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समाज

पकिस्तान कपड़ा मजदूरों को दो मिनट भी नसीब नहीं

२३ जनवरी २०१९

बाजार में जा कर महंगे कपड़े खरीदते समय शायद ही कोई सोचता हो कि उसे तैयार करने वाला कौन होगा और किस हाल में जीता होगा. पाकिस्तान के कपड़ा मजदूरों के हालात दयनीय हैं.

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Textilfabrik in Pakistan
तस्वीर: picture-alliance/dpa

दक्षिण एशिया के कई देशों में कपड़े की मिल हैं जहां से कपड़े तैयार कर दुनिया भर में भेजे जाते हैं. 2013 में बांग्लादेश में राना प्लाजा नाम की इमारत के ढह जाने के बाद वहां के मजदूरों की सच्चाई दुनिया के सामने आई. पाकिस्तान में हालात बहुत अलग नहीं हैं. कागज पर तो नीतियां बनी हैं लेकिन इन्हें अमल में नहीं लाया जाता.

पाकिस्तान की कपड़ा मिल के मजदूर दिन रात अमानवीय परिस्तिथियों में काम करने पर मजबूर हैं. कहीं मालिक मार पिटाई करता है, कहीं टॉयलेट तक जाने के लिए दो मिनट भी नहीं दिए जाते और कहीं तो महिलाओं को छेड़छाड़ और कई बार तो बलात्कार तक का सामना करना पड़ता है.

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में डेढ़ करोड़ मजदूर ऐसे हालात से जूझ रहे हैं. एक बयान में ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया अध्यक्ष ब्रैड एडम्स ने कहा, "पाकिस्तान सरकार लंबे समय से देश के कपड़ा मजदूरों के अधिकारों को बचाने की अपनी जिम्मेदारी को नजरअंदाज करती आई है."

2012 में एक फैक्ट्री में लगी आग ने 300 जानें लीं. उसके बाद पाकिस्तान सरकार की काफी आलोचना हुई. सरकार ने खानापूर्ती करने के लिए नीतियां तो बनाईं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने 140 मजदूरों से बात की और सबने बताया कि उन्हें ओवरटाइम करने पर मजबूर किया जाता है और बीमार होने पर भी छुट्टी नहीं मिलती.

वहीं पाकिस्तान की दो बड़ी कपड़ा मिल एसोसिएशनों ने इससे इंकार करते हुए कहा है कि अगर ऐसा होता तो अंतरराष्ट्रीय ब्रांड वहां से सामान ही नहीं खरीदते. ऑल पाकिस्तान टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हामिद तुफैल खान ने कहा, "हमारे सदस्य दुनिया भर के सबसे बड़े ब्रांड के लिए काम करते हैं और वे मजदूरों और पर्यावरण से जुड़े राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पूरी तरह पालन करते हैं."

एक अन्य एसोसिएशन रेडीमेड गारमेंट्स मैनुफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मुबाशीर नसीर बट ने टॉयलेट के लिए ब्रेक ना दिए जाने पर कहा, "अगर वे वहां एक घंटा बिताने वाले हैं, तो जाहिर है ऐसा तो नहीं होने दिया जाएगा." इसी तरह सिंध प्रांत के एक अधिकारी का कहना था, "अगर मजदूर नाखुश होते, तो वो काम करने ही नहीं जाते."

इसके विपरीत एक मजदूर फैजा ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया, "अगर कोई महिला बाथरूम जाने के लिए पूछती है तो मैनेजर उसका मजाक उड़ाता है और पूछता है कि पीरियड्स चल रहे हैं क्या. हमारे लिए ये बहुत शर्मनाक होता है." अपनी रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच ने लिखा है कि कई फैक्ट्रियों में पीने का साफ पानी नहीं है, कई जगहों पर बीमारी के कारण छुट्टी लेने पर वेतन काटा जाता है और महिलाओं के गर्भवती होने पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है. इसके अलावा कई जगहों पर बाल मजदूरी के मामले भी देखे गए.

ऐसे में पाकिस्तान सरकार से मजदूरों के लिए हालात बेहतर बनाने की अपील की गई है. कपड़ा उद्योग पकिस्तान के कुल निर्यात का लगभग पचास फीसदी है. यहां से अमेरिका, यूरोप और चीन में कपड़ा भेजा जाता है. ज्यादातर मिल मालिकों को डर है कि अगर मजदूरों पर खर्चा किया गया, तो कपड़े के दाम भी बढ़ाने पड़ जाएंगे और ऐसे में अंतरराष्ट्रीय ग्राहक हाथ से निकल सकते हैं.

आईबी/एके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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