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जेएनयू के छात्रों की मांग कितनी जायज

आमिर अंसारी
१३ नवम्बर २०१९

छात्रों का कहना है जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में देश के गरीब परिवार के बच्चे आसानी से शिक्षा हासिल करते हैं. शुल्क बढ़ने से ऐसा हो पाना कठिन होगा.

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Indien - Neu Delhi - Angriffe auf Studenten
फाइल तस्वीर: DW/R. Chakraborty

दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र बढ़ी हुई फीस और यूनिवर्सिटी में लागू हुए ड्रेस कोड के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से काफी आक्रोशित हैं. छात्रों का कहना है कि यहां शिक्षा पाने वाले अधिकतर छात्र ऐसे परिवार से आते हैं जिनकी सालाना आय बहुत कम है. जेएनयू छात्रसंघ के उपाध्यक्ष साकेत मून ट्विटर पर लिखते हैं, "शिक्षा अधिकार है ना कि विशेषाधिकार है."

यूनिवर्सिटी के नए नियमों के मुताबिक हॉस्टल फीस में भारी बढ़ोतरी हुई है. उदाहरण के तौर पर सिंगल सीटर रूम का किराया 20 रुपये प्रतिमाह से बढ़कर 600 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है. डबल सीटर रूम का किराया 10 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 300 रुपये प्रतिमाह हो गया है. वहीं वन टाइम मेस सिक्योरिटी फीस 5500 से बढ़ कर 12000 रुपये कर दी गई है. इसके अलावा पहले पानी, बिजली, रख रखाव और सफाई के नाम पर पैसे नहीं वसूले जाते थे लेकिन विश्वविद्यालय ने हर महीने छात्रों पर मेंटेनेंस के लिए 1700 रुपये का बोझ और डाला दिया है.

छात्रों का कहना है कि हॉस्टल नियमों के तहत फीस बढ़ोतरी का असर 40 फीसदी छात्रों पर पड़ेगा. छात्रों का कहना है कि जेएनयू में देशभर के गरीब छात्र पढ़ने आते हैं और अगर इस तरह से फीस बढ़ाने का असर वंचित तबके पर पड़ेगा. जेएनयू में कुल 18 हॉस्टल है और इनमें करीब 5500 छात्र रह सकते हैं.

छात्रों की नाराजगी का एक कारण और है, प्रशासन ने छात्रों से रात में 11 बजे के बाद अपने हॉस्टल में ही रहने को कहा है. अगर किसी कारण छात्र अपने छात्रावास की जगह दूसरे छात्रावास में पाए जाता हैं तो उस पर कार्रवाई की जाएगी. इसके अलावा मेस में छात्रों के लिए ड्रेस कोड लागू कर दिया है. ड्रेस कोड को लेकर भी छात्र भड़के हुए हैं.

जेएनयू के कुछ पूर्व छात्र ट्विटर पर लिख रहे हैं कि कैसे सस्ती शिक्षा और हॉस्टल फीस ने उन्हें उच्च शिक्षा हासिल करने में मदद की.

सोमवार को एआईसीटीआई में दीक्षांत समारोह के दौरान जेएनयू छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया था. दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति और मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल मौजूद थे, दूसरी ओर परिसर के बाहर अपनी मांगों को लेकर छात्र प्रदर्शन कर रहे थे.

जेएनयू के कुछ पूर्व छात्रों का तर्क है कि सरकार मूर्ति और नए नोट छपवाने में हजारों करोड़ रुपये  खर्च कर सकती है लेकिन सरकारी विश्वविद्यालय में छात्रों को सस्ती शिक्षा और कम दर पर हॉस्टल और मेस सुविधा नहीं दे सकती है.

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