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जर्मनी में यहूदी जीवन

आभा मोंढे११ नवम्बर २००८

70साल पहले 1938 नाज़ी शासन ने यहूदियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के तहत जर्मनी में यहूदियों के घरों, दुकानों, पूजास्थलों को तहस नहस कर दिया था. एक तरह से ये शुरुआत थी जर्मनी के इतिहास के काले अध्याय की.

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फ्रैंकफर्ट में यहूदी पूजास्थल सिनेगॉगतस्वीर: DW

आज के दौर में जर्मनी मं यहूदियों का जीवन कैसा है, क्या वे इतिहास की इस गहरी चोट से उबर पाए हैं. इसी बात को जानने हम फ्रैंकफर्ट के चौथे सबसे बड़े यहूदी सामुदायिक केंद्र, रेस्टॉरेंट सोहर और स्कूल में गए.

Deutschland Frankfurt Stefan Szajak Jüdische Gemeinde
फ्रैंकफर्ट यहूदी केंद्र के निदेशक श्टेफान शायाकतस्वीर: DW

फ्रैंकफर्ट का इसाक एमील लिश्टिगफेल्ड स्कूल. यहां विशेष तौर पर यहूदी संस्कृति और परंपरा सिखाई जाती है. केजी से हायर सेकेंडरी तक का स्कूल है. इसकी स्थापना 13 अप्रैल 1966 को हुई थी. छठी कक्षा में पढ़ने वाली आर्लीन के लिये ये स्कूल दूसरे स्कूलों से अलग है क्योंकि यहां उसे यहूदी परंपरा के बारे में जानने को मिलता है. आर्लीन कहती हैं कि हमें यहां बाकी विषयों के अलावा यहूदी जीवन, धर्म, भाषा के बारे में जानने को मिलता है जो हमें न तो परिवार में बताया जाता है न हीं और कहीं. हमारे सारे त्यौहार सारी छुट्टियां हमें पता लगती हैं और यही इस स्कूल में ख़ास है जो और कहीं नहीं है.

Reichskristallnacht in Berlin
1938 में जर्मनी में धव्स्त किये गए यहूदी संस्थानतस्वीर: AP

लेकिन जिस इतिहास के बारे में माता पिता बोलने से कतराते हैं, दादा दादी जिसे भूल जाना चाहते हैं, उस भूतकाल को बच्चों को किस तरह से पढ़ाया जाता है. इस बारे में स्कूल की प्रिंसिपल का कहना है कि हमारा कहना है कि 'बच्चे अपने परिवार में दादा दादी से पूछें कि उस समय क्या हुआ था, लेकिन अगर वे इस बारे में बात नहीं करना चाहें तो बच्चों को उनकी भावनाओं का ख्याल रखना चाहिये क्योंकि इतिहास के इस काले अध्याय को शब्दों में व्यक्त ही नहीं किया जा सकता. ये हमारे बच्चों को सीखना है. महसूस करना अपने दादा दादी या नानी के दर्द को.'

आठवीं कक्षा के बच्चों को यहूदी इतिहास को लेकर एक प्रोजेक्ट बनाना होता है 'आठवीं कक्षा के बच्चों के लिये प्रोजेक्ट होता है कि वे नाज़ी शासन में जीवित बचे किसी एक यहूदी के जीवन के बारे में लिखें. अगर उनके परिवार वाले इस बारे में बच्चों को नहीं बता पाते तो स्कूल उन्हें वीडियो और सामग्री उपलब्ध कराता है. और फिर पाँच या छह यहूदियों की जीवनी हम हर साल नौ नवंबर को प्रस्तुत करते हैं'.

नेली क्रांज़ स्कूल में हिब्रु पढ़ाती हैं. वे पिछले उनतालीस साल से जर्मनी में हैं. वे जर्मनी में यहूदी जीवन के बारे में बताती हैं कि 'जब यहूदी यहां आए थे तब शुरु में वे लोग यहां नहीं रहना चाहते थे. लेकिन फिर उन्होंने अपने पैर यहां जमा लिये, व्यवसाय स्थापित किये. अपने बच्चों को स्कूल भेजा. और अब वे समाज का एक हिस्सा बन गए हैं, उसमें घुल-मिल गए हैं'.

बच्चे जर्मन समाज में अच्छे से घुल मिल जाएं इसके लिये ज़रूरी है कि उन्हें भी अन्य स्कूलों की तरह ही शिक्षा दी जाए. और यही इस स्कूल में भी किया जाता है. सामान्य पाठ्यक्रम यहां भी लागू है लेकिन 'सिर्फ़ इतिहास एक तथ्य नहीं है. हमारे स्कूल में यहूदी रहन सहन, धर्म, खान पान को सामान्य पाठ्यक्रम के साथ जोड़ दिया जाता है. जैसे प्रारंभिक स्कूलों में सही खान पान सिखाया जाता है तो हम उसमें यहूदी खाना कोशर के बारे में जानकारी देते हैं. जब पेड़ पौधों का नया साल मनाया जाता है तो हम पर्यावरण, जलवायु पर अलग अलग प्रोजेक्ट बनाते हैं'.

जर्मनी के व्यावसायिक शहर फ्रांकफर्ट में यहूदी समुदाय में सात हज़ार से ज़्यादा सदस्य हैं. एक बहुत ही सुंदर सोहर रेस्त्रां है जहां सिर्फ़ यहूदी खाना मिलता है जिसे कोशर कहते हैं. यहूदी धार्मिक पुस्तक टोरा के मुताबिक़ दूध में मांस पकाना मना है, उस बर्तन में भी मांस नहीं पकाया जाता जिसमें पहले दूध रखा जाता हो. रसोई में इन सब चीज़ों का बहुत ध्यान रखा जाता है. फ्रांकफर्ट में यहूदी समुदाय के इग्नाज़ बुबिस केंद्र में सारी सुविधाएं हैं. इस केंद्र के निदेशक श्टेफान शायाक बताते है कि 'फ्रांकफर्ट विविध संस्कृति और धर्मों वाला राज्य होने के कारण यहां सहिष्णुता बहुत है. इसलिये हमें यहां अपने आप को स्थापित करने में कोई मुश्किल ही नहीं हुई. राज्य की कई संस्थाओं ने हमें सहायता दी और फिर हम किन्डरगार्टन स्कूल, वृद्धाश्रम, रेस्त्रां बना सके'.

सोवियत संघ के विघटन के बाद क़रीब एक लाख 90 हज़ार के क़रीब यहूदी जर्मनी आए और इस कारण यहां यहूदी समुदायों में लोगों की संख्या एकदम बढ़ गई. कई लोगों को रोज़गार की समस्या है और फ्रांकफर्ट का यह यहूदी सामुदायिक केंद्र बाहर से आए लोगों को जर्मन समाज में एकीकृत करने की कोशिश करता है उन्हें जर्मन सीखाने के भी कार्यक्रम चलाता है क्योंकि समाज में घुलने के लिये ज़रूरी है भाषा. और जर्मन भाषा सीखना बहुतों के लिये आसान नहीं है.

फ्रैंकफर्ट में यहूदियों का पूजा घर सिनेगॉग भी है. लेकिन यह एकदम पारंपरिक नहीं है. शायाक बताते हैं कि उदारवादी पूजा घरों में रुढ़िवादी लोग जा सकते हैं लेकिन उल्टा नहीं हो सकता है. इसलिये सबको साथ लेकर चलने के लक्ष्य के साथ यह सिनेगॉग बनाया गया. बहुत ही सुन्दर वास्तुकला का नमुना है ये पूजाघर. नीले और सुनहरे रंगों को सजा गुम्बद और खिड़कियां. इनमें कुछ दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नष्ट हो गईं तो कुछ वैसी ही हैं. सिनेगॉग के बारे में फ्रैंकफर्ट यहूदी समुदाय के निदेशक श्टेफान शायाक बताते हैं कि 'पहले यह एक उदारवादी सिनेगॉग था क्योंकि यहां पर ये वाद्य ऑर्गन रखा है जो कि पारंपरिक रुढ़िवादी यहूदी मंदिरों में नहीं मिलेगा. हमारे इस सिनेगॉग के एक हिस्से में अति रुढ़िवादी हिस्सा है, एक उदारवादी और एक आधुनिक. उदारवादी सिनेगॉग में तो रुढ़िवादी आ सकते हैं लेकिन पारंपरिक हिस्से में उदारवादी नहीं. इसलिये प्रार्थना की जगह हमने इस तरह से बनाई है कि त्यौहारों, नए साल पर सभी यहूदी यहां प्रार्थना के लिये आ सकें'.

इसी सिनेगॉग में दो और पूजाघर हैं एक जहां बहुत ही पारंपरिक ढंग से प्रार्थना की जाती है. यहां महिलाओं के आने जाने और बैठने की जगह और आने जाने के द़रवाज़े भी अलग है. दूसरा हिस्सा एकदम आधुनिक प्रार्थना घर है जहां सभी साथ में प्रार्थना करते हैं. किसी भी यहूदी धार्मिक स्थल पर माइक या लाउड स्पीकर लगाने की अनुमति नहीं है. यह एक ध्यान की जगह है. फ्रैंकफर्ट में यहूदी समुदाय के रेस्टोरां, स्कूल में जब हम गए तो देखा कि सुरक्षा के भारी इंतज़ाम हैं. सिनेगॉग के बाहर भी सुरक्षा इंतज़ाम थे.

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घरों को जला दिया गया था.तस्वीर: AP

9 नवंबर से 10 नवंबर की रात 1938 में यहूदियों के ख़िलाफ़ शुरु हुई कार्रवाई में उनके घरों दुकानों और पूजास्थलों को नष्ट कर दिया था. इसमें अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 91 लोग मारे गए थे, 267 पूजाघरों और सामुदायिक स्थलों को नष्ट किया था और क़रीब साढ़े सात हज़ार दुकानें तोड़ दी गई थी. लेकिन वास्तविकता में इनकी संख्या हज़ारों में थी. जिसके बाद यहूदियों को मारे डालने का सिलसिला शुरु हुआ.

जर्मनी में इकलौती यूनिवर्सिटी जो कि यहूदी संस्कृति वहां की भाषा और संस्कृति का पाठ्यक्रम चलाती है वह है ड्यूसेलडॉर्फ की हाइनरिश हाइने यूनिवर्सिटी.