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जोखिम भरा है फ्रैकिंग से गैस निकालना

२० सितम्बर २०११

जर्मन ऊर्जा कंपनियां अब तक बचे हुए स्रोतों से भूगैस निकालना चाहते हैं. लेकिन नए तरीके का स्थानीय निवासियों में भारी विरोध हो रहा है. इस विवादास्पद नई तकनीक का नाम फ्रैंकिंग है, लेकिन उसका उपयोग सालों से हो रहा है.

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लोअर सेक्सनी में भूगैस निकालने की जगहतस्वीर: Exxon Mobil

रितवा वेस्टेनडॉर्फ-लाहाउस हनोवर में एक्सन मोबिल ऊर्जा कंपनी की प्रेस प्रवक्ता हैं. उनकी मेज पर पत्थर के दो 20-20 सेंटीमीटर बड़े नमूने रखे हैं. वे कहती हैं, "दोनों में से कोई ऐसा नहीं दिखता कि उनमें भूगैस हो सकती है, लेकिन ऐसे ही पत्थरों में गैस होती है." वह हाथ में बलुआहे रंग का एक पत्थर उठाती हैं और कहती हैं, "यह एक परंपरागत भूगैस वाली खान से निकला सैंडस्टोन है. यदि ध्यान से देखें तो इसमें छोटे छोटे छिद्र दिखते हैं जिनमें आम तौर पर गैस होती है. और ये छिद्र एक दूसरे के साथ जुड़े हैं." इसीलिए गैस को आसानी से ड्रिलिंग पाइप की ओर भेजा जा सकता है.

गैर परंपरागत भूगैस की खानों के एकदम विपरीत. रितवा वेस्टेनडॉर्फ-लाहाउस दूसरा गहरे भूरे रंग का पत्थर दिखाती हैं. "ये स्लेट स्टोन कुछ कुछ संगमरमर की प्लेट जैसा दिखता है, जैसा कि घर में टेबल पर या खिड़की में दिखता है. इसमें भी छेद हैं जिनमें गैस होती है, लेकिन जिन्हें खुली आंखों से नहीं देखा जा सकता. लेकिन ये छेद एक दूसरे से जुड़े नहीं होते. इसलिए हमें मदद करनी होती है. हम चट्टानों को नियंत्रित रूप से तोड़ने की कोशिश करते हैं ताकि गैस को बाहर निकलने का रास्ता मिल सके."

Bohrkerne aus konventioneller und unkonventioneller Erdgasförderung
पारंपरिक और नए तरीके भूगैस निकालने के उपकरणतस्वीर: DW

चट्टानों को चटका कर रेत से भरी जाती हैं दरारें

भूगैस को बाहर निकलने का रास्ता दिखाने के लिए ऊर्जा कंपनियां हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग नामक विधि का इस्तेमाल करती हैं जिसे छोटे में फ्रैकिंग कहा जाता है. इसमें चट्टानों को 1000 से 5000 मीटर की गहराई में पानी का भारी दबाव देकर इस तरह चटकाया जाता है कि एक सेंटीमीटर आकार वाली दरारें पैदा होती हैं. ताकि ये खुली रहें उनमें रेत पंप की जाती है जो दरारों में भर जाते हैं. उसके बाद धरती के नीचे जमा गैस इन दरारों से होकर बाहर निकल सकती है.

वेस्टेनडॉर्फ-लाहाउस का कहना है कि फ्रैकिंग एक जानी मानी और परीक्षित विधि है जिसे जर्मनी में पिछले 50 सालों से उपयोग में लाया जा रहा है. तकनीक नई नहीं है, नई वे खानें हैं जहां से एक्सन मोबिल अब गैस निकालना चाहता है. भूवैज्ञानिकों के अनुसार गैस के तीन गैर परंपरागत भंडार हैं. स्लेट वाली चट्टानें, कोयले की परतें और उसके अलावा विशेष सैंड स्टोन जिनमें गैस निकालना फ्रैकिंग के जरिए ही संभव हो. विशेषज्ञ टाइट गैस की बात करते हैं. परंपरागत भंडारों से गैस निकालने वाली कंपनियां भी कभी कभी गैस का उत्पादन बढ़ाने के लिए फ्रैकिंग का सहारा लेती हैं. 90 के दशक से एक्सन मोबिल फ्रैकिंग की मदद से लोअर सेक्सनी के जोएलिंगेन में टाइट गैस निकाल रहा है. अब उसकी निगाह नॉर्थराइन वेस्टफेलिया और दक्षिणी लोअर सेक्सनी की खानों पर है.

लोगों को सता रहा है अनहोनी का भय

हाम शहर में काम करने वाले मार्टिन क्नैपर को अखबार से पता चला कि उनके यहां हाम में भी हाल ही में बनी कंपनी हामगैस गैर परंपरागत खानों से गैस निकालने के लिए ड्रिलिंग करेगी. हाम शहर के नीचे कोयले की खाने हैं जिनमें गैस है. "इंटरनेट पर रिसर्च करने से पता चला कि अमेरिका में सालों से गैर परंपरागत खानों से गैस निकाली जा रही है, पर्यावरण को भारी नुकसान के साथ." क्लैपर कहते हैं, "वहां हजारों लीटर रसायन जमीन में पंप किया जाता है, वहां चट्टानों को तोड़ा जाता है, वहां मीथेन गैस आंशिक रूप से भूजल में मिल जाती है और बड़े इलाकों में पानी प्रदूषित हो गया है. यह सब कुछ बहुत जोखिम वाला है."

क्लैपर ने गैस ड्रिलिंग के खिलाफ नागरिक पहल का गठन किया है और ड्रिलिंग को रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. इन प्रयासों में वे अकेले नहीं हैं. नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया और लोअर सेक्सनी के बड़े हिस्से में वहां के निवासी संगठित हो रहे हैं. उनमें से एक ने पिछले दिनों 13000 हस्ताक्षरों वाला एक ज्ञापन जर्मन संसद बुंडेसटाग के पर्यावरण आयुक्त को दिया है और फ्रैकिंग पर रोक लगाने की मांग की है.

Protest Fracking Februar 2011
फ्रैकिंग का कड़ा विरोधतस्वीर: picture-alliance/dpa

लोग इस बात पर नाराज हैं कि फ्रैकिंग के लिए बहुत सारा रसायन इस्तेमाल हो  रहा है. पानी और बालू एक दूसरे के साथ आसानी से नहीं मिलते, इसलिए उसमें ऐसे तत्व डाले जाते हैं जो पानी को गाढ़ा बना दें ताकि रेत बैठे नहीं. जब ये मिश्रण गहराई में पहुंचता है तो इसे फिर से दूसरे रसायनों का इस्तेमाल से पतला किया जाता है ताकि बालू वहां रह सके. लेकिन पानी को वापस पंप कर दिया जाता है ताकि गैस के निकलने का रास्ता साफ हो सके. इसके अलावा ऐसे रसायनों का भी इस्तेमाल किया जाता है जो मिश्रण को आसानी से गहराई तक पहुंचा दें या जो चट्टानों के बिखरने को रोकें. बैक्टीरिया को मिश्रण से दूर रखने के लिए भी रसायनों का उपयोग होता है.

मिश्रण को पतला करना महत्वपूर्ण

वेस्टेनडॉर्फ-लाहाउस का कहना है कि समग्र मिश्रण पर्यावरण के लिए न तो खतरनाक है और न ही जहरीला. वे कहती हैं, कुल मिलाकर मिश्रण में रसायनों का हिस्सा बहुत ही कम है, कुछ मामलों में 0.2 प्रतिशत से भी कम, दूसरे मामलों में 2 से 5 प्रतिशत तक जो गैस भंडारों की स्थिति पर निर्भर करता है.

इसका मतलब यह नहीं है कि उपयोग में लाए जाने वाले रसायन शुद्ध रूप में नुकसानदेह नहीं हैं. मसलन बायोसाइड को पर्यावरण के लिए हानिकारक माना जाता है, दूसरे पदार्थ भी  जहरीले हैं. इसलिए उसका बहुत कम उपयोग महत्वपूर्ण है. लेकिन अक्सर अनुपातिक नहीं बल्कि असली मात्रा निर्णायक होती है. एक्सन मोबिल ने लोवर सेक्सनी के गोल्डनश्टेट में एक फ्रैकिंग में 60 लाख किलोग्राम तरल का इस्तेमाल किया जिसमें 93,000 किलोग्राम रसायन था. वेबसाइट की सूचना के अनुसार इसमें "58.034 किलोग्राम हानिकारक रसायन" था.

रितवा वेस्टेनडॉर्फ-लाहाउस बताती हैं कि इस प्रक्रिया में उपयोग में आने वाले तरल का बड़ा हिस्सा फ्रैकिंग के तुरंत बाद वापस कर लिया जाता है जबकि बाकी का बड़ा हिस्सा गैस के साथ बाहर निकाल लिया जाता है. मतलब यह हुआ कि तरल का एक हिस्सा हमेशा के लिए चट्टानों में रह जाता है. और जो वापस लाया जाता है उसे भी अंत में खान में ही जमा कर दिया जाता है. उसके बाद गैस के साथ बाहर निकले फ्रैकिंग तरल को चट्टान से निकलने वाले पानी के साथ चट्टानों की परतों के बीच ऐसी जगहों पर दबा दिया जाता है, जिसके लिए अधिकारियों ने अनुमति दी है.

जलते पानी के पंप

मार्टिन क्नैपर कहते हैं, मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि भूजल प्रदूषित न हो जाए, या तो फ्रैकिंग तरल के जरिए या मीथेन के जरिए. पिछले साल अमेरिका में फ्रैकिंग के कथित प्रभाव पर एक दस्तावेजी फिल्म पर काफी हंगामा हुआ. फिल्म में पानी के नल दिखाए गए थे जिनसे निकलने वाले पानी में इतना मीथेन था कि उसमें आग लगाई जा सकती थी. क्नैपर पूछते हैं, "साफ, स्वच्छ पानी के बगैर हम क्या करेंगे?

Fragezeichen, Symbolbild
यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख़20/09 और कोड 5647 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw-world.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: picture-alliance

एक्सन की प्रवक्ता कहती हैं कि उनकी कंपनी इस बात का ध्यान रख रही हैं कि न तो तरल और न ही गैस पीने के पानी में जाए. वे कहती हैं, "ड्रिलिंग सिर्फ जमीन में एक छेद नहीं होता बल्किन टेलिस्कोप जैसा निर्माण होता है. पीने के पानी वाली सतहों में इस छेद को स्टील और सीमेंट से घेर दिया जाता है." मतलब यह कि पीने का पानी सुरक्षित है. लेकिन मार्टिन क्नैपर को इसका भरोसा नहीं है. वे कहते हैं, "हमें पता ही नहीं कि अगले पंद्रह साल में क्या होगा. यदि धरती में हलचल होती है, यदि नई दरारें पैदा होती हैं, स्टील की तारें में जंक लग जाता है, कंक्रीट टूट जाता है?" जोखिम का आकलन मुश्किल है.

सवाल के बदले लोगों का प्रतिरोध

क्या रितवा वेस्टेनडॉर्फ-लाहाउस लोगों की चिंता समझ सकती हैं? वे कहती हैं, "हम समझ सकते हैं कि एक तकनीक के बारे में सवाल हैं जिसे देखा नहीं जा सकता है, क्योंकि वह जमीन के नीचे काम करता है. और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उसका जवाब दें."

लेकिन उन इलाकों में रहने वाले लोग सवालों से आगे बढ़ गए हैं. वे विरोध कर रहे हैं. मार्टिन क्नैपर कहते हैं, "हम आम तौर पर गैर परंपरागत खानों से भूगैस निकालने के खिलाफ हैं. इस समय ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है जिसे हम सह सकें या सहमत हो सकें." यह साफ नहीं है कि एक्सन मोबिल स्लट की चट्टानों से गैस निकाल सकता है या नहीं. लाइपजिग के हेल्महोल्त्स पर्यावरण सेंटर के डीटरिष बोर्षर्ट इस समय इस बात की जांच कर रहे हैं कि किन परिस्थितियों में गैर परंपरागत खानों से गैस पर्यावरण सम्मत तरीके से निकाली जा सकती है. यह सिर्फ स्लेट और कोयले की खानों पर लागू होगा, टाइट गैस के मामले में फ्रैकिंग रॉ इस्तेमाल रूटीन हो गया है.

रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टराथ/मझा

संपादन: आभा एम

 

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