जाली हिटलर डायरी के तीस साल
२५ अप्रैल २०१३25 अप्रैल 1983 को जर्मनी के उत्तरी शहर हैम्बर्ग में हलचल थी. स्टैर्न पत्रिका के संपादक ने एक अंतरराष्ट्रीय प्रेस कॉन्फ्रेंस में शताब्दी की सनसनी पेश की, हिटलर की गोपनीय डायरी, जिसका पता किया था स्टैर्न के रिपोर्टर गैर्ड हाइडेमन ने. यह खबर पाने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस में 250 पत्रकार मौजूद थे. पत्रिका के संपादकीय में लिखा गया था कि तृतीय राइष का इतिहास फिर से लिखना होगा. स्टैर्न के मुख्य संपादक पेटर कॉख ने डायरी की सच्चाई पर संदेह को रिमोट डायगोनोस्टिक बताया. दो हफ्ते में ही सारा हंगामा थम गया, सनसनी खत्म हो गई. हिटलर की गोपनीय डायरी धोखाधड़ी साबित हुई. जर्मनी के संघीय अपराध कार्यालय बीकेए और संघीय अभिलेखागार ने उन्हें जालसाजी बताया और वह भी मामूली स्तर की. जिस कागज पर कथित डायरी लिखी गई थी, उस पर एक रसायन था जो युद्ध के बाद बाजार में आया था.
स्टैर्न की पूरी दुनिया में बड़ी किरकिरी हुई. मुख्य संपादकों की नौकरी गई. यह मामला पत्रकारीय विफलता की मिसाल बन गया. प्रकाशक हेनरी नानेन को कहना पड़ा कि स्टैर्न शर्मसार है. इस मामले से स्टैर्न की छवि को तो नुकसान पहुंचा ही, उसकी बिक्री पर भी भारी असर हुआ. बहुत से लोगों ने उस समय सबसे ज्यादा बिकने वाली पत्रिका को खरीदना भी बंद कर दिया. छवि और बिक्री के संकट से उबरने में स्टैर्न को सालों लग गए. अब तीस साल बाद स्टैर्न के मुख्य संपादक थोमस ओस्टरकॉर्न कहते हैं, "यह हमारे इतिहास पर एक धब्बा है."
जर्मनी के मीडिया इतिहास की इस अभूतपूर्व घटना की कहानी बार बार कही गई है. जर्मनी के प्रसिद्ध फिल्म निर्माता हेल्मुट डीटल ने इसे अपनी सफल फिल्म श्टॉन्क में फिल्माया भी है. किस तरह रिपोर्टर हाइडेमन के मन नाजियों का भूत समाया, किस तरह वह जालसाज कोनराड कुयाऊ के चंगुल में फंसा, किस तरह कोनराड ने हाइडेमन को जीडीआर से मिला कहकर 60 से ज्यादा नोटबुक दिए और उन्हें हिटलर की डायरी बताया.
आम तौर पर हर खबर की पुख्ता जांच के लिए मशहूर प्रकाशन गृह और संपादकीय दफ्तर ने अभूतपूर्व खबर देने में सबसे आगे रहने के चक्कर में सारी चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया और इस सनसनी के लिए 93 लाख मार्क चुकाए. इस जालसाजी का अंत वही हुआ जो एक कानूनी राज्य में होना चाहिए. हाइडेमन और कुयाऊ का अंत जेल में हुआ, चुकाये गए 93 लाख मार्क कहीं नहीं मिले. उनका आज तक पता नहीं है, हालांकि इस बीच मार्क की जगह यूरो ने ले ली है.
इस कांड को हुए जितने साल बीतते जा रहे हैं, उस पर उतना ही विश्वास होना मुश्किल होता जा रहा है. कहानी अच्छी है इसलिए, इस बार भी मीडिया में उस पर बहुत कुछ लिखा-सुना जा रहा है. 1983 में स्टैर्न के तीन मुख्य संपादकों में से एक फेलिक्स श्मिट ने अपने उन दिनों के नोट्स प्रकाशित किए हैं तो अब 81 साल के हो गए गैर्ड हाइडेमन ने अपना नजरिया पेश किया है. उनके लिए यह मामला अब उनकी जिंदगी का मुख्य मामला बन गया है. हैम्बर्ग अल्टोना में उनका घर उन दिनों की यादों से भरा पड़ा है. जालसाज कोनराड कुयाऊ की 2000 में कैंसर से मौत हो गई.
घटना के तीस साल बाद भी उन दिनों सक्रिय रहे बहुत से लोग सवाल करते हैं कि आखिरकार ऐसा संभव कैसे हुआ? स्टैर्न जैसी प्रसिद्ध पत्रिका मामूली से जालसाज के चक्कर में कैसे फंसी, जबकि रिपोर्टर ने अज्ञात सूत्र के हवाले से नकली डायरी दी थी. फेलिक्स श्मिट कहते हैं, "इन सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं है, सिर्फ स्पष्टीकरण हैं."
घटना के तीस साल बाद हिटलर की जाली डायरी अब संघीय अभिलेखागार का हिस्सा बनने जा रही है. स्टैर्न ने सालों तक उसके अधिकांश हिस्से को बंद रखा था. उसके कुछ ही हिस्सों को संग्रहालयों को दिया था. अब वह उसके पास बचे हुआ सारे मूल नोटबुक को आम लोगों के लिए उपलब्ध कराएगा. जर्मन अभिलेखागार ने उसकी पेशकश स्वीकार कर ली है. अभिलेखागार की एक प्रवक्ता कहते ही हैं, "वे सामयिक और प्रेस इतिहास के लिहाज से बड़े महत्व की हैं."
एमजे/एनआर (डीपीए, एएफपी)