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जैव विविधता बची रहेगी तो इंसान भी रहेंगे सलामत

शिवप्रसाद जोशी
७ अप्रैल २०२१

सबसे ज्यादा जैव विविधता वाले देशों में भारत भी एक है, लेकिन विकास और निर्माण की आपाधापी में इसे बचाए रखना बहुत जरूरी है. कुदरती आफतें और पर्यावरणीय घटनाएं दिखाती हैं कि नहीं संभले तो जैव विविधता की छतरी भी कमजोर होगी.

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UN-Biodiversitätskonferenz in Indien SYMBOLBILD
तस्वीर: picture-alliance/dpa

2002 के जैव विविधता अधिनियम के तहत केंद्र सरकार ने 2003 में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) का गठन किया था. ये एक विधायी संस्था है और इसका मुख्यालय चेन्नई में है. सबसे पुराने फिशरीज एक्ट 1897 से लेकर राष्ट्रीय हरित पंचाट अधिनियम (एनजीटी) 2010 तक वन, पर्यावरण, कृषि, समुद्री जीव, वन्यजीव संरक्षण, चाय, कॉफी, खनन, प्रदूषण आदि से जुड़े 36 कानून और अधिनियम जैव विविधता के दायरे में आते हैं.

पौधों, जानवरों और अन्य जीवों में पायी जाने वाली अलग-अलग तरह की विशेषताएं जैविक यानी जैव विविधता कहलाती है. पृथ्वी पर जीवन के लिए जिम्मेदार, सबसे छोटे बैक्टीरिया से लेकर सबसे बड़े पौधों, जानवरों और इंसानों तक की प्रजातियों से ही जैव विविधता बनती है. जैव विविधता तीन तरह की होती है, आनुवंशिक, प्रजातीय और पारिस्थितिक. बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया और जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा अब तक देश में 46,000 से अधिक पौधों और 81,000 प्रजातियों के जानवरों को दर्ज किया गया है. यही नहीं जंगल के मूल आदिवासी और जनजाति समुदाय भी इस जैव विविधता का हिस्सा हैं. भारत के दो जैव परिक्षेत्रों के तहत पांच बायोम, दस बायोजियोग्राफिक जोन और 25 बायोजिओग्राफिक प्रांत आते हैं.

Indien: Biodiversität im Himalaya
हिमालय में जैव विविधता का भंडारतस्वीर: Hridayesh Joshi

जैव विविधता के मामले में संपन्न भारत

भारत की संपन्न जैव विविधता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के समस्त स्तनपायी (मैमल) जीवों में साढ़े सात प्रतिशत भारत में हैं. दुनिया के तमाम पक्षियों (एवियन) में से साढ़े 12 प्रतिशत, सरीसृपों (रेपटाइल) में 6 प्रतिशत, साढ़े चार फीसदी उभयचर (एम्फीबियन), करीब 12 प्रतिशत मछलियां और छह प्रतिशत फूलदार पौधे. विश्व के कुल भूभाग का करीब ढाई प्रतिशत भारत के पास है जहां समस्त प्रजातियों की सात से आठ प्रतिशत प्रजातियां मौजूद हैं जिनमें पौधों की 45 हजार प्रजातियां और जानवरों की 91 हजार प्रजातियां शामिल हैं. भारत की वैश्विक रैकिंग पक्षियों में 10वीं है जिसमें 69 प्रजातियां हैं, रेपटाइलों में पांचवी हैं और 156 प्रजातियां हैं, एम्फीबियनों के मामले में सातवीं और उनकी 110 प्रजातियां हैं.

एनबीए के मुताबिक भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है जिन्होंने संरक्षण नियोजन के लिए जैव-भौगौलिक वर्गीकरण विकसित किया है. और देश में जैव-विविधता संपन्न इलाकों का नक्शा भी तैयार किया है. दुनिया के 34 बायोडाइवर्सिटी हॉटस्पॉटों में से चार भारत में हैं, हिमालय, पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर, और निकोबार द्वीप. केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र तक फैले पश्चिमी घाट के 39 ठिकानों को यूनेस्को ने 2012 में विश्व विरासत सूची में जगह दी थी. भारत में 15 एग्रो-क्लाइमेटिक जोन चिंहित हैं. विभिन्न फसलें उगाने के मामले में भी भारत चुनिंदा देशों में आता है. इसी तरह पशुधन के मामले में भी भारत विविधता संपन्न है. 

जैव विविधता को बचाने की चुनौती

भारत में वन क्षेत्र का दायरा बढ़ने का दावा किया जाता है लेकिन समूची जैव विविधता बहस में यही एक बिंदु है जिस पर सवाल उठते हैं कि आखिर इस वन क्षेत्र के संरक्षण के लिए भारत में कोताही और उदासीनता का आलम क्यों दिखता है. जंगल की आग से लेकर, जंगल को डिनोटिफाई करने, जनजातियों को हटाने और बड़े पैमाने पर निर्माण योजनाओं के लिए जंगल साफ करने के अभियानों और मंशाओं और आगामी प्रोजेक्टों ने जैव विविधता के लिए हर जगह खतरे के गलियारे खोल दिए हैं और स्थानीय आबादी के लिए खतरे की घंटी भी. कभी सड़क या बांध के लिए तो कभी ईको टूरिज्म के लिए जंगल क्षेत्र को खोला जा रहा है यहां तक कि आरक्षित और संरक्षित वन भी इसके दायरे में आ रहे हैं.

Ein indischer Elefant erreicht Bangladesh nach Überflutung
जंगल, पक्षी और जीव जंतुतस्वीर: Imago

और इस पर रिपोर्टें और चिंताएं भी सामने आ चुकी हैं. ऐसे में कीट पतंगों से लेकर मछली बाघ तक और फूल पौधों से लेकर खाद्य फसलों तक जैव विविधता पर खतरा तो मंडरा ही रहा है. एक ध्यान देने वाली बात ये भी है कि जैव विविधता की संरक्षण योजनाएं भी जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रही हैं. एक दशक से भी अधिक समय से, दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता के संरक्षण के लिए अपने संरक्षित क्षेत्रों के नेटवर्क को फैलाने के लिए प्रयासरत हैं. एक नए अध्ययन के मुताबिक  इन संरक्षित क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालीन असर को ध्यान में नहीं रखा गया है.

जैव विविधता संरक्षण में जनजातियों की भूमिका

संयुक्त राष्ट्र ने 2021-30 को ईकोसिस्टम रेस्टोरेशन का दशक घोषित किया है. इस लिहाज से ये विश्वव्यापी चिंताओं का भी समय है जब दुनिया के लोगों के सामने अपने उन कुदरती ईकोसिस्टमों का पुनरुद्धार करने की चुनौती है जो विभिन्न कारणों से नष्ट हो रहे हैं. जाहिर है इस व्यापक चिंता से भारत के लोग भी अलग नहीं रह सकते. बहुत तेज गति वाली आर्थिक वृद्धि और विकास नियोजन में पर्यावरणीय चिंताओं को इंटीग्रेट न कर पाने की सीमाओं या कमजोरियों या दूरदर्शिता के अभाव के चलते भारत की जैव विविधता पर भी अनवाश्यक और अतिरिक्त दबाव पड़ रहे हैं.

ऐसे में संरक्षण की हर स्तर की पहल सराहनीय और स्वागतयोग्य है और खासकर ये ध्यान रखते हुए कि जैव संपदा और मनुष्य अस्तित्व के बीच सीधा और गहरा नाता है. और इस जैव विविधता के केंद्र में भारत की वो करीब पचास फीसदी आबादी भी आती है जो गरीबी रेखा से नीचे बसर करती है और इनमें अनुसूचित जनजातियों के अधिकांश वही लोग शामिल हैं जंगल जिनका घर है और जंगल से जिनका रिश्ता अटूट है. यही लोग जैव विविधता के नैसर्गिक पहरेदार हैं.

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