टकराव की कहानी सुनाते काजीरंगा के अनाथ हाथी
२४ मार्च २०१७बचपन में ही अनाथ हो गए हाथी के बच्चों को बहुत ज्यादा देखरेख की जरूरत पड़ती है. भारत के काजीरंगा नेशनल पार्क के वाइल्ड एनिमल रेस्क्यू सेंटर के कर्मचारी हर दिन कई घंटे इन बच्चों को सहलाते और दुलारते हुए गुजारते हैं. अनुभव बताता है कि अगर ऐसा न किया जाए तो नन्हे हाथियों के विकास पर बुरा असर पड़ता है.
सेंटर में 13 बाल गैंडे, कुछ भारतीय चीतल, तेंदुए और कई तरह के वानर भी रहते हैं. ज्यादातर यहां पास के काजीरंगा नेशनल पार्क से आए हैं. इस नन्हे हाथी को एक गड्ढे से निकाला गया. ऐसी घटनाएं अक्सर होती हैं. जानवर आए दिन सड़क हादसों का शिकार भी होते हैं. लेकिन हाथी के बच्चों के लालन पालन में बहुत सी बातों का ख्याल रखना पड़ता है. रेस्क्यू सेंटर के पशु चिकित्सक डॉक्टर पंजित बासुमतारी कहते हैं, "नन्हे हाथियों का प्रतिरोधी तंत्र बहुत अच्छा नहीं होता है. हमें उनके साथ बहुत सावधान रहता होता है. पहले हमेशा नन्हे हाथियों के साथ एक केयरटेकर होता था, लेकिन तब भी कई गलतियां होती थीं. वो हर जगह अपनी सूंड घुसा देते हैं और इंसान या दूसरी जगहों से इंफेक्ट हो जाते हैं."
इसीलिए डॉक्टर बासुमातरी ने नन्हे हाथियों और उनके केयरटेकरों के बीच संपर्क को कम किया है. लेकिन बच्चों को शारीरिक गर्माहट भी चाहिए, टीम ने इसका एक विकल्प खोजा. उन्होंने नन्हे हाथियों को आपस में दोस्त बना दिया. ये दो बच्चे अब एक साथ रहते हैं. दोनों एक ही जगह सोते भी हैं. सर्द रातों में उन्हें पाजामे भी पहनाये जाते हैं.
डॉक्टर बासुमतारी इसकी वजह बताते हैं, "हम बच्चों की देखरेख प्राकृतिक तरीके से करने की कोशिश करते हैं, इसीलिए उन्हें घर पर नहीं बल्कि बाहर रखा जाता है. ये कुछ कुछ जंगल में मां के साथ होने जैसा माहौल है. इससे उनकी वापसी आसान होती है."
असम में इंसान और पशु एक दूसरे के बेहद करीब रहते हैं. काजीरंगा नेशनल पार्क को पशु अस्पताल से जोड़ने वाली रोड इलाके की सबसे व्यस्त सड़कों में से एक है. पर्यटन और कृषि राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं. काम करने वाले पालतू हाथी भी यहां आराम से दिखते हैं. पास की पहाड़ी ढलानों में चाय के बागान भी हैं. असम की चाय दुनिया भर में मशहूर है. लेकिन इसके बुरे नतीजे भी दिखते हैं.
खेती करने वाले पदम गोगोई के मुताबिक, "समस्या बढ़ रही है. पहाड़ की ढलान पर चाय के बागान लगातार फैलते जा रहा है. इसके चलते हाथियों के लिए जंगल कम होता जा रहा है. ऐसे में हाथी नीचे आते हैं और हमारी फसल बर्बाद कर देते हैं. वे हमारे घर तबाह कर देते हैं और लोगों को मार भी देते हैं. भैंसें भी खाने की तलाश में पार्क से बाहर आ जाती हैं. उनके बच्चों का पीछा करते हुए बाघ भी यहां आ जाते हैं. इस तरह और ज्यादा लोग मारे जाते हैं."
पास के नेशनल पार्क में वन्य जीव स्वच्छंद घूमते हैं. पूरी दुनिया में सिर्फ यहीं एक सींग वाले गैंडे सबसे सुरक्षित हैं. उनकी संख्या स्थिर है. लेकिन स्थानीय लोगों को इस पर गर्व नहीं, उन्हें लगता है कि सरकार इंसानों के बदले वन्य जीवों पर ज्यादा ध्यान देती है.
इसीलिए लोग अब खुद परेशानियों से निपटना चाहते हैं. खेतों को बचाने के लिए गांव के लोग हर रात नेशनल पार्क की सीमा पर गश्त लगाते हैं. टॉर्चों के सहारे वे जानवरों को खोजते हैं और उन्हें पार्क की तरफ लौटा देते हैं. मुश्किल आने पर टॉर्च ज्यादा मददगार नहीं होगी, लेकिन इसके बावजूद उनके परिवारों को ऐसी गश्त से सहारा मिलता है. वे चैन से सो सकते हैं.
हाथियों को सेंटर से निकलकर जंगल में रहने की आदत सीखनी होगी. पांच साल पहले पार्क पैदा हुए इन बच्चों ने अब अपना झुंड बना लिया है. हर दिन उन्हें जंगल में खाना खोजने की ट्रेनिंग दी जाती है. उन्हें गांवों और सड़कों से दूर रहना भी सिखाया जाता है. अगले साल उन्हें पार्क के दूसरे हिस्से में पहुंचाया जाएगा, वहां वे आजाद जिंदगी जी सकेंगे.
तरुण गोगोई इन बाल हाथियों के संरक्षक हैं. नन्हें हाथियों की परवरिश करने वाले तरुण के मुताबिक अंत में हाथियों को अलविदा कहना आसान नहीं होता, "हम इनकी परवरिश करते हैं, बड़ी बोतलों से आहार देते है. लेकिन जब हम उन्हें मानस पार्क ले जाते हैं तो वह बिछड़ाव भावुक और दुखी कर देता है. कभी कभार मैं वहां जाकर उन्हें पुकारता हूं और वो भी मुझसे मिलने आते हैं. उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में देखना अच्छा भी लगता है. उनका जंगलीपन देखने और चिघाड़ सुनने भी मजा आता है."
लेकिन ऐसा होने में अभी कुछ और वक्त लगेगा. जंगल में आजाद घूमने से पहले झु़ंड को काफी कुछ सीखना होगा.
(कृत्रिम अंग से नया जीवन पाने वाले जानवर)
विब्के फॉयरसेंगर/ओएसजे