जर्मनी में बच्चों के प्लेग्राउंड का इतिहास
आज जर्मनी में हर मोहल्ले में बच्चों के प्लेग्राउंड दिखते हैं. वे शहरी आवास का अनिवार्य हिस्सा हैं. लेकिन बच्चों के लिए एक रचनात्मक माहौल की अवधारणा अपेक्षाकृत नई है. पिछली सदी में इसका लगातार विकास हुआ है.
जर्मनी के शुरुआती प्लेग्राउंड
1960 के दशक में डू इट योरसेल्फ आंदोलन ने शिक्षा के क्षेत्र में भी एक्टिविज्म को प्रभावित किया. माता-पिता सरकार पर निर्भर रहने के बदले एक साथ आए और मिलजुलकर अपने बच्चों के लिए इलाके में ही प्लेग्राउंड बनाने की पहल की. 1968 के छात्र और युवा आंदोलन की भावना में उन्होंने खाली भूखंडों पर अपने हाथों से खेल के मैदान बनाए.
70 के दशक के विस्तृत निर्माण
दुनिया का पहला प्लेग्राउंड न्यूयॉर्क शहर में 1890 में बनाया गया था. दीवारों से घिरे इलाके में बच्चों के खेलने की सुरक्षित जगह. सेंट्रल पार्क की 1972 की इस तस्वीर में देखा जा सकता है कि आने वाले सालों में प्लेग्राउंड भव्य और खेलने कूदने की विभिन्न सुविधाओं से सराबोर हो गए. बच्चों के खेल के मैदानों का डिजाइन दशकों से चुनौतीपूर्ण होता गया है.
नई अवधारणा रोमांचक मैदान
डेनमार्क के कार्ल थियोडोर सोरेनसेन ने कई सिद्धांत दिए थे कि बच्चों को कैसे खेलना चाहिए. 1931 में उन्होंने रोमांचक खेल मैदानों की अवधारणा पेश की. सोरेनसेन ने इसके लिए बच्चों को विभिन्न सामग्री और औजार दिए और उन्हें उनसे कुछ भी बनाने को छोड़ दिया. उनकी अवधारणा की सफलता ये थी कि इससे बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ावा मिलता था.
रचनात्मक खेल
शुरू में ही खेल के मैदानों पर स्टील, कंक्रीट, लकड़ी, पत्थर और रस्सी जैसी सभी उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग होने लगा था. 1960 के दशक में उनमें नई सामग्रियों शामिल हो गईं और ऐसे उपकरण डिजाइन किए गए जिसे कई बच्चे एक ही समय में और अलग अलग तरीकों से इस्तेमाल कर सकते थे. इस मूर्तिकला की तरह, जिसे संग्रहालय में देखा जा सकता है.
बच्चों के लिए डिजाइन
प्लेग्राउंड्स की बढ़ती लोकप्रियता के साथ नए गेम और उपकरणों की मांग बढ़ती गई और उसके डिजाइन बेहतर होते गए. कभी उन्हें बच्चों जैसा रूप दिया गया तो कभी आड़े तिरछे किनारों वाला असामान्य आकार. हालांकि समय के साथ उनसे घायल होने का खतरा भी बढ़ा और माता पिता की सुरक्षा चिंताएं भी बढ़ी. खेलों के हिस्से एक दूसरे के साथ मिलने जुलने वाले होते गए.
हर कहीं पानी
1930 के दशक से प्लेग्राउंड बनाने वाले डिजाइनरों ने प्राकृतिक तत्वों को खेल के मैदानों में एकीकृत करने की शुरुआत कर दी थी ताकि बच्चों को शहरी माहौल में प्रकृति का आनंद मिल सके. साथ ही उन्हें भी देहाती बच्चों को मिलने वाला लाभ मिले. इस मकसद से समुद्र तटों की जगह रेत के डब्बों ने ली, समुद्र की जगह पैडलिंग पूल ने और हरियाली की जगह घास के मैदानों ने.
शहर, बच्चे और खेल
प्लेग्राउंड बनाने वाले सबसे बड़े आर्किटेक्ट्स में से एक एल्डो फान आइक इस विचार से प्रेरित थे कि बच्चे और खेल शहर के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हैं. छात्र जीवन में यूरोपीय अवंतगार्द में आकर्षण बाद में एम्स्टर्डम सिटी प्लानिंग ब्यूरो में उनके कामों में दिखाई देता था. उन्होंने सरल और लचीले तरीके से ऐसे मोहल्ले बनाए जो लोगों को एक दूसरे से जोड़ते थे.
प्रदर्शनी में भी खेल का मजा
बॉन में जर्मन संग्रहालय बुंडेसकुंस्टहाले में "प्लेग्राउंड प्रोजेक्ट" प्रदर्शनी की क्यूरेटर गाब्रिएला बुर्कहाल्टर कहती हैं, "हम संग्रहालयों को अधिक जीवंत बनाना चाहते हैं." उन्होंने एक ऐसी प्रदर्शनी बनाई है जो 20 वीं शताब्दी की कहानी को प्लेग्राउंड के विकास के नजरिए से बताती है. यहां माता पिता प्रदर्शनी देख सकते हैं और बच्चे उस समय झूला झूलेंगे या लुका छिपी खेलेंगे.