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टकराव के बाद न्यायिक प्रणाली पर बहस तेज

प्रभाकर मणि तिवारी
११ मार्च २०१७

भारत के न्यायिक इतिहास में पहली बार जजों में टकराव की स्थिति पैदा हो गई है. सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की एक पीठ ने शुक्रवार को कलकत्ता हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया.

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C S Karnana Kalkutta Highcourt Indien
तस्वीर: DW/P. Tewari

भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की एक पीठ ने शुक्रवार को कलकत्ता हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया. किसी पीठासीन जज के खिलाफ वारंट जारी होने का यह पहला मामला है. इसके बाद उस जज ने भी यहां अपने आवास पर अदालती वारंट जारी करने वाले सात जजों के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं. इस अभूतपूर्व टकराव के बाद न्यायिक प्रणाली पर बहस तेज हो गई है.

मामला

मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक सात-सदस्यीय पीठ ने हाईकोर्ट के कार्यरत जज सीएस कर्णन के खिलाफ जमानती वारंट जारी करते हुए राज्य के पुलिस महानिदेशक को 31 मार्च को उनको अदालत में पेश करने का निर्देश दिया है. न्यायमूर्ति कर्णन को अवमानना के एक मामले के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में पेश होना था. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. कर्णन ने यहां तक कहा कि उनको परेशान करने के आरोप में सीबीआई को सातों जजों के खिलाफ जांच कर संसद में रिपोर्ट पेश करनी चाहिए.

भारत के न्यायिक इतिहास में पहली बार किसी पीठासीन जज पर अदालत की अवमानना का नोटिस जारी किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के न्यायिक और प्रशासनिक अधिकार पहले ही छीन लिए थे. सुप्रीम कोर्ट मद्रास हाईकोर्ट के एक जज की पत्‍नी की याचिका पर भी सुनवाई करेगा. उक्त याचिका में आरोप लगाया गया है कि जस्टिस कर्णन ने उनके पति के खिलाफ झूठे आरोप लगाए और उनके परिवार को परेशान किया.

C S Karnana, Kalkutta Indien
जस्टिस कर्णन पहले भी लगा चुके हैं दलित होने की वजह से प्रताड़ित किये जाने के आरोप.तस्वीर: Justice C S Karnana, Calcutta Highcourt, India

बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन का तबादला मद्रास से कलकत्ता हाईकोर्ट में किया था. तब उन्होंने खुद ही इस आदेश पर रोक लगा दी थी और देश के मुख्‍य न्‍यायाधीश से उन्‍हें स्‍थानांतरित करने पर सफाई भी मांगी थी.

जस्टिस कर्णन शुरुआत से ही कॉलेजियम पर दलित विरोधी नीति अपनाने के आरोप लगाते रहे हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट के 20 जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी को जस्टिस कर्णन को नोटिस जारी किया और पूछा कि इसे कोर्ट की अवमानना क्यों न माना जाए.

विवाद

कोलकाता हाईकोर्ट में नियुक्त जस्टिस कर्णन को मार्च 2009 में मद्रास हाई कोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया था. इसके बाद वह लगातार जजों और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अपने विवादास्पद बयानों की वजह से सुर्खियों में बने रहे हैं. वह वर्ष 2011 से ही आरोप लगाते रहे हैं कि दलित होने की वजह से ही उनको प्रताड़ित किया जा रहा है. उन्होंने उसी साल अनुसूचित जाति राष्ट्रीय आयोग को पत्र लिख कर भी इस आरोप को दोहराया था. बीते साल अपने ट्रांसफर आर्डर के बाद जस्टिस कर्णन ने कहा था कि उनको दुख है कि वह भारत में पैदा हुए हैं और किसी ऐसे देश में जाना चाहते हैं जहां जातिवाद न हो.

पलटवार

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कोलकाता में अपने आवास पर एक विशेष अदालत लगाकर जस्टिस कर्णन ने सीबीआई को मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर समेत सात जजों के खिलाफ जांच का आदेश दिया और रिपोर्ट संसद सचिवालय को सौंपने को कहा. वह कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट उनका मालिक नहीं है और कलकत्ता हाईकोर्ट नौकर नहीं है." जस्टिस कर्णन ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके करियर और जीवन को बर्बाद करने के लिए ही यह वारंट जारी किया है. उन्होंने अपने खिलाफ वारंट जारी करने वाले सातों जजों के खिलाफ मानहानि का मामला दायर करने की धमकी देते हुए राष्ट्रपति से अपने खिलाफ जारी वारंट को रद्द करने की अपील की. उनकी दलील है कि संविधान के मौजूदा प्रावधानों के तहत किसी पीठासीन जज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट न तो सुनवाई कर सकती है और न ही उसे नोटिस जारी कर सकती है. जस्टिस कर्णन कहते हैं कि उनके खिलाफ आरोपों पर सुनवाई और फैसले का अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को है. उन्होंने दोहराया है कि दलित होने की वजह से उनको प्रताड़ित किया जा रहा है.

बहस तेज

सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाईकोर्ट के किसी कार्यरत जज के खिलाफ पहली बार अवमानना के मामले की सुनवाई और आरोपी जज के पलटवार के बाद अब एक बार फिर जजों कि नियुक्ति की प्रक्रिया पर बहस शुरू हो गई है. कर्णन की जज के तौर नियुक्ति करने की सिफारिश करने वाले हाई कोर्ट कालेजियम के तीन में से एक जज ने पिछले साल सार्वजनिक तौर पर कर्णन की नियुक्ति करने के लिए माफी मांगी थी. कलकत्ता हाईकोर्ट की बार एसोसिएशन के एक सदस्य नाम नहीं बताने पर शर्त पर कहते हैं, "मौजूदा टकराव से सबक लेते हुए खासकर हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव जरूरी है. इससे जस्टिस कर्णन जैसे चरित्र व मानसिकता वाले लोगों की ऐसे अहम पदों पर नियुक्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है."

जस्टिस कर्णन को 31 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में पेश होना है. उसी दिन इस मामले की अगली सुनवाई होगी. अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक के समक्ष वारंट की तामील करने की कड़ी चुनौती है. दूसरी ओर, जस्टिस कर्णन किसी भी शर्त पर सुप्रीम कोर्ट नहीं जाने पर अड़े हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में न्यायिक प्रणाली में अपनी किस्म के इस पहले टकराव के और लंबा खिंचने के आसार हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे टकराव न्यायिक प्रणाली के हित में नहीं है. इससे आम लोगों का इस प्रणाली से भरोसा उठ सकता है.