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विवाद

ट्रंप पर कैसे भरोसा करे उत्तर कोरिया?

११ मई २०१८

ईरान के साथ परमाणु करार तोड़ने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप 14 जून को सिंगापुर में उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन से मिलेंगे. ट्रंप, उन को इस बात का यकीन कैसे दिलाएंगे कि वो अपनी जबान के पक्के हैं?

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USA Trump verlässt den Raum ARCHIV
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/C. May

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के ईरान के साथ परमाणु करार से बाहर निकलने के कुछ ही घंटे बाद अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग पहुंचे. उत्तर कोरिया के आला नेतृत्व को उन्होंने संदेश दिया कि अगर आप परमाणु हथियार छोड़ेंगे तो हम अपने प्रतिबंधों में ढील देंगे और आप पर हमला नहीं करेंगे. लेकिन तब तक किम को पता चल चुका था कि अमेरिका ईरान के साथ करार तोड़ चुका है. वॉशिंगटन के वादे को लेकर वहां भी गहरा अविश्वास है.

समझौतों की एक्सपायरी डेट

अमेरिका और ईरान के परमाणु करार के टूटने से दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन भी परेशान हैं. कई महीनों की कोशिश के बाद वह उत्तर कोरियाई नेतृत्व को शांतिपूर्ण बातचीत की राह पर लाए. लेकिन साझेदार देशों की अनसुनी करते हुए कदम उठाने वाले ट्रंप के फैसलों से दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति भी खिन्न हैं.

अमेरिकी विशेषज्ञ भी अपने राष्ट्रपति के कदमों को आलोचना भरी नजरों से देख रहे हैं. बराक ओबामा के कार्यकाल में उप विदेश मंत्री रह चुके एंटोनी ब्लिंकन ने ट्विटर पर सवाल करते हुए पूछा कि क्या किम अमेरिकी मध्यस्थकारों पर भरोसा करेंगे, वो भी तब जब ट्रंप "मनमाने ढंग से समझौतों को तोड़ते हैं."

विपिन नारंग, अमेरिका के प्रतिष्ठित कॉलेज मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पॉलिटिकल साइंस के एसोशिएट प्रोफेसर हैं. उनकी राय भी ब्लिंकन से काफी मिलती है. ट्वीट के जरिए नारंग ने कहा, ट्रंप का फैसला "दुनिया भर में इस बात का मजबूत रिमाइंडर है कि समझौते उलटे भी जा सकते हैं और उनकी एक्सपायरी डेट भी हो सकती है."

Muammar Al Gaddafi Portrait
गद्दाफी का उदाहरण सबके सामनेतस्वीर: Christophe Simon/AFP/Getty Images

लीबिया मॉडल भी फेल

अप्रैल 2018 में ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बॉल्टन ने एलान करते हुए कहा कि वह उत्तर कोरिया के निशस्त्रीकरण के लिए "लीबिया के मॉडल से प्रभावित" हैं. सन 2000 के दशक में लीबिया के तत्कालीन शासक मुअम्मर गद्दाफी ने पश्चिमी दबाव के चलते परमाणु कार्यक्रम छोड़ दिया.

लीबिया मॉडल से प्रभावित बॉल्टन यह बताने में नाकाम रहे कि 2011 में लीबिया की सरकार को गिरा दिया गया. और इस दौरान पश्चिम ने हवाई हमले कर गद्दाफी के विरोधियों की मदद की. गद्दाफी को भीड़ ने बर्बर तरीके से मारा. लीबिया के घटनाक्रम की वजह से ही प्योंग्यांग के सख्त मिजाज अधिकारी हर कीमत पर परमाणु हथियार बरकरार रखना चाहते हैं. परमाणु हथियारों को वो जीवन बीमा समझते हैं.

भारी चूक

विदेश नीति की नजर से देखें तो प्योंगयांग के साथ होने वाली बातचीत से पहले ही वॉशिंगटन की ईमानदारी पर संदेह पैदा हो गया है. अभी तक उत्तर कोरिया ने यही इशारा दिया है कि परमाणु निशस्त्रीकरण तभी मुमकिन है जब अमेरिका के साथ शांति समझौता हो. लेकिन विदेश मंत्री पोम्पेओ ने लीबिया मॉडल का जिक्र कर जो गलती की है, उससे कई शंकाएं पैदा हो गई हैं. प्योंगयांग जाते हुए विमान में पोम्पेयो ने उत्तर कोरिया के शासक को "चेयरमैन उन" कहा. विदेश मंत्री को इतना भी नहीं पता था कि उत्तर कोरियाई शासक का पारिवारिक नाम किम है.

फाबियान क्रेचमर/ओएसजे