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जर्मनी में बढ़ रहा है प्रवासी भारतीय मीडिया

महेश झा१८ जुलाई २००८

अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन की तरह अब जर्मनी में रहने वाले भारतीय मूल के लोग प्रवासी भारतीय पत्रिका, रेडियो और वेबसाइट खोल रहे हैं. हिंदी फ़िल्मों की लोकप्रियता ने भी इस ट्रेंड को बढ़ावा दिया है.

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एक गोष्ठी में भारतीय मूल की पत्रकार अमृता चीमा के साथ जर्मन सांसद योजेफ़ विंकलरतस्वीर: DW

जब से आप्रवासन हो रहा है तभी से प्रवासियों के लिए मीडिया चलाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं. इंगलैंड, अमेरिका और कनाडा इसका आरंभिक उदाहरण रहे हैं लेकिन वैश्‍वीकरण ने इस प्रक्रिया को और बढ़ाया है. इंटरनेट के आने से प्रकाशन का खर्च भी घटा है.

यूं तो भारतीय जब से यूरोप में आ रहे हैं वे जर्मनी भी आ रहे हैं लेकिन 19 वीं शताब्दी के आरंभ से अच्छी ख़ासी संख्या में भारतीय छात्र जर्मनी पढ़ने के लिए आने लगे. संस्कृत के संस्थानों के अलावा विज्ञान और कृषि के संस्थानों में भी. इन छात्रों में सबसे प्रमुख नाम बाद में राष्ट्रपति बने ज़ाकिर हुसैन का है जिंहोंने जर्मनी से ही डॉक्टरेट की थी.

Amit Kulkarni - mit Green Card in Deutschland
जर्मनी को आईटी विशेषज्ञों की ज़रूरत हैतस्वीर: dpa - Fotoreport

बाद में द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान पकड़े गए युद्धबंदी भी काफ़ी समय तक जर्मनी में रहते थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जर्मनी प्रवास के दौरान आज़ाद हिंद फ़ौज के जवानों के लिए अख़बार निकाला जाता था, लेकिन बाद में इस पर इतना ध्यान नहीं दिया गया.

पहला अहम प्रयास दूसरी पीढ़ी के युवाओं द्वारा द इंडरनेट पोरटल बनाना था. इसके साथ आरंभ से जुड़े रहे अरूणाभ चौधरी कहते हैं कि किंडर श्टाट इंडर नारे के विरोध में इस इंटरनेट साइट का निर्माण किया गया था ताकि भारतीयों का छवि ख़राब न हो.

तत्कालीन जर्मन चांसलर गैरहार्ड श्रोएडर की देश में आईटी विशेषज्ञों की कमी को पूरा करने के लिए भारत से विशेषज्ञों को लाने की योजना थी. इसके विरोध में विपक्षी सीडीयू की नॉर्थ राइन वेस्टफ़ैलिया इकाई ने यह नारा दिया था कि भारतीय विशेषज्ञों को लाने के बदले स्थानीय बच्चों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.

संघीय जर्मनी में काम के लिए आनेवाले भारतीयों का पहला जत्था केरल की नर्सों का था. जब उनके परिवार भी यहाँ आकर रहने लगे तो मलयाली सांस्कृतिक पत्रिकाओं के प्रकाशन की कोशिश की गई, लेकिन पत्रिका निकालने का खर्च ख़रीदारों की संख्या से अधिक था और विज्ञापन मिलने की भी कोई संभावना नहीं हुआ करती थी.

Filmplakat Bollywood
बॉलीवुड की लोकप्रियता

इंटरनेट के आने से स्थिति बदली है. अलग अलग समुदायों के लोग नई नई साइटें खोल रहे हैं और साथ ही दूसरी पीढ़ी के भारतीय आपस में संवाद का मंच भी बना रहे हैं. इसके अलावा मुद्रित पत्रिकाएं निकालने की कोशिश भी हो रही है. ऐसी पत्रिकाओं में अंग्रेज़ी व जर्मन में आर्थिक व लाइफ़स्टाइल पत्रिका क्रॉसवेज़ है. हिंदी में बसेरा है.

सबसे अधिक उबाल आया है भारतीय फ़िल्मों की लोकप्रियता के कारण फ़िल्मों से जुड़ी पत्रिकाओं का. बॉलीवुड न्यूज़ एजेंसी चल रही है, कई फ़ोरम हैं, बॉलीवुड पत्रिका है और स्टारडस्ट और फ़िल्मफेयर जैसी भारतीय पत्रिकाओं का जर्मन भाषा में प्रकाशन हो रहा है.