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जलवायु परिवर्तन बढ़ा रहा चक्रवातों की मार

हृदयेश जोशी
१७ मई २०२१

चक्रवात ताउते ने इस ट्रेंड पर मुहर लगाई है कि कम शक्तिशाली तूफान समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण शीघ्र ही ताकतवर चक्रवात बन जाते हैं. मौसम विज्ञानी कहते हैं कि सबसे ताकतवर तूफानों की ताकत दस साल पर 8 प्रतिशत बढ़ रही है.

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Indien I Zyklon zieht an Westküste entlang
तस्वीर: Vijay Bate/Hindustan Times/imago images

अरब सागर में उठा चक्रवाती तूफान ताउते अनुकूल मौसमी कारकों की वजह से लगातार मजबूत हो रहा है और मंगलवार सुबह यह गुजरात के द्वारिका के पास तट से टकराएगा. हालांकि गुजरात में कई जगह इसका स्पष्ट प्रभाव सोमवार शाम से ही दिखने लगेगा. ताउते के कारण पिछले कुछ दिनों से भारत के पश्चिमी तट पर तेज हवाएं चल रही हैं और मूसलाधार बारिश हो रही है. इसके कारण केरल, कर्नाटक गोवा और महाराष्ट्र में कई जगह पेड़ उखड़ गए हैं और कम से कम 6 लोगों की मौत हो गई है. 

बढ़ रहे हैं चक्रवाती तूफान

भारत में चक्रवाती तूफान अमूमन मई और अक्टूबर के बीच आते हैं. ज्यादातर चक्रवात बंगाल की खाड़ी में उठते हैं और पूर्वी तटरेखा पर उनका असर दिखता है. पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के अलावा तमिलनाडु में इन चक्रवातों की मार दिखती रही है. साल 1999 में उड़ीसा में आए सुपर साइक्लोन के अलावा आइला, पाइलिन, हुदहुद, गज, तितली और फानी जैसे तूफान पिछले 20 साल में बंगाल की खाड़ी में उठे.

Indien I Zyklon zieht an Westküste entlang
तूफान के बाद सड़कों की सफाईतस्वीर: Umesh Zarmekar/AFP

लेकिन अब अरब सागर में भी लगातार चक्रवाती तूफानों का सिलसिला बढ़ रहा है. उनकी संख्या और ताकत अधिक हो रही है. अभी एक अति शक्तिशाली तूफान बन रहा ताउते पिछले दो दशकों के सबसे ताकतवर तूफानों में है. राहत की बात है कि यह तट से अपनी दूरी बनाए हुए है. इससे पहले 2007 में दोनू और 2019 में क्यार नाम के दो सुपर साइक्लोन अरब सागर में ही उठे थे लेकिन दोनों ही समुद्र तट से दूर ही रहे. इसी तरह 2017 में ओखी साइक्लोन समंदर के भीतर ही रहा पर इससे करीब 250 लोगों की मौत हुई.

पुणे स्थित भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक पिछले एक दशक में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उठने वाले चक्रवाती तूफानों की संख्या में 11 प्रतिशत वृद्धि हुई है जबकि 2014 और 2019 के बीच चक्रवातों में 32 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है.

जलवायु परिवर्तन से बदलता चक्रवातों का स्वभाव

चक्रवातों की संख्या और उनकी मारक क्षमता बढ़ने के पीछे ग्लोबल वॉर्मिंग एक स्पष्ट वजह है. मौसम विज्ञानियों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का तापमान पूरी दुनिया में बढ़ रहा है. समुद्र सतह का तापमान बढ़ने से चक्रवात अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं. मिसाल के तौर पर अरब सागर में समुद्र सतह का तापमान 28-29 डिग्री तक रहता है लेकिन अभी ताउते तूफान के वक्त यह 31 डिग्री है.

जलवायु विज्ञानियों के मुताबिक जैसे जैसे समुद्र गर्म होते जाएंगे वहां उठे कमजोर चक्रवात तेजी से शक्तिशाली और विनाशकारी रूप लेंगे. अम्फन, फानी और ओखी तूफानों से यह बात साबित हुई है. चक्रवात ताउते ने इस ट्रेंड पर मुहर लगाई है कि कम शक्तिशाली तूफान समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण शीघ्र ही ताकतवर चक्रवात बन जाते हैं. सबसे शक्तिशाली तूफानों की ताकत हर दशक में करीब 8 प्रतिशत बढ़ रही है.

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मुंबई में किनारे लगी नावेंतस्वीर: Pratik Chorge/Hindustan Times/imago images

जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र सतह (सी-लेवल) में हो रही बढ़ोतरी भी साइक्लोन की मार बढ़ाती है क्योंकि इससे पानी अधिक भीतर तक आता है अधिक तटीय इलाके डूबते हैं. आईपीसीसी से जुड़े और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी के वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कॉल के मुताबिक, "साइक्लोन ताउते के रूप में हम देख रहे हैं कि लगातार चौथे साल मॉनसून से पहले अरब सागर में साइक्लोन उठा है. लगातार तीसरे साल साइक्लोन पश्चिमी तट के बहुत करीब आया है. पिछली एक सदी में अरब सागर के तापमान में वृद्धि हुई है और इससे यहां चक्रवातों की संख्या और मारक क्षमता बढ़ी है.”

अर्थव्यवस्था पर बढ़ रहा है संकट

चक्रवातों का अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ता है. विश्व मौसम संगठन (डब्लूएमओ) के मुताबिक पिछले साल मई में भारत और बांग्लादेश सीमा पर आए अम्फन तूफान के कारण दोनों देशों में करीब 130 लोगों की जान गई थी और कुल 50 लाख लोगों को विस्थापित करना पड़ा था. डब्लूएमओ का आकलन है कि इससे कुल 1,400 करोड़ डॉलर यानी करीब 1 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ.

भारत की तटरेखा करीब 7,500 किलोमीटर लम्बी है और देश में करीब 70 तटीय जिले हैं. यहां रह रही करीब 25 करोड़ की आबादी पर चक्रवातों की मार पड़ती है. बेहतर टेक्नोलॉजी और पूर्व चेतावनी प्रणाली के होने से तटरेखा पर लोगों की जान तो बचाई जा सकती है लेकिन यहां रह रही आबादी की आर्थिक क्षति बड़े पैमाने पर होती है. यह डर विशेष रूप से पश्चिमी तट पर अधिक है जहां तटरेखा पर सघन बसावट है. केरल, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात में लोगों के घर और काम धन्धे तट रेखा पर ही हैं. मछुआरों और किसानों के अलावा पर्यटन से जुड़े कारोबारियों पर संकट बढ़ता रहा तो देश की अर्थव्यवस्था पर एक बड़ी चोट होगी.

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