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जर्मन बाजार खोलता ब्लू कार्ड

२ अगस्त २०१२

यूरोपीय संघ की महत्वाकांक्षी परियोजना ब्लू कार्ड को जर्मनी ने लागू कर दिया है. इसकी मदद से भारत सहित विकासशील देशों से ज्यादा संख्या में दक्ष कामगार जर्मनी में काम कर सकेंगे, जो जर्मनी को भी आर्थिक फायदा पहुंचा सकता है.

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तस्वीर: picture-alliance/chromorange

लेकिन भारत में तस्वीर थोड़ी अलग है. दुनिया भर के देशों ने हाल के दिनों में भारतीय कामगारों के लिए दरवाजे खोले हैं और अगर उनसे पूछा जाए कि वे कहां जाना चाहते हैं, तो उन देशों के नाम सबसे पहले आते हैं, जहां अंग्रेजी बोली जाती है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक छात्र का कहना है, "मैं अमेरिका जाना चाहता हूं, ऑस्ट्रेलिया जाना चाहता हूं. और हां लंदन जाना चाहता हूं. लंदन, लंदन, लंदन..."

जर्मनी के बारे में भारत की सोच जरा अलग है. सर्वे से पता लगता है कि छात्रों में जर्मनी को लेकर बहुत ज्यादा उत्साह नहीं है. वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी के ही दूसरे छात्र का कहना है, "जर्मनी तो सिर्फ लड़कियों के लिए है. हाहाहा."

Deutschland Fachkräfte Fachkräftemangel Deutsch-indisches Joint-Venture in Dresden
तस्वीर: picture-alliance/dpa

अलबत्ता जर्मन सामान को लेकर भारत में काफी उत्साह रहता है. लोगों को पता है कि मेड इन जर्मनी प्रोडक्ट का क्या मतलब होता है. लेकिन जर्मन ब्रांडों ने जो जगह भारत में बना ली है, जर्मनी एक देश की तरह खुद को भारत में ब्रांड नहीं बना पाया है. जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन भारत में इससे किसी को ज्यादा मतलब नहीं. इस बारे में अगर छात्रों से सवाल पूछे जाएं, तो जवाब यूं मिलता है, "मुझे जर्मनी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है."

भाषा एक बड़ी समस्या है. जर्मनी के अंदर जर्मन भाषा का खास सम्मान है, जिसे सीखना कठिन होता है. बिना जर्मन भाषा सीखे जर्मनी में काम करना बहुत मुश्किल है. भारतीय छात्रों के लिए उन देशों में जाना आसान होता है, जहां अंग्रेजी बोली जाती है. इसके अलावा सांस्कृतिक वजहें भी हैं. कोई 12 साल पहले नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया प्रांत के एक नेता युर्गन रुटगर्स ने नारा दिया था, "किंडर श्टाट इंडर" यानी भारतीयों की जगह अपने बच्चों पर ध्यान दो, ताकि जर्मनी की नौकरियों भारतीयों की झोली में न जाएं. इससे जर्मनी के बारे में लोगों की सोच प्रभावित हुई.

Deutschland Fachkräfte Fachkräftemangel Industrie beim Bosch
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इन सबके अलावा भारत के युवा वर्ग को अपनी अर्थव्यवस्था पर भी भरोसा बढ़ता जा रहा है. एक छात्र का कहना है, "मैं तो भारत में ही रहना चाहता हूं. यहां कई मौके हैं. आजादी के बाद हमारी तस्वीर बहुत बदली है. अगर हम विदेशों में चले जाते हैं, तो अपने देश की सेवा नहीं कर पाते."

हाल के दिनों में भले ही भारत की अर्थव्यवस्था थोड़ी डगमगाई है लेकिन वहां लुभावने ऑफर अभी भी मिल रहे हैं. प्रिया हैदराबाद की एक आईटी कंपनी में काम करती हैं. उनका कहना है, "मेरे लिए तो काम करने की बेहतर जगह भारत ही है. यहां मेरे पास कई मौके हैं और मेरा परिवार भी यहीं है. भारत ही मेरी पहली पसंद होगी."

यह आम राय हो सकती है लेकिन जर्मनी को चाहने वाले भारतीय भी मिल जाएंगे. सॉफ्टवेयर इंजीनियर का काम करने वाले एक युवा का कहना है, "तकनीक के नजरिए से जर्मन लोग फ्रांस या ब्रिटेन से बहुत आगे हैं. मैं ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में रह चुका हूं. अब मैं जर्मन भाषा सीख रहा हूं. वे बहुत अच्छे हैं. उनके पास शानदार मशीनें और तकनीक हैं."

तो हो सकता है कि कुछ ब्लू कार्ड धारकों के नाम जल्द ही लिस्ट में चढ़ जाएं. वैसे भारत के कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जर्मनी का मौसम ऐसा होता है, जहां रह पाना मुश्किल है.

रिपोर्टः काई क्यूस्टनर, नई दिल्ली/ए जमाल

संपादनः प्रिया एसेलबॉर्न

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