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समाज

जमीन से निकल रहे हैं स्टालिन की क्रूरता के सबूत

१ नवम्बर २०१९

साइबेरियाई इलाके में एक व्यक्ति को अपने बगीचे में सामूहिक कब्र मिली है. ये कब्र कम्युनिस्ट तानाशाह स्टालिन के दौर में मारे गए लोगों की हैं. रूस के लिए अपने क्रूर अतीत का सामना करना अब काफी मुश्किल है.

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Russland Gedenktag der Opfer des Stalin-Regimes
तस्वीर: DW

कुछ महीने पुरानी बात है. विताली क्वाशा ने अपने घर का विस्तार करने की सोची. जब उन्होंने नींव के लिए खुदाई शुरू की तो उन्हें जमीन के अंदर जो मिला, उसे देखकर वह हक्के बक्के रह गए. उन्हें खोपड़ियां, बाजुओं और टांगों की हड्डियां और पसलियों के अस्थी पंजर मिले. उन्होंने और खुदाई की तो और अवशेष मिलते गए. अब उनके गार्डन में 10 बोरे रखे हैं जिनमें 60 से ज्यादा लोगों के अवशेष हैं. वह कहते हैं, "जब मैंने खोदा तो एक खोपड़ी मिली, उसके बाद दूसरी और फिर तो यह सिलसिला चलता ही रहा."

तुरत फुरत बुलाए गए सरकारी जांच समिति के विशेषज्ञों का कहना है कि क्वाशा के गार्डन के नीचे संभवतः 1930 के दशक की कोई सामूहिक कब्र है. 30 की उम्र को पार कर चुके क्वाशा अपने परिवार के साथ ब्लागोवेशचेंस्क में रहते हैं. यह जगह चीन की सीमा से लगने वाले रूस के सुदूर पूर्व इलाके में पड़ती है. रूस के बाकी इलाकों की तरह यहां भी जोसिफ स्टालिन के राज में सरकार विरोधियों को बड़े पैमाने पर गोलियों से उड़ाया गया था.

Russland Gedenktag der Opfer des Stalin-Regimes
क्वाशा को समझ नहीं आ रहा है कि इन अवशेषों का क्या करेंतस्वीर: DW

उधर, आठ हजार किलोमीटर दूर रूस की राजधानी मॉस्को में स्टालिन के आतंक का शिकार बने लोगों को याद किया जा रहा है. एक कार्यक्रम में रिमझिम बारिश में माइक पर उन लोगों के नाम पुकारे जा रहे हैं, जो आज से लगभग 80 साल पहले कत्ल कर दिए गए थे. यहां जमा होने वाले लोगों के पास अपने पिता, चाचा, मामा, दादा या फिर नाना से जुड़ी बहुत सारी कहानियां हैं. कहानी उन लोगों की है जो स्टालिन के दौर में 1936 से लेकर 1938 के बीच प्रताड़ित किए गए.

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एक मानवाधिकार संस्था 'मेमोरियल' के लिए काम करने वाली नतालिया पेत्रोवा कहती हैं, "यह हमारा भयानक इतिहास है जिसे भुलाया नहीं जाना चाहिए." मारे गए लोगों की याद में होने वाले इस कार्यक्रम का नाम है "नामों की वापसी" और इसकी शुरुआत 12 साल पहले मेमोरियल ने की थी. तब से हर साल अक्टूबर में यह कार्यक्रम होता है.

पेत्रोवा कहती हैं, "मुझे इस बात की खुशी है कि बहुत सारे लोग सोवियत व्यवस्था के उस आतंकी दौर को याद करने के लिए जुटते हैं. इनमें बहुत सारे युवा भी शामिल है." खुद पेत्रोवा के दादा को उस दौर में कत्ल किया गया था. वह भी उनका नाम माइक्रोफोन में पुकारती हैं. 

Russland Gedenktag der Opfer des Stalin-Regimes
पेत्रोवा का कहना है कि दबाव के बावजूद वह अपना काम जारी रखेंगीतस्वीर: DW

रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आलोचक फिर से तानाशाही दौर लौटने की आशंका जताते हैं क्योंकि सरकारी संस्थाएं लगातार ताकतवर हो रही हैं. सोवियत इतिहास में जो कुछ भयानक हुआ, उसे स्वीकार करने की इच्छा रूस में नहीं दिखती, बल्कि उसे लेकर एक असहजता है.

जो लोग उस दौर में हुए अपराधों को याद करते हैं, उन्हें परेशान किया जाता है. पेत्रोवा कहती हैं कि मेमोरियाल संस्था में उन्हें और उनके दूसरे साथियों को भी इस तरह के अनुभव हुए हैं. वह कहती हैं, "तीन साल पहले हमारे एनजीओ को तथाकथित विदेश एजेंट करार दे दिया गया. लेकिन हम लोग अब भी काम कर रहे हैं, क्योंकि बहुत सारे लोगों को हमारे काम की जरूरत है और यही सबसे महत्वपूर्ण बात है."

उधर ब्लागोवेशचेंस्क में विताली क्वाशा कहते हैं कि उन्होंने अधिकारियों को सूचित कर दिया है कि उनके बगीचे में क्या मिला है, लेकिन देश के इतिहास से जुड़े इन प्रमाणों के बारे में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. वह कहते हैं, "मैं एक साल से अधिकारियों से मदद मांग रहा हूं. उनका कहना है कि इसकी देखभाल करने के लिए ना उनके पास पैसे हैं और ना ही लोग. वह सिर्फ वादा करते रहते हैं कि उनके लोग आएंगे और इन अवशेषों को ले जाएंगे. लेकिन सारे अवशेष मुझे खुद ही खोद कर निकालने होंगे."

रिपोर्ट: यूरी रेशेटो

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