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समाज

ट्रेनी पाने के लिए फेसबुक की मदद

महेश झा
४ अप्रैल २०१८

अर्थव्यवस्था ठीक से चल रही हो तो अक्सर कामगारों का मिलना मुश्किल हो जाता है. जर्मनी की घरों में शीशा लगाने वाली एक कंपनी ऐसा ही संकट झेल रही थी. कंपनी के मालिक ने फेसबुक का इस्तेमाल किया और कामयाब रहे.

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Fachkräfte verzweifelt gesucht
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Assanimoghaddam

जर्मनी के उत्तरी शहर कुक्सहाफेन में एक शीशे का काम करने वाले एक वर्कशॉप को व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए लोग नहीं मिल रहे थे. कंपनी हर साल दो प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण देती है और ट्रेनिंग ठीक से पूरा करने पर नौकरी की भी संभावना रहती है. मास्टर कारीगर स्वेन स्टैर्त्स को जब ट्रेनी नहीं मिले तो उन्होंने अपने काम का एक मजेदार वीडियो बनाकर फेसबुक पर डाला.

वीडियो को तीस लाख लोगों ने देखा. वीडियो में वे शीशे की प्लेट गिरा देते हैं और वह टुकड़ों में बिखर जाती है. उसके सामने खड़े होकर वे कहते हैं कि उन्हें दो प्रशिक्षुओं की जरूरत है. वे कहीं के हों, और कोई भी पढ़ाई की हो, लेकिन भरोसेमंद होने अत्यंत जरूरी है. ट्रेनिंग के दौरान सामान्य से 100 यूरो ज्यादा तनख्वाह, बीच में होने वाली परीक्षा पास करने पर 300 यूरो के आर्थिक इनाम के अलावा पक्की नौकरी का भी वादा किया. इसके अलावा उन्होंने भावी प्रशिक्षुओं को ये भरोसा भी दिलाया कि वे उनके लिए हमेशा उपलब्ध रहेंगे.

ट्रेनी खोजने के प्रयास में स्टैर्त्स को कामयाबी मिले. आखिर में उन्होंने 15 लोगों को इंटरव्यू के लिए बुलाया और उनमें से तीन को चुना. हालांकि उनके यहां सिर्फ दो ट्रेनी की जगह थी लेकिन अब दो लड़के और एक लड़की मास्टर कारीगर के यहां शीशे का काम सीख रहे हैं. उनका वर्कशॉप घर की जरूरतों के हिसाब से खिलड़की, दरवाजे और कमरों के डिवाइडर के लिए शीशे तैयार करता है.

जर्मन व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार 2016-2017 में हैंडीक्राफ्ट और कारीगरी के क्षेत्र में करीब 10 प्रतिशत जगहें प्रशिक्षुओं के अभाव में खाली रह गयी थी. इसलिए इन क्षेत्रों के में काम करने वाली कंपनियां अलग अलग तरीकों से स्कूल पास करने वाले युवा लोगों को आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं. कई जर्मन प्रांतों में तो मास्टर कारीगरों को सरकारें आर्थिक मदद भी दे रही हैं ताकि वे प्रशिक्षण का काम जारी रखें.