जर्मनी में ईस्टर शांति मार्च की परंपरा
ईस्टर वाले सप्ताहांत में जर्मनी भर में 100 से भी ज्यादा शांति मार्च निकाले गए. शीतयुद्ध के समय से चले आ रहे ऐसे सालाना शांति मार्च निकालने की परंपरा आज भी प्रासंगिक हैं.
हथियारमुक्ति के समर्थन में
देश भर से हजारों लोग शांति का झंडा थामे सड़कों पर उतरे, जैसे कि रॉश्टॉक की इस तस्वीर में देखा जा सकता है. इस साल की थीम थी - "हथियार मत दो बल्कि हथियारमुक्त बनाओ - परमाणु हथियारों पर बैन लगे."
जरूरी चीजों में हो निवेश
जर्मन पीस मूवमेंट के पैसिफिस्ट नेटवर्क के फिलिप इंगेनलॉइफ कहते हैं, आने वाले सालों में हथियारों पर खर्च बढ़कर सालाना 70 अरब यूरो हो जाएगा. ऐसे में श्टुटगार्ट शहर के प्रदर्शकों की मांग थी कि रक्षा के मद में भारी खर्च करने के बजाए शिक्षा, हाउसिंग, जलवायु और डे केयर जैसी चीजों में पैसे लगाए जाएं.
परमाणु हथियार हों बैन
कई सालों से तमाम रैलियां कर यह मांगें उठाई गई हैं कि जर्मनी अपने यहां से अमेरिकी परमाणु हथियारों को हटाए. 2019 के यूगव सर्वेक्षण में पाया गया कि 59 फीसदी जर्मन इन्हें हटाने के पक्ष में हैं जबकि 18 फीसदी को लगता है कि उन्हें बने रहना चाहिए.
डिपोर्ट नहीं काम पर लगाए जाएं
बेहतर आर्थिक भविष्य की आस लिए जर्मनी पहुंचे प्रवासियों को उनके देश वापस डिपोर्ट ना करके काम पर लगाने की मांग भी पीस मार्च में उठी. यह मुद्दे हथियारों से काफी हट कर थे, लेकिन बदलते माहौल में सामाजिक न्याय और पर्यावरण को बचाने के मुद्दे भी इसमें जुड़ते गए हैं.
100 से भी ज्यादा शहरों में
इस बार के ईस्टर शांति मार्च जर्मनी के इतिहास में सबसे बड़े रहे. तीन दिनों तक जर्मनी के राइन-रूर मार्च में शुक्रवार से लेकर सोमवार तक बर्लिन, म्युनिख, केमनित्स, लाइप्जिष और फ्रैंकफर्ट समेत देश के 100 से भी अधिक शहरों में मार्च निकाले गए.
60 सालों से भी लंबी परंपरा
जर्मनी के ईस्टर मार्च की जड़ें सन 1958 के ब्रिटिश एंटी-न्यूक्लियर मार्च से जुड़ी हैं. 1980 के दशक तक इस सालाना मार्च में हजारों लाखों लोग हिस्सा लेते रहे. उसके बाद से हर शहर में कुछ सौ लोग ही ऐसे शांति मार्च का हिस्सा बनते हैं.