जर्मनी में 2020 तक आधे शरणार्थियों के पास होगा काम
२१ अप्रैल २०१७जर्मन दैनिक "जुडडॉयचे साइटुंग" ने लिखा है कि जर्मन सरकार शरणार्थियों के लिए चलायी जा रही "वन यूरो जॉब" की योजना में कटौती करने जा रही है. अखबार के अनुसार, जर्मन श्रम मंत्रालय ने इसका कारण यह बताया है कि ऐसी एक लाख नौकरियां खत्म होने वाली हैं. 2018 में इन प्रोजेक्ट्स की फंडिंग अभी के 30 करोड़ यूरो से गिर कर केवल 6 करोड़ यूरो रह जाएगी.
बाकी के 24 करोड़ यूरो "प्रबंधन खर्च के बजट को बढ़ाने में" लगाये जाएंगे, जैसे कि जॉब सेंटर, रोजगार कार्यालय और वहां काम करने वालों पर होने वाला खर्च.
तेज हुई शरण की प्रक्रिया
अगस्त 2016 में शुरु हुए प्रोग्राम को 2019 तक 30 करोड़ यूरो की सालाना फंडिंग मिलनी थी. इसका उद्देश्य शरण के इच्छुक ऐसे लोगों को काम देना था, जो लंबे समय से अपने शरण के आवेदन पर फैसले का इंतजार कर रहे हैं और इस दौरान कोई काम नहीं कर सकते.
इस साल मार्च के अंत तक केवल 25,000 रिक्तियों के लिए आवेदन आये. तेज हो चुकी शरण की प्रक्रिया के कारण, ऐसे शरणार्थी जिन्हें शरण मिलने की अच्छी संभावना थी, उन्होंने तेजी से ज्यादा सुरक्षित नौकरियों की तरफ रुख किया.
जर्मनी की ग्रीन पार्टी में श्रम बाजार नीतियों की प्रवक्ता ब्रिगिटे पोथमेर इसे सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी की नेता और जर्मन श्रम मंत्री आंद्रेया नालेस की गलती बताती हैं. पोथमेर कहती हैं, "इस धन का इस्तेमाल बरसों से चली आ रही जॉब सेंटर की कमियों को पाटने के लिए हो रहा है, न कि इसे शरणार्थियों के लिए खर्च किया जा रहा है." श्रम मंत्रालय कहता है कि अतिरिक्त फंड से "शरणार्थियों की और ज्यादा वैयक्तिक स्तर पर, ज्यादा सटीक मदद" की जाएगी.
50 फीसदी शरणार्थी 5 साल में काम में होंगे
इधर बजट में कटौती की खबर आयी तो दूसरी ओर इंस्टीट्यूट फॉर लेबर मार्केट एंड वोकेशनल रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में यह आशा जतायी कि जर्मनी के श्रम बाजार में शरणार्थियों का अच्छा समन्वय हो रहा है. रिसर्चरों के अनुसार जर्मनी पहुंचने के पांच साल के भीतर, करीब 50 फीसदी शरणार्थी काम में लगे होंगे. 2016 की पहली छमाही में ही, 2015 में जर्मनी आये करीब 10 फीसदी रिफ्यूजी, 2014 में आये करीब 22 फीसदी, और 2013 में शरण पाये 31 फीसदी शरणार्थियों को काम मिल चुका था.
हालांकि इनमें से ज्यादातर लोगों के पास या तो छोटे मोटे काम थे या फिर वे बिना कमाई वाली इंटर्नशिप में लगे थे. अगर ऐसे कामों को हटा कर देखें, तो 2015 में आये केवल 5 फीसदी रिफ्यूजी ही किसी ठीक ठाक रोजगार में लगे थे. और 2013 में आये करीब 21 फीसदी. इस सर्वे में 4,800 से भी अधिक शरणार्थियों को शामिल किया गया. सर्वे में यह भी पता चला कि अफगानिस्तान, एरिट्रिया, इराक, ईरान, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सोमालिया और सीरिया के शरणार्थियों की संख्या 2015 से 2016 के बीच करीब 80,000 बढ़ गयी.
केट ब्रैडी/आरपी