जर्मनी जैसा एजुकेशन सिस्टम क्यों चाहते हैं बाकी देश
६ अप्रैल २०१८शारलोटे फाल्के एक पावर प्लांट जेनरेटर का तकनीकी खाका बना रही हैं. 23 साल की शारलोटे डिजायनर हैं और इस वक्त दिग्गज जर्मन कंपनी सीमेंस में ट्रेनिंग कर रही हैं. एक साल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने के बाद शारलोटे कंपनी की वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोग्राम से जुड़ गईं. वह कहती हैं, "मैंने यूनिवर्सिटी छोड़ दी क्योंकि वहां बहुत ज्यादा थ्योरी पढ़ाई जा रही थी. मैं ज्यादा प्रैक्टिकल करना चाहती थी."
शारलोटे ऐसा करने वाली अकेली स्टूडेंट नहीं हैं. करीब 50 फीसदी जर्मन युवा हर साल वोकेशनल ट्रेनिंग ज्वाइन करते हैं. रोजगार के लिहाज से एक मुफीद रास्ता. छात्र 326 प्रोफेशनल कोर्स चुन सकते हैं. इनमें डायमंड कटिंग, एयरक्राफ्ट मैकेनिक्स और चिमनियों की कारीगरी जैसे कोर्स हैं. यह ट्रेनिंग उद्यमों में दी जाती है और साथ ही थ्योरी कोर्स भी होता है. जर्मनी के ताकतवर निर्यात के पीछे वोकेशनल ट्रेनिंग की भूमिका सबसे अहम बताई जाती है. दूसरे देशों में भी लोग मानने लगे हैं कि युवाओं के लिए रोजगार के बेहतर मौके इसी तरीके से बनाए जा सकते हैं.
जर्मन ऑफिस फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन इन वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (जीओवीईटी) के प्रमुख राल्फ हैर्मन कहते हैं, "इसके तहत कॉलेज में मिलने वाली शिक्षा को काम काज संबंधी प्रैक्टिस से जोड़ा गया है." यह कुछ कुछ एपरेंटिस जैसा है. शारलोटे हफ्ते में कुछ दिन ट्रेड स्कूल जाती है और बुनियादी चीजें सीखती हैं, मसलन गणित, भाषा और अपने काम से जुड़ी थ्योरी. बाकी समय में वह व्यावहारिक काम सीखती हैं. इस संतुलन के जरिए वह अपनी तकनीकी ड्राइंग्स को औद्योगिक स्टैंडर्ड के स्तर पर ला सकती हैं और अपने क्लाइंट्स से अंग्रेजी में संवाद कर सकती हैं.
हैर्मन कहते हैं, "स्कूलों में व्यापक शिक्षा बहुत ही जरूरी है ताकि ऐसे गुण विकसित हों जो जिम्मेदार युवा तैयार करे." डिजिटल इकोनोमी में तेजी से बदलाव आ रहे हैं और इन बदलावों के प्रति लचक होनी चाहिए. राल्फ हैर्मन के मुताबिक, अच्छी कुशल बुनियादी ट्रेनिंग के चलते युवा किसी एक नौकरी तक ही सीमित नहीं रहते. वोकेशनल ट्रेनिंग कई देशों में होती है. लेकिन किसी भी देश में ये जर्मनी जैसी लोकप्रिय नहीं है. जर्मनी में यूनिवर्सिटी से ज्यादा छात्र वोकेशनल और डुअल डिग्री प्रोग्राम चुनते हैं. यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए क्वालिफाई करने के बावजूद बहुत से स्टूडेंट्स इनका चुनाव कर रहे हैं.
देश भर में एपरेटिंसशिप को लेकर भी तयशुदा मानक हैं. हर प्रोडक्ट डिजायनर को बिल्कुल एक सी किताबें पढ़नी होंगी और एक जैसे डिजायन टूल्स से वाकिफ होना होगा. इसके चलते भले ही किसी लैब में काम किया जाए या किसी यूनिवर्सिटी या कंपनी में, बुनियादी शिक्षा और टूल्स एक जैसे ही मिलते हैं. तीन साल तक पढ़ाई और उसी दौरान कम पैसे वाली नौकरी करने के बाद ज्यादातर छात्र ट्रेनिंग पाने वाली कंपनी ज्वाइन करते हैं.
आम तौर पर यह मिड साइज कंपनियां होती हैं. इन कंपनियों को जर्मन अर्थव्यवस्था की जान कहा जाता है. जर्मनी में युवा बेरोजगारी की दर यूरोपीय संघ में सबसे कम है. 2017 में जर्मनी ने 1,279 अरब यूरो का निर्यात किया. वहीं आयात 1,034 अरब यूरो रहा.
भारत समेत कई देश जर्मन मॉडल से सीख लेकर अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाना चाहते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी और उनकी सलाहकार इवांका ट्रंप अमेरिका में डुअल वोकेशनल ट्रेनिंग स्कीम शुरू कराना चाहती हैं. इवांका ट्रंप जर्मनी के इस सिस्टम को अग्रणी मानती हैं. हैर्मन कहते हैं, "हमारे अंतरराष्ट्रीय साझेदारों का यह ख्याल बहुत हद तक सही भी है. जर्मनी की आर्थिक स्थिरता में वोकेशनल ट्रेनिंग जैसे आधारभूत तत्व का योगदान है, इसके तहत हम ऐसे लोग बनाते हैं जो रोजगार बाजार के लिए एकदम तैयार होते हैं."
जर्मनी में वीईटी की सफलता और एपरेटिंसशिप का इतिहास मध्यकाल तक जाता है. थ्योरी और प्रैक्टिकल का संतुलन जर्मन सिस्टम का अभिन्न हिस्सा बन चुका है. लेकिन जिन देशों में ऐसी कार्य या शिक्षा संस्कृति नहीं हैं, वहां इस सिस्टम को लागू करना मुश्किल भी है. भारत, मेक्सिको और रूस जैसे देश वीईटी सिस्टम अपनाने में जर्मनी की मदद ले रहे हैं. लेकिन हैर्मन कहते हैं, "जर्मनी में बहुत ही विशेष परिस्थितियों में एक सिस्टम का विकास हुआ, इसे बिल्कुल अलग हालात वाले देशों में बड़ी आसानी से निर्यात नहीं किया जा सकता है."
अजित निरंजन/ओएसजे