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जलवायु परिवर्तन को समर्पित भौतिकी का नोबेल

५ अक्टूबर २०२१

सुकुरो मनाबे, क्लाउस हासेलमान और गिओर्गियो पारीसी को इस साल के भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए संयुक्त रूप से चुना गया है. इन तीनों को धरती की बदलती जलवायु से जुड़े उनके काम के लिए सम्मानित किया जाएगा.

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Nobelpreis für Physik 2021 | Syukuro Manabe, Klaus Hasselmann and Giorgio Parisi
तस्वीर: Niklas Elmehed/Nobel Prize Outreach

मनाबे जापानी मूल के अमेरिकी हैं, हासेलमान जर्मन हैं और पारीसी इटली के रहने वाले हैं. 11.5 लाख डॉलर के इस पुरस्कार की आधी राशि मनाबे और हासेलमान में धरती की जलवायु का मॉडल बनाने और ग्लोबल वॉर्मिंग का भरोसेमंद तरीके से पूर्वानुमान लगाने के लिए बराबर बराबर बांट दी जाएगी.

बाकी का आधा हिस्सा पारीसी को बेतरतीब सी लगने वाली गतिविधियों के पीछे के "छिपे हुए नियमों" का पता लगाने के लिए दिया जाएगा. स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने एक बयान में कहा, "पेचीदा सिस्टमों की खासियत ही यही होती है कि वो बेतरतीब होते हैं और आसानी से समझ में नहीं आते. इस साल का पुरस्कार इनकी व्याख्या करने और इनके दीर्घकालिक व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने के नए तरीकों का सम्मान करता है."

नोबेल समिति का कहना था, "सुकुरो मनाबे और क्लाउस हासेलमान ने धरती की जलवायु और उस पर मानवता के असर को लेकर हमारी समझ की नींव रखी." पारीसी के बारे में समिति ने कहा कि उन्हें, "बेतरतीब प्रक्रियाओं और पदार्थों के सिद्धांत के प्रति उनके क्रांतिकारी योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है."

Nobelpreis für Physik 2021 | Syukuro Manabe, Klaus Hasselmann and Giorgio Parisi
तस्वीर: Pontus Lundahl/TT NEWS AGENCY/picture alliance

भौतिकी के लिए नोबेल की समिति के अध्यक्ष थोर्स हांस हांसन ने एक बयान में  कहा, "इस साल जिन खोजों को सम्मान दिया जा रहा है वो यह दर्शाती हैं कि जलवायु को लेकर हमारी समझ का ठोस वैज्ञानिक आधार है जो नतीजों के कड़े विश्लेषण पर आधारित है."

90 साल के मनाबे अब अमेरिका के प्रिंसटन विश्वविद्यालय में हैं, 89 वर्षीय हासेलमान जर्मनी के हैम्बर्ग में मैक्स प्लैंक मौसम विज्ञान इंस्टिट्यूट में हैं और 73 साल के पारीसी रोम के सैपिएंजा विश्वविद्यालय में हैं. 

1960 के दशक में मनाबे ने दिखाया था कि धरती की सतह पर बढ़े हुए तापमान और वायुमंडल में मौजूद डाइऑक्साइड में संबंध है. वो धरती की जलवायु के मॉडलों को बनाने में प्रभावी रहे और उन्होंने यह समझने पर काम किया कि धरती को सूर्य से मिलने वाली गर्मी की ऊर्जा कैसे वायुमंडल में चली जाती है.  

हासेलमान को यह पता लगाने का श्रेय दिया जाता है कि जलवायु के मॉडल कैसे मौसम में परिवर्तन के बावजूद विश्वसनीय रह सकते हैं. समिति ने इस बात की सराहना की कैसे उन्होंने यह पता लगाया कि जलवायु परिवर्तन के लिए मानवनिर्मित उत्सर्जनों को कितना जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

सीके/एए (रॉयटर्स/एएफपी)

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