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समाज

जर्मनी में काम के दबाव से बढ़ती बीमारी

११ मार्च २०२०

जर्मनी में दस फीसदी से ज्यादा लोग हफ्ते में 48 घंटे से ज्यादा काम करते हैं, जबकि औपचारिक रूप से सिर्फ 40 घंटे काम करना होता है. स्वास्थ्य बीमा कंपनी केकेएच के अनुसार काम पर दबाव के कारण मानसिक रोग के मामले बढ़ रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/ImageBROKER/S. Arendt

जर्मनी में दस फीसदी से ज्यादा लोग हफ्ते में 48 घंटे से ज्यादा काम करते हैं, जबकि औपचारिक रूप से हफ्ते में सिर्फ 40 घंटे काम करना होता है. स्वास्थ्य बीमा कंपनी के अनुसार काम पर दबाव के कारण मानसिक रोग के मामले बढ़ रहे हैं.

श्रम मंत्रालय ने काम के घंटों के बारे में ये जानकारी जर्मन श्रम मंत्रालय ने संसद में पूछे गए एक सवाल के दवाब में दी. ये आंकड़े वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और जर्मन श्रम सुरक्षा संस्थान द्वारा कराए गए सर्वे के आधार पर दिए गए हैं. इन संस्थानों द्वारा कराए गए सर्वे में 15 फीसदी लोगों ने कहा कि उनका असली काम का घंटा हफ्ते में 35 से 39 घंटा है. करीब 46 फीसदी 40 से 47 घंटे काम करते हैं तो करीब 10 फीसदी लोग 48 से 59 घंटे काम करते हैं. और करीब 3 फीसदी तो 60 घंटे से भी ज्यादा काम करते हैं. ये सर्वे कर्मचारियों और स्वंतत्र कारोबारियों के बीच कराया गया था.

कर्मचारियों के काम के बारे में लिंक्डपर्सोनल पैनल द्वारा कराए गए ऐसे ही सर्वे के अनुसार ग्यारह फीसदी पुरुष और 4 फीसदी महिलाएं हफ्ते में 48 घंटे काम करते हैं. इस सर्वे के अनुसार 55 फीसदी पुरुष और 35 फीसदी महिलाएं हफ्ते में 40 से 48 घंटे काम करते हैं.

Infografik die EU-Länder mit den meisten Depressionen EN

काम की वजह से तनाव

कॉन्ट्रैक्ट में तय काम के घंटे से ज्यादा काम करने का मतलब अक्सर तनाव भी होता है. वामपंथी डी लिंके पार्टी की श्रम बाजार विशेषज्ञ जेसिका टाटी का कहना है कि तनाव और काम का दबाव बहुत से लोगों के रोजमर्रे का हिस्सा है. डी लिंके की सांसद का कहना है, "बहुत से कर्मचारी अपना काम तय समय के अंदर नहीं कर पाते, ऐसे में ओवरटाइम सामान्य बात हो जाती है." जर्मनी में 2019 में ओवरटाइम के करीब आधे घंटों के लिए कोई भत्ता नहीं मिला. जेसिका टाटी का कहना है कि हर साल इस तरह नियोक्ता कई अरब यूरो की बचत करते हैं. उनका आरोप है कि यह कर्मचारियों की सेहत की कीमत पर मेहनताने की चोरी है.

इस बात के सचमुच संकेत हैं कि काम पर दबाव की वजह से कर्मचारियों में बर्नआउट और घबराहट जैसे मामले बढ़ रहे हैं.जर्मन स्वास्थ्य बीमा कंपनी केकेएच के अनुसार 2018 में डॉक्टरों ने 321000 मरीजों में बर्नआउट, घबराहट और डिप्रेशन के लक्षण पाए. ये 2008 के मुकाबले इन मामलों में 40 फीसदी की वृद्धि है.इसी तरह मानसिक व्याधियों के कारण काम पर नहीं आने वाले दिनों की संख्या प्रति कर्मचारी साल में 35 से बढ़कर 40 हो गई है.

Arbeit Überstunden
तस्वीर: Imago/Westend61

सबसे बड़ी समस्या डिप्रेशन 

इसमें पुरुषों और महिलाओं के बीच भारी अंतर भी देखने को मिला है. रिपोर्ट के अनुसार मानसिक समस्याएं झेलने वालों में महिलाओं की संख्या पुरुषों की दोगुनी है. हर छठी कामकाजी महिला डिप्रेशन का शिकार है, जबकि 50 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में यह अनुपात 20 प्रतिशत है. केकेएच बीमा कंपनी के अनुसार मानसिक समस्याओं में सबसे बड़ा हिस्सा डिप्रेशन का है. इस कंपनी के बीमाधारकों में हर आठवां व्यक्ति इसका शिकार था. दस साल पहले के मुकाबले इसमें एक तिहाई की वृद्धि हुई है. डिप्रेशन का पता चलने पर मरीज औसत 68 दिनों तक बीमार रहता है.

स्वास्थ्य बीमा कंपनी के अनुसार मानसिक रोगों का कारण नौकरी की असुरक्षा, काम का भारी बोझ, मॉबिंग, अनुचित मेहनताना, भेदभाव और यौन उत्पीड़न है. ओवरटाइम, शिफ्ट ड्यूटी और फोन के जरिए लगातार काम से जुड़े रहना भी बीमारी की वजह है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ तनाव के समय और विश्राम के बीच संतुलन की सलाह देते हैं. विश्राम के बाद फिर से स्वस्थ न हो पाना और छुट्टियों में आराम न होना को चेतावनी समझा जाना चाहिए.

रिपोर्ट: महेश झा (एएफपी, केएनए)