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आतंकवाद

जर्मनी और अमेरिका का चीन के खिलाफ कूटनीतिक खेल

चारु कार्तिकेय
२ जुलाई २०२०

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन के एक वक्तव्य के जारी होने के रास्ते में अवरोध पैदा करने के जर्मनी और अमेरिका के प्रयास को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. यह वक्तव्य कराची में हुए आतंकवादी हमले की निंदा करने का था.

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USA Übersicht UN-Sicherheitsrat | König Philippe und Königin Mathilde
तस्वीर: AFP/J. Eisele

प्रस्ताव पारित तो हुआ लेकिन पहले जर्मनी और फिर अमेरिका के हस्तक्षेप की वजह से उसके पारित होने में काफी देरी हुई. मीडिया में आई खबरों के अनुसार प्रस्ताव में पाकिस्तान की सरकार और वहां के लोगों के प्रति संवेदना और एकजुटता व्यक्त करने के साथ साथ यह भी लिखा हुआ था कि परिषद के सदस्य आतंकवाद के इस तरह के कृत्यों के लिए जिम्मेदार सभी लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जरूरत को रेखांकित करते हैं और सभी देशों से अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार पाकिस्तान की सरकार के साथ सहयोग करने की अपील करते हैं.

माना जा रहा है कि चीन चाह रहा था कि वक्तव्य उस समय जारी हो जब पाकिस्तान की सरकार हमले के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा रही हो. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कह भी चुके हैं कि ये हमला भारत ने ही करवाया था और भारत की साजिश थी कि 26/11 मुंबई हमलों जैसा एक हमला कराए जिसमें आतंकवादी कई लोगों को बंधक भी बना सकें.

कुछ जानकार यह भी कह रहे हैं कि वक्तव्य के पीछे चीन की मंशा यह भी हो सकती है कि आतंकी संगठनों को पनाह देने के आरोपों के बीच पाकिस्तान खुद को आतंकवाद के शिकार के रूप में प्रस्तुत कर पाए.

Pakistan Karatschi | Angriff auf die Börse
29 जून की इस तस्वीर में कराची में सादी वर्दी में एक पुलिस अफसर पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज पर हुए आतंकवादी हमले के स्थल का निरीक्षण कर रहा है.तस्वीर: Reuters/A. Soomro

प्रस्तावित वक्तव्य का पहला मसौदा मंगलवार को चीन ने सदस्य देशों के देखने के लिए प्रस्तुत किया. इस तरह के प्रस्तावों की एक समयसीमा होती है और उसके खत्म होने तक अगर किसी सदस्य देश ने कोई आपत्ति नहीं की तो वो पारित माना जाता है.

इस प्रस्तावित मसौदे की समयसीमा के अंत होने से ठीक पहले जर्मनी ने अपनी सरकार से सलाह लेने का कारण देते हुए इसे लंबित कर दिया और समयसीमा अगले दिन तक बढ़ा दी गई.

अगले दिन जब नई समयसीमा के अंत का समय नजदीक आया तो इस बार अमेरिका ने प्रस्तावित मसौदे को लंबित कर दिया. अंत में, वक्तव्य बुधवार को ही जारी हो पाया. वक्तव्य में शब्द तो वही रहे जो चीन चाहता था, लेकिन इसके जारी होने का समय चीन की पसंद के अनुसार नहीं हो पाया.

जानकार इसे कूटनीतिक रणनीति के जरिए जर्मनी और अमेरिका का चीन को संदेश देने का प्रयास मान रहे हैं.

जानकारों के अनुसार, संभव है कि अमेरिका इसके जरिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को उनके ओसामा बिन लादेन को 'शहीद' कहने पर अपनी नाराजगी व्यक्त करना चाह रहा हो. कुछ लोगों को यह भी मानना है कि अमेरिका और जर्मनी, दोनों ने यह कदम भारत और चीन की सीमा पर चीन की सेना द्वारा उठाए गए कदमों के खिलाफ भारत के साथ एकजुटता दिखाने के लिए उठाया.

हालांकि ऐसा अभी तक इनमें से किसी भी देश के द्वारा किसी भी आधिकारिक बयान में नहीं कहा गया है.

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