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जर्मनी में सरकार बनने का रास्ता साफ

७ फ़रवरी २०१८

चुनाव के चार महीने बाद जर्मनी में नई सरकार बनने जा रही है. चुनाव में मुख्य प्रतिद्वंद्वी रही एसपीडी पार्टी और चांसलर मैर्केल की सीडीयू-सीएसयू के बीच गठबंधन समझौता हो गया है.

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Koalitionsverhandlungen von Union und SPD Schulz Seehofer Merkel
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. von Jutrczenka

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश जर्मनी में राजनीतिक गतिरोध चार महीने बाद जाकर खत्म हुआ. चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी सीडीयू और उसकी सहोदर पार्टी सीएसयू के साथ सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) की दो हफ्ते से अधिक की गठबंधन वार्ता आखिरकार सफल रही. सीडीयू-सीएसयू और एसपीडी के बीच विदेश नीति, पर्यावरण नीति, हाउसिंग, स्कूलिंग, श्रम कानून और स्वास्थ्य सेवाओं समेत ज्यादातर मुद्दों पर सहमति बन चुकी है. सहमति के बाद मैर्केल चौथी बार गठबंधन समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हैं.

जर्मनी के सरकारी प्रसारक एआरडी के मुताबिक आखिरी गतिरोध मंत्रालयों और निजी सवालों के लेकर बना था, जिन्हें बुधवार को सुलझा लिया गया.

जर्मनी में नई सरकार बनने से देश और यूरोपीय संघ के देशों को भी खासी राहत मिलेगी. रिफ्यूजी संकट और ब्रेक्जिट के मुद्दे पर अब यूरोपीय संघ में आम राय बनाने की कवायद तेज हो सकेगी. अंगेला मैर्केल यूरोप की सबसे अनुभवी नेता हैं.

जर्मनी में सितंबर 2017 में चुनाव हुए थे. चुनाव में सीडीयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बाकी दलों की तरह उसे भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. नतीजों के बाद सीडीयू-सीएसयू ने ग्रीन पार्टी और कारोबार के लिहाज से उदार मानी जाने वाली पार्टी एफडीपी के साथ गठबंधन वार्ता शुरू की, लेकिन यह नाकाम रही. मैर्केल बीते 12 साल से जर्मनी में चांसलर हैं.

इसके बाद एसपीडी के साथ वार्ता शुरू हुई. एसपीडी सरकार में शामिल नहीं होना चाहती थी. लेकिन चुनावों में अति दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी को मिली जबरदस्त सफलता के चलते सरकार बनाना मजबूरी सी हो गई. चुनाव में सीडीयू-सीएसयू को 33 फीसदी वोट मिले. वहीं एसपीडी 20.5 फीसदी पर सिमट गई. और उग्र दक्षिणपंथी एएफडी को पहली बार 12.6 फीसदी वोट मिले.

कई राजनीतिक पंडितों ने दावा किया कि अगर फिर से चुनाव हुए तो एएफडी को और ज्यादा वोट मिलेंगे. एएफडी जर्मनी की शरणार्थी नीति की आलोचना करती है. पार्टी का आरोप है कि देश में इस्लाम का प्रभाव बढ़ रहा है. विदेशी मूल के लोगों के प्रति भी एएफडी का रुख कड़ा रहता है.

ओएसजे/एमजे (एएफपी, डीपीए)