगा कि वे राजनीतिक विज्ञापनों को अस्वीकार कर सकें.

रिपोर्ट के लेखक एलेक्स स्टामोस कभी फेसबुक के सुरक्षा प्रमुख रह चुके हैं. अब वे अमेरिका की प्रसिद्ध स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में हैं. उनके पास चुनाव के दौरान सरकारी संस्थानों और सोशल मीडिया के सहयोग की एक सकारात्मक मिसाल है. 2017 में जर्मनी के संसद के चुनावों के दौरान  फेसबुक ने जर्मनी के सूचना तकनीक सुरक्षा दफ्तर के साथ निकट सहोयग किया था. उस समय फेसबुक ने हजारों फेक अकाउंट बंद कर दिए.

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