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ज़िला केंद्रों में खुलेंगे मेडिकल स्कूल

१६ जनवरी २०१०

भारत के स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि देहातों में चिकित्सा की सुविधा को बेहतर बनाने के लिए केंद्र सरकार जल्द ही जिला स्तर के साढ़े तीन साल का चिकित्सा शिक्षा पाठ्यक्रम शुरू करेगी.

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गांवों में चिकित्सा सुविधा का अभावतस्वीर: picture alliance/dpa

भारत के गाँवों में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना एक बहुत बड़ी चुनौती है. आज भी देश के प्रत्येक गाँव में अस्पताल और डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं. इस स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने एक योजना तैयार की है जिसके तहत जिला स्तर पर चिकित्सा पाठ्यक्रम शुरू किये जायेंगे.

Tuberkulose in Indien
तस्वीर: picture-alliance/dpa

आज नागपुर में में इसकी घोषणा करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि शीघ्र ही सरकार जिला स्तर पर स्कूल खोल कर साढ़े तीन साल के चिकित्सा शिक्षा पाठ्यक्रम शुरू करेगी जिसे पूरा करने के बाद छात्रों को ग्रामीण इलाकों में नियुक्त किया जाएगा. इस पाठ्यक्रम में औषधि विज्ञान एवं शल्य विज्ञान -दोनों का समावेश होगा और इसे केवल सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में ही पढ़ाया जाएगा. लेकिन इसकी डिग्रियां विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की जायेंगी.

इस समय गाँवों में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में केवल एक औक्सिलिअरी नर्स मिडवाइफ होती है और सारा काम उसी के कन्धों पर होता है. आजाद ने कहा कि इस कोर्स में उत्तीर्ण होने वाले डॉक्टरों को इन प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और उपकेंद्रों में नियुक्त किया जाएगा ताकि मरीजों को उचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो सके. इसके

साथ-साथ सरकार मेडिकल कॉलेजों में स्नातक स्तर पर सीटों की संख्या 150 से बढ़ाकर 250 करने का प्रयास भी करेगी.

गाँवों में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने की ज़रुरत तो सभी स्वीकार करते हैं, लेकिन साढ़े तीन साल के मेडिकल कोर्स के बारे में डॉक्टर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं. इस बारे में हमने वरिष्ठ डॉक्टर निर्मल प्रिम से बात की जो भारत के अलावा मलेशिया और सउदी अरब में भी लंबे अरसे तक काम कर चुके हैं. उनका कहना है कि अधकचरा ज्ञान खतरनाक होता है और अल्पकालिक कोर्स के बजाय गाँवों में नियुक्ति के लिए सरकार को बेहतर वेतन या अन्य सुविधाएं देकर उसे आकर्षक बनाना चाहिए. डॉ प्रिम मानते हैं कि साढ़े पांच साल के कोर्स को साढ़े तीन साल में निपटाना उचित नहीं होगा.

रिपोर्ट: कुलदीप कुमार, नई दिल्ली

संपादन: महेश झा