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समाज

जिस शख्स की खातिर रुकवा दिया प्लेन

२७ जुलाई २०१८

स्वीडन की एक युवती ने एक अफगान व्यक्ति को डिपोर्ट होने से रोकने के लिए हवाई जहाज ही रुकवा दिया. लेकिन जिस शख्स के लिए इतना कुछ किया, वो तो जहाज पर सवार ही नहीं था.

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Esmail Khawari (hier: Khanzadeh )
तस्वीर: facebook.com/esmail.khanzadeh

एलिन एरसन ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी. फेसबुक लाइव के जरिए उन्होंने दिखाया कि कैसे वह डिपोर्ट किए जा रहे अफगान नागरिक की मदद करना चाह रही हैं. 21 साल की एलिन सामाजिक कार्यकर्ता हैं और अपने देश की निर्वासन नीति के खिलाफ आवाज उठा रही हैं.

24 जुलाई को जब वे हवाई जहाज पर सवार हुईं, तब उन्हें उम्मीद थी कि वहां उन्हें दो अफगान व्यक्ति मिलेंगे: एक जिसकी उम्र 50 साल के आसपास होगी और दूसरा 26 साल का इस्माइल खावारी. दरअसल इस्माइल के परिवार ने एलिन को संपर्क किया था. उन्होंने बताया कि टर्किश एयरलाइंस के विमान से गॉथनबर्ग से इस्तांबुल ले जाया जा रहा है, जहां से फिर उन्हें एक दूसरी फ्लाइट से अफगानिस्तान भेज दिया जाएगा.

एलिन ने इसी फ्लाइट की टिकट खरीदी और पहुंच गई विमान में इस्माइल को बचाने के लिए. लेकिन वह तो उस विमान में था ही नहीं. वहां एलिन को 52 साल का एक अफगान व्यक्ति मिला और फिर वह उसी को बचाने में लग गई. इस्माइल को अगले दिन स्टॉकहोम से काबुल भेज दिया गया.

डॉयचे वेले ने जब स्वीडन के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की, तो उन्होंने कहा कि वे हर मामले पर टिप्पणी नहीं कर सकते हैं. लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा कि एलिन के मामले की छानबीन हो रही है और वे पता लगा रहे हैं कि क्या प्लेन रुकवाने के जुर्म में एलिन को सजा हो सकती है.

इस बीच डॉयचे वेले ने इस्माइल खावारी को भी संपर्क किया और उनके हालात समझने की कोशिश की. पेश है इस्माइल से बातचीत के कुछ अंश:

डॉयचे वेले: एलिन का वीडियो पूरी दुनिया में देखा गया. वह आपके लिए जहाज पर सवार हुई थीं और लोगों का ध्यान आपकी ओर खींचने के लिए आपकी तस्वीर भी दिखाई. क्या आप निजी तौर पर एलिन को जानते हैं?

इस्माइल खावारी: नहीं, मैं इस महिला को नहीं जानता लेकिन मैं उनकी कोशिशों के लिए उनका शुक्रिया करना चाहूंगा. मैं उनसे कभी नहीं मिला हूं लेकिन उन्होंने फिर भी इतनी इंसानियत दिखाई. मुझे काबुल पहुंचने के बाद इस बारे में पता चला. मेरे ख्याल से मेरा परिवार उनके संपर्क में था और उन्हें लगा कि मुझे उसी विमान से डिपोर्ट किया जाएगा. उस दौरान मेरा फोन बंद पड़ा था.

क्या आपका परिवार स्वीडन में रहता है?

जी, मेरी मां और दो बहनें स्वीडन में रहती हैं. मेरा जन्म अफगानिस्तान में हुआ, हालांकि मैं ठीक से नहीं जानता कहां. जब मैं छह साल का था तब हम लोग भाग कर ईरान के मशाद चले गए थे. बीस साल की उम्र तक मैं वहां रहा, उसके बाद यूरोप आ गया.

क्या आप वहां समाज में घुल मिल पाए थे? स्वीडन में आपका जीवन कैसा था?

मुझे स्वीडन में काम करने की अनुमति नहीं थी और ना ही मैं वहां कुछ सीख पाया. हालांकि मैं काफी वक्त वहां रहा लेकिन मैं वहां की भाषा नहीं बोलता हूं.

आपको डिपोर्ट क्यों किया गया?

स्वीडन में मैं घर पर ही रहता था. जब तीन बार मेरी असायलम की अर्जी खारिज हो गई, तो मैं जर्मनी चला गया, इस उम्मीद में कि वहां से आवेदन भर दूंगा. कुछ महीनों बाद मुझे अहसास हुआ कि वहां भी काम नहीं बनेगा, इसलिए मैंने सोचा कि अपने परिवार के ही पास वापस चला जाता हूं. जब मैं स्वीडन लौटा, तो वहां पुलिस ने मुझे हिरासत में ले लिया.

मैं आठ महीने डिपोर्टेशन सेंटर में रहा. पहले मालमो में, फिर गॉथनबर्ग और आखिरकार स्टॉकहोम में. वहां बुरा हाल था. उन्होंने मेरे साथ बहुत बुरा व्यवहार किया. मैं ठीक से खड़ा भी नहीं रह पाता था. वहां भयानक स्थिति है. वो उसे डिपोर्टेशन कस्टडी कहते हैं लेकिन वो किसी जेल जैसा, है जहां आपके साथ भेड़ बकरियों की तरह बर्ताव किया जाता है. वहां काम करने वाले गार्ड नस्लवादी हैं और आपकी मदद करने से इंकार कर देते हैं. वो वहां बैठ कर अपने ही कुछ खेल खेलते रहते थे.

क्या अफगानिस्तान में आपके कोई दोस्त या रिश्तेदार हैं?

नहीं, मैं यहां किसी को भी नहीं जनता. डिपोर्टेशन कस्टडी से मैं एक लड़के को जानता हूं लेकिन उसके अलावा और किसी को नहीं. मुझे ये भी नहीं पता कि अब मैं जाऊं कहां.

रिपोर्ट: डेविड मैथ्यू मार्टिन/आईबी