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जलवायु परिवर्तन के चलते जानलेवा लू की चपेट में दक्षिण एशिया

अजीत निरंजन
२८ मई २०२२

कोयले और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों को जलाने से भारत और पाकिस्तान में हाल के सप्ताहों में लू और भड़क उठी है. दो अलग अलग अध्ययनों में ये बात सामने आई है.

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निर्माण क्षेत्र में काम करने वालों को सबसे ज्यादा लू की तपिश झेलनी पड़ती है
निर्माण क्षेत्र में काम करने वालों को सबसे ज्यादा लू की तपिश झेलनी पड़ती हैतस्वीर: AMIT DAVE/REUTERS

झुलसाने वाली तपिश में भारत और पाकिस्तान में कम से कम 90 लोगों की मौत दर्ज की गई है. जलवायु वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय समूह, वर्ल्ड वेदर एट्रीब्युशन (डब्लूडब्लूए) के एक रिसर्च रिपोर्ट की मानें तो अगर लोगों ने धरती को गरम नहीं कर दिया होता तो ये तापमान एक डिग्री सेल्सियस कम होता और इसकी आशंका 30 गुना कम होती. पिछले सप्ताह, ब्रिटेन के मौसम विभाग से जारी एक आकलन के मुताबिक इंसानी दखल ने बेतहाशा गर्म की आशंका को सौ गुना बढ़ा दिया है. 

इन विश्लेषणों में इस ओर भी ध्यान दिलाया गया है कि कार्बन प्रदूषण पहले ही समाज पर अपना कहर बरपा रहा है. भीषण गर्मी से भारत में जंगल जल उठे हैं, ग्लेशियर पिघलने लगे हैं जिसके चलते पाकिस्तान में आकस्मिक बाढ़ की घटनाएं बढ़ी हैं और दोनों देशों में बिजली गुल होने लगी है. इसकी वजह से एयर कंडिशनर लगाने और चलाने की हैसियत रखने वाले नागरिकों का जीना भी मुहाल हुआ है. फसलों की पैदावार पर भी असर पड़ा है. जबकि वैश्विक स्तर पर भुखमरी बढ़ रही है और यूक्रेन पर रूसी हमले से गेहूं की आपूर्ति बाधित हुई है. 

आईआईटी दिल्ली में वैज्ञानिक और डब्लूडब्लूए स्टडी के सहलेखक कृष्णा अच्युताकाव कहते हैं, "भविष्य में वैश्विक तापमान के लिहाज से जाहिर है इस किस्म की लू आम और ज्यादा तीव्र हो जाएंगी."

भारत के गेहूं निर्यात पर रोक लगाने से भोजन की समस्या और बढ़ेगी
भारत के गेहूं निर्यात पर रोक लगाने से भोजन की समस्या और बढ़ेगीतस्वीर: Narinder Nanu/AFP/Getty Images

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फसल के नुकसान से भुखमरी का खतरा

विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि फसल पर पड़ने वाला असर विशेष तौर पर चिंताजनक है. मौसमी परिघटनाओं के अध्ययन से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र एजेंसी, विश्व मौसम संगठन की पिछले बुधवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक संघर्ष, जलवायु, कोविड और अर्थव्यवस्था के संकटों की कड़ियां, खाद्य सुरक्षा के लिहाज से दशकों के विकास को पहले ही कमतर कर चुकी थी. आधा पेट भोजन करने वाले लोगों की संख्या में दशकों तक जारी गिरावट के बाद, 2010 के दशक में वो सपाट हो गई थी. लेकिन 2020 में उसमें भारी वृद्धि का अनुमान है.

इसके अलावा, यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनिया के दो सबसे बड़े गेहूं निर्यातक देशों से अनाज के निर्यात को बाधित कर दिया है. इस महीने के शुरू में, चीन के बाद गेहूं के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश भारत ने गर्मी से झुलस चुके खेतों और बर्बाद हुई फसलों को देखते हुए निर्यात पर रोक लगा दी है. डब्लूडब्लूए अध्ययन में शामिल, अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस रेड क्रेसेंट क्लाइमेट सेंटर में रिस्क मैनेजमेंट की एक्सपर्ट अदिति कपूर का कहना है कि फसल जब पक कर तैयार होने को थी तभी गेहूं पर तीखी गर्मी की मार पड़ी. अनुमान है कि भारत के 10 से 30 फीसदी गेहूं पर इसका असर हुआ. 

वो कहती हैं, "पहले तो किसान प्रभावित हुए, और जब कीमतों में उछाल आया तो खाना खरीदने वाले गरीब लोगों पर असर पड़ा."

पर्याप्त पानी हासिल करना एक बड़ी चुनौती है खासतौर से अनाधिकृत कॉलोनियों में
पर्याप्त पानी हासिल करना एक बड़ी चुनौती है खासतौर से अनाधिकृत कॉलोनियों मेंतस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS

जीवाश्म ईंधनों को जलाने का बुरा असर

जब तूफान और लू हमला करती हैं तो दुनिया भर में डब्लूडब्लूए वैज्ञानिक आज की जलवायु मे होने वाली अत्यधिक मौसमी परिघटना की गुंजाइश का मॉडल तैयार करने में जुट जाते हैं. वे फिर उस डाटा की, बिना इंसानी प्रभाव वाली काल्पनिक दुनिया से तुलना करते हैं. साथी विशेषज्ञों की समीक्षा से गुजरने से पहले, इसके नतीजे प्री-प्रिंट अध्ययनों के रूप में प्रकाशित किए जाते हैं. इसकी मदद से नीति निर्माता और जनता, जहन में दर्ज ताजा अनुभवों के हवाले से जलवायु परिवर्तन की भूमिका को समझ सकते हैं.

बहुत सारी मौसमी चरम स्थितियों को समझने के लिए एक मुख्य सवाल यह है कि क्या उसमें जलवायु परिवर्तन की भूमिका थी या नहीं लेकिन लू के मामले में ऐसा नहीं है. लू पहले ही तीखी हो चुकी हैं और जलवायु परिवर्तन उसकी एक बड़ी वजह है इसलिए यहां मुख्य सवाल यह है कि इन हवाओं की जलवायु परिवर्तन में कितनी भूमिका है.

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18वीं सदी के आखिर में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से मनुष्यों ने सूरज की किरणों को कैद करने वाली गैसों की बड़ी मात्रा उत्सर्जित की है. ये गैसें पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस की तरह काम करती हैं. इससे औसत तापमानों में वृद्धि हुई है. जिसके चलते गर्म और लू में नाटकीय रूप से तेजी आई है. ग्रीन हाउस प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत जीवाश्म ईंधन है जैसे कोयला, तेल, और गैस. इनके अलावा जंगलों की आग और मीथेन छोड़ने वाले मवेशी भी हैं.

गर्मी से बचने के लिए लोगों को साया चाहिए और इस कोशिश में वो खतरनाक जगहों तक पहुंच रहे हैं
गर्मी से बचने के लिए लोगों को साया चाहिए और इस कोशिश में वो खतरनाक जगहों तक पहुंच रहे हैंतस्वीर: ADNAN ABIDI/REUTERS

पिछले साल एनर्जी रिसर्च एंड सोशल साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने बताया कि 1965 और 2018 के बीच, धरती को गर्म करने वाले एक तिहाई जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन और सीमेंट उत्पादन के लिए, 20 कंपनियां जिम्मेदार थीं. इसमें उन जीवश्म ईंधनों का प्रदूषण भी शामिल था जो इन कंपनियों ने थर्ड पार्टी को बेचा था. चार सबसे बड़ी, निवेशकों के स्वामित्व वाली जीवाश्म ईंधन कंपनियां शेवरॉन, एक्सॉनमोबिल, बीपी और शेल, 11 फीसदी उत्सर्जनों के लिए जिम्मेदार थीं.

डीडब्लू के पूछने पर भी कंपनियों ने तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. 

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गर्मी से निपटने के लिए योजनाओं की दरकार

दिन में बाहर काम करने वाले लोग- जैसे कि किसान और निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर लू से सबसे ज्यादा जूझते हैं, साथ ही बुजुर्ग और स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोग भी. 2010 में लू से भारत में अकेले अहमदाबाद शहर में 1344 लोगो की जानें चली गई थी. 2015 में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में लू की चपेट में आकर 1000 से ज्यादा लोग मारे गए थे.

डब्लूडब्लूए के मुताबिक, इस साल लू जब से चली है, अनुमान के मुताबिक 90 लोग दोनों देशो में मारे गए हैं. हालांकि यह संख्या कम ही है. समस्या वाले महीनों बाद मृत्यु दर में अधिकता का अंदाजा डॉक्टर लगा सकते हैं, लेकिन आधिकारिक आंकड़ो में लू से होने वाली मौतें पूरी तरह बामुश्किल ही दर्ज हो पाती हैं. 

वैश्विक जलवायु में लू का अप्रत्यक्ष असर हो सकता है. ये ग्लेशियरों को गला सकती हैं, आकस्मिक बाढ़ भी ला सकती हैं. ऐसी ही एक बाढ़ ने मई में पाकिस्तान में भयंकर तबाही मचाई थी और पुल बह गए थे. अपेक्षाकृत गर्म हवा ज्यादा नमी सहन कर लेती है, जिसके चलते ज्यादा भारी बारिश आती है. जबकि दूसरे जलवायु कारक दूसरे ढंग से काम कर सकते हैं. पिछले सप्ताह, असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर राज्य भारी बारिश और गर्म की दोहरी तबाहियों में फंस गए थे. 

लू के दौरान जिंदगियां बचाने के लिए सरकारें, खतरा आने से पहले निवासियों को सचेत कर सकती हैं, सबसे वंचित समुदायों की सुरक्षा के लिए स्वास्थ्य कर्मियों के साथ समन्वय कर सकती हैं, और लोगों को छाया और पानी मुहैया कराने के लिए कूलिंग सेंटर बना सकती है. डब्लूडब्लूए के मुताबिक, पिछले पांच साल में भारत के 130 शहरों ने लू से जुड़ी कार्ययोजना बनाई है. कपूर का कहना है कि, "निश्चित रूप से इसे और बढ़ाने की जरूरत है."

हालांकि ऐसे समाधान अनिश्चित काल के लिए मददगार नहीं हो सकते हैं. खेती में काम करने और इमारत बनाने में लगे बहुत से लोगों के लिए घर पर ठहरना संभव नहीं है. घर के भीतर की ठंड उनके लिए अच्छी हो सकती है. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था, आईपीसीसी की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर अकादमिक साहित्य में पाया गया कि कुछ इलाकों में "अनुकूलन कठिन सीमाओं तक" पहले ही पहुंच चुका है. धरती जैसे जैसे गर्म होगी और सीमाएं उभरेंगी और भरी जाएंगी.

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औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से लोग धरती को करीब 1.1 डिग्री सेल्सियस गर्म पहले ही कर चुके हैं. 2015 में विश्व नेताओं ने एक समझौते पर दस्तखत कर, वैश्विक तापमान में कटौती के लिए उसे इस शताब्दी के आखिर तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की कोशिश पर सहमति बनी थी. हालांकि हो ये रहा है कि कई देश ऐसी नीतियों पर आमादा हैं जो उपरोक्त ऊपरी सीमा से करीब दोगुना हैं. 

अगर वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तक पहुंचता है, तो डब्लूडब्लूए की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत और पाकिस्तान पर हाल में बरपा, लू के कहर का खतरा आज के मुकाबले दो से 20 गुना ज्यादा होगा और तापमान 0.5 से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा होगी.

अच्युतराव कहते हैं, "एक निश्चित सीमा तक ही इंसानी देह तपिश से छुटकारा पा सकती है."

गर्मी से बेहाल हुए पक्षी गिर रहे हैं जमीन पर