जयपुर: साहित्य के मेले में दर्द भी छलका, सुर भी गूंजे
भले ही साहित्य का बाजार अभी भी उतना विकसित नहीं हुआ हो, लेकिन नामी गिरामी लेखकों के अलावा बॉलीवुड की उपस्थिति और विवादास्पद मुद्दों को उठाने के कारण वह भारत की साहित्यिक शान बन गया है.
विचारों का संगम
13वां जयपुर साहित्य सम्मलेन इस बार कमोबेश नागरिकता के मुद्दे पर केंद्रित रहा, जिसमें बीस देशों के लगभग तीन सौ लेखकों ने अपने विचार व्यक्त किए. एशिया का सबसे बड़ा कहा जाने वाला यह साहित्य कुंभ अपने संवादों और विवादों को लेकर काफी चर्चा में रहता है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
सृजन के इस मेले में इस बार शब्दों का संसार भी था, साहित्य का अम्बार भी था और दर्शक भी बेशुमार, लेकिन चर्चाओं का सिर्फ एक ही उद्देश्य कि कैसे विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे.
घाटी पर चर्चा
कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने की गूंज सम्मलेन में छाई रही. घाटी में इंटरनेट की पाबंदी पर भी चर्चा हुई तो वहीं कश्मीरियों के हक की बात भी जबरदस्त तरीके से उठाई गई. कश्मीर पर हुए सत्र में घाटी की कला और संस्कृति के साथ-साथ राजनीति पर भी चर्चा हुई.
घाटी के सुर
कश्मीर की वादियों का दिलफरेब संगीत भी जयपुर साहित्य सम्मलेन में गूंजा, जब कश्मीरी गायिका आभा हंजूरा ने कश्मीरी लोक संगीत को पॉप म्यूजिक के तड़के के साथ पेश किया. आभा का कश्मीरी गीत " हुकुस- बुकस" इन दिनों यूट्यूब पर छाया है.
बंटवारे का दर्द
इस बार भारत- पाकिस्तान के विभाजन को लेकर भी काफी गर्मजोशी से चर्चा हुई. यह दुनिया का सबसे बड़ा विभाजन था जिसमें एक तरफ बेरहमी से लोगों को मारा-काटा गया तो दूसरी तरफ बहुत लोगों ने एक दूसरे की मदद भी की.
तीस साल पुरानी टीस
1990 में पलायन को मजबूर हुए चार लाख कश्मीरी पंडितों के दिलों में दबे दर्द को प्रसिद्ध फिल्मकार विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी फिल्म शिकार में उठाया है. विधु खुद कश्मीरी हैं जिनकी माँ उनसे मिलने कश्मीर से मुंबई आई थीं लेकिन फिर नहीं लौट पाईं.
लीजा की जिजीविषा
प्रसिद्ध भारतीय मॉडल और कनाडा मूल की नागरिक लीजा रे ने भी दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी क्योंकि कैंसर से लड़ने के बाद उन्होंने अपने उपन्यास " क्लोज टू बोन "के जरिए वापसी की है. उन्होंने ठान लिया था कि वे मरेंगी तो सही पर कैंसर से नहीं.
सुरीली कहानियां
जानी-मानी गायिका शुभा मुद्गल की आवाज को चाहने वाले सारी दुनिया में हैं लेकिन अब वे भी एक लेखिका के नए अवतार के साथ अपने प्रशंसकों के सामने आई हैं. उनकी पुस्तक 'लुकिंग फॉर मिस सरगम' पाठकों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है. उसकी सारी कहानियां न सिर्फ 'संगीत' के इर्द-गिर्द घूमती हैं बल्कि सुर-ताल के बीच ही बुनी गई हैं.
दादा का असर
मुंशी प्रेमचंद की पोती और लेखिका सारा रे भी सम्मेलन में शामिल हुईं. वे मानती हैं कि उनके जन्म से बीस साल पहले ही प्रेमचंद के गुजर जाने की वजह से उनका दुलार तो नहीं मिला लेकिन उनके साहित्यिक संस्कार और सादा जीवन शैली का प्रभाव उन पर हमेशा रहा.