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समाज

जर्मनी: एक नौकरी से नहीं हो रहा है गुजारा

२२ जनवरी २०२०

जर्मनी में लगभग तीस लाख लोग एक से ज्यादा नौकरियां कर रहे हैं. बहुत से लोगों को आर्थिक तंगी की वजह से कई जगह काम करना पड़ रहा है. विपक्ष ने सरकार से न्यूनतम वेतन बढ़ाने को कहा है.

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Kellnerin
तस्वीर: Imago Images/Westend61

संघीय रोजगार एजेंसी का कहना है कि एक साल के भीतर दो नौकरी करने वाले जर्मन लोगों की संख्या में लगभग चार प्रतिशत का इजाफा हुआ है. जर्मन अखबार ओस्नाब्रुकर साइटुंग के मुताबिक वामपंथी पार्टी की तरफ से पूछे गए सवाल के जवाब में यह जानकारी सामने आई है.

बीते साल के आखिर में 3.5 लाख लोग एक से ज्यादा नौकरियां कर रहे थे. इस आंकड़े में एक साल के भीतर 123,600 की वृद्धि हुई है. लगभग तीस लाख लोगों ने अपनी फुलटाइम नौकरी के साथ साथ एक "मिनी जॉब" की. मिनी जॉब का मतलब है ऐसा काम जिससे महीने में 450 यूरो या उससे कम की आमदनी हो.

इसके अलावा 345,400 लोग ऐसी दो नौकरियां कर रहे थे जिनमें वेतन का कुछ हिस्सा सामाजिक सुरक्षा के लिए देना पड़ता है. वहीं लगभग 260,700 लोगों ने दो या फिर ज्यादा मिनी जॉब कीं.

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ट्रेड यूनियन से जुड़ी एक संस्था हांस बॉएकलर फाउंडेशन के अध्ययन के मुताबिक, एक से ज्यादा नौकरियां करने वाले लोगों में 53 प्रतिशत ऐसे हैं जो आर्थिक मुश्किलों या फिर वित्तीय तंगियों की वजह से ऐसा कर रहे हैं.

वामपंथी पार्टी की सांसद जबीने सिम्मरमान ने सरकार से मांग की है कि प्रति घंटा न्यूनतम मेहनताने को बढ़ा कर 12 यूरो कर दिया जाए. अभी प्रति घंटा मेहनताना 9.35 यूरो है. वह कहती हैं, "ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जिनका एक नौकरी से गुजारा नहीं हो रहा है."

उन्होंने कम मेहताने देने वाले व्यवस्थित रोजगारों को बंद करने की अपील भी है. इनमें किसी अस्थाई एजेंसी के लिए काम करना या फिर अतार्किक रूप से निश्चित अवधि वाले जॉब कॉन्ट्रैक्ट भी शामिल हैं.

उद्योग जगत अक्सर कामगारों की कमी की शिकायत करती रहती है. ट्रेड यूनियनों का आरोप रहता है कि उद्योग वेतन को कम रखने के लिए जरूरत से ज्यादा कामगारों की उपलब्धता चाहता है.

इस साल मार्च में जर्मनी में एक नया आप्रवासन कानून लागू होने वाला है जो गैर यूरोपीय नागरिकों के लिए जर्मनी में वीजा पाना और काम पाना आसान बना देगा. अब तक ये सुविधा सिर्फ यूनिवर्सिटी डिग्रीधारियों को ही थी, लेकिन अब इसमें पेशेवर योग्यता और जर्मन भाषा जानने वाले आप्रवासियों को भी शामिल किया जा रहा है.

रिपोर्ट: क्रिस्टी प्लाडसन/एके

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