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शिक्षा

झारखंड के शिक्षा मंत्री ने क्यों लिया इंटर में एडमिशन

मनीष कुमार
१२ अगस्त २०२०

सोशल मीडिया व विपक्ष के निशाने पर रहे झारखंड के दसवीं पास शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने इंटर में नामांकन के लिए फॉर्म भरकर लोगों को चौंका दिया. आखिर क्या बात थी जिसकी वजह से उन्होंने पढ़ाई करने का फैसला लिया?

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Indien Minister Jagarnath Mahto zeigt seine Immatrikulationsbescheinigung in Patna
तस्वीर: DW/M. Kumar

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार में जब उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया गया था तभी यह बात उठी थी कि दसवीं पास शिक्षा मंत्री आखिरकार राज्य की शिक्षा व्यवस्था को कितना दुरुस्त कर पाएगा. योग्यता को लेकर कसे गए तंज से आहत महतो ने जुबानी बहस में पड़ने के बजाय अपनी उस कमी को दूर करने का निश्चय किया. सोमवार को जब वे एडमिशन के सिलसिले में बोकारो जिले के देवी महतो स्मारक इंटर महाविद्यालय, नावाडीह पहुंचे तो सबों ने सोचा कि वे हमेशा की तरह कामकाज का जायजा लेने आए होंगे. किंतु वे सीधे काउंटर पर गए और 1100 रुपये का भुगतान कर फॉर्म खरीदा ताकि वे इंटर में नामांकन ले सकें.

शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो 25 साल बाद फिर पढ़ाई की शुरुआत करेंगे. 31 दिसंबर,1967 को जन्मे जगरनाथ महतो ने 1995 में बोकारो जिला अंतर्गत चंद्रपुरा प्रखंड के नेहरू उच्च विद्यालय, तेलो से मैट्रिक (दसवीं) की परीक्षा बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के तहत पास की थी. उस समय एकीकृत बिहार था. महतो अब इंटर आर्ट्स के विद्यार्थी बनेंगे. पढ़ाई-लिखाई किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है. वैसे भी भारतीय लोकतंत्र में ऐेसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जिनसे यह स्पष्ट है कि राजनीतिज्ञ बनने के लिए उच्च शिक्षा कतई जरूरी नहीं है, लेकिन जिस साफगोई से महतो ने अपनी बात कही वह बहुत से लोगों के लिए मिसाल बन सकती है.

शिक्षा के युग में एक मिसाल

यह पूछे जाने पर कि इंटर में एडमिशन लेने की जरूरत क्यों पड़ी, महतो कहते हैं, "पढ़ने के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती. जिस समय मुझे शिक्षा मंत्री बनाया गया, उसी समय कुछ लोगों ने व्यंग्य किया था कि दसवीं पास शिक्षा मंत्री क्या करेगा. शपथ ग्रहण के बाद कही गई इस बात से मुझे काफी ठेस पहुंची थी. इसी का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए मैंने एडमिशन लिया है. हम पढ़ेंगे भी और पढ़ाएंगे भी." गिरिडीह जिले के डुमरी विधानसभा क्षेत्र से चुने गए महतो एक विद्यार्थी व शिक्षा मंत्री की दोहरी भूमिका के बीच सामंजस्य बिठाने के सवाल पर कहते हैं, "मैं अपनी पढ़ाई के साथ-साथ शिक्षा मंत्रालय भी संभालूंगा. क्लास भी करूंगा, खेती-किसानी का काम भी करूंगा और जनता का काम भी करूंगा. इसके साथ ही राज्य की शिक्षा व्यवस्था में सुधार का काम भी जारी रहेगा.

हममें जज्बा है और हम जनता को भी अपने काम से प्रेरित करेंगे." उन्होंने कहा, "जब कोई मंत्री बनता है तो बंगला तलाशने लगता है लेकिन जगरनाथ महतो ने अभी तक बंगला नहीं लिया. हम क्षेत्र से आते-जाते हैं और काम करते हैं. जनता ने हमको बंगले में रहकर ऐश-मौज करने के लिए तो चुना नहीं है. जनता के साथ रहकर काम करेंगे.'' इंटर कला (आर्ट्स) में लिए गए विषय के संबंध में वे कहते हैं, ‘‘अभी कल ही तो एडमिशन लिया है. राजनीति करता हूं तो राजनीति शास्त्र तो एक विषय होगा ही. बांकी भी तय हो जाएगा.''
यह पूछे जाने पर कि कम पढ़े-लिखे होने के कारण सरकार की योजनाओं या अफसरों को डील करने में तो कोई परेशानी नहीं आ रही थी, उन्होंने कहा, "ऐसी कोई परेशानी नहीं थी. कहीं कोई दिक्कत नहीं है." राजनीति में पढ़ाई-लिखाई की अहमियत पर महतो ने कहा, "राजनीति में ऐसी कोई बात नहीं है. ज्ञानी जैल सिंह तो सातवीं पास थे. राष्ट्रपति बने कि नहीं. हमने व्यंग्य करने वालों को जवाब देने के लिए यह निर्णय लिया." अब स्थिति कितनी सुधरेगी, यह पूछे जाने पर वे कहते हैं, "हां अब और बेहतर होगा, पूरा समझेंगे."

सबों को शिक्षा नहीं है नसीब

ऐसा नहीं है कि जगरनाथ महतो झारखंड सरकार के अकेले ऐसे मंत्री हैं जो दसवीं पास हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव में दिए गए हलफनामे के अनुसार समाज कल्याण मंत्री जोबा मांझी, श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता, स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता एवं परिवहन मंत्री चंपी सोरेन भी मात्र दसवीं पास हैं. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत झारखंड-कांग्रेस गठबंधन सरकार के 11 मंत्री आठवीं से बारहवीं पास हैं.

महतो कहते हैं, "जब 1995 में दसवीं की परीक्षा दी थी तब भी लोग चौंके थे. उस समय मेरी उम्र 28 साल थी. इससे पहले नौवीं तक ही पढ़ पाया था. अलग झारखंड राज्य के लिए विनोद बिहारी महतो के साथ आंदोलन के दौरान उनके ‘पढ़ो व लड़ो' के नारे ने मुझे काफी प्रभावित किया. दसवीं (मैट्रिक) की परीक्षा दी और सेकेंड डिवीजन से उत्तीर्ण हुआ. फिर उसके बाद कुछ कारणों से पढ़ाई जारी नहीं रह सकी. अब यह सिलसिला जारी रहेगा. खुद-ब-खुद विरोधियों को जवाब मिल जाएगा."

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बहुत से बच्चों को परिवार की मदद करनी पड़ती हैतस्वीर: DW

हालांकि जगरनाथ महतो ही राज्य के अकेले ऐसे शिक्षा मंत्री है जो ग्रेजुएट नहीं हैं. अन्यथा इनसे पहले रहे छह शिक्षा मंत्रियों में चंद्रमोहन प्रसाद, नीरा यादव, प्रदीप यादव, हेमलाल मुर्मू, बंधु तिर्की व बैद्यनाथ राम स्नातक पास थे. हाल के दिनों में जगरनाथ महतो तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने केंद्र की नई शिक्षा नीति से असहमति जताई थी. उन्होंने कहा था कि झारखंड में सरकारी स्कूलों के बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए नई नीति बनाई जाएगी. इसके लिए शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी राज्यों की नीतियों का अध्ययन किया जाएगा. हम झारखंड की शिक्षा व्यवस्था दिल्ली से बेहतर बनाएंगे.

क्या सबको शिक्षा का लक्ष्य पूरा होगा

विरोध लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक सार्वभौमिक सत्य है. जाहिर है, इसी कारण शिक्षा मंत्री द्वारा प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन पर भी विरोधियों ने सवाल उठाए. लेकिन इन आरोपों से निश्चिंत जगरनाथ महतो कहते हैं, "हमारे बोकारो जिले के नावाडीह में कोई कॉलेज नहीं था. 2005 में विधायक बना, 2006 में कॉलेज बनवा कर तैयार कर दिया और 2007 में तीन संकायों में एफिलिएशन दिलवा दिया. मैं इस कॉलेज का संस्थापक और दानदाता भी हूं. हमने अपने बनवाए हुए कॉलेज में एडमिशन लिया है."

जगरनाथ महतो की इस कोशिश को कौन किस नजरिए से देख रहा है, यह विवाद का विषय हो सकता है. लेकिन इतना तो तय है भारतीय राजनीति में वास्तविक पहल करने वाले लोगों की जितनी कमी है उसमें महतो एक अपवाद अवश्य होंगे. अब देखना यह है कि मंत्रिमंडल के ही अन्य सदस्य जो शैक्षिक रूप से उनके समकक्ष हैं, अपना कदम आगे बढ़ाते हैं या नहीं. और सबसे बढ़कर ये कि क्या शिक्षा मंत्री अपने राज्य में ऐसा माहौल बना पाएंगे जिसमें जो कोई चाहे वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सके.

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