1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

जब टॉयलेट पेपर नहीं था तो कैसे साफ करते थे यूरोप के लोग

श्टेफान डेगे
२३ मार्च २०२०

कोरोना संकट के कारण दुनिया भर में लोग अपने घरों में सामान जमा कर रहे हैं. ऐसे में, सबसे ज्यादा किल्लत टॉयलेट पेपर की हो रही है. लेकिन टॉयलेट पेपर की खोज कब हुई. उससे पहले लोग क्या इस्तेमाल करते थे?

https://p.dw.com/p/3ZuLX
Pyramide aus Toilettenpapier vor weißem Hintergrund
तस्वीर: picture-alliance/dpa/chromorange

आजकल सोशल मीडिया पर एक वीडियो बहुत वायरल हो रहा है जिसमें एक आदमी कॉफी ऑर्डर करता है. जेब से अपना पर्स निकालने के बजाय वह टॉयलेट पेपर का रोल निकालता है और उसके तीन टुकडे़ फाड़कर काउंटर पर रख देता है. फिर दरियादिली दिखाते हुए वह टॉयलेट पेपर का एक और टुकड़ा देता है, टिप के तौर पर.

इसके बाद तो सोशल मीडिया पर टॉयलेट पेपर को लेकर चुटकुलों की बाढ़ आ गई. जर्मनी समेत बहुत से पश्चिमी देशों में इन दिनों टॉयलेट पेपर की बहुत मांग है. सुपरमार्केट में आते ही टॉयलेट पेपर हाथों हाथ बिक रहे हैं. सोशल मीडिया पर कई वीडियो में टॉयलेट पेपर के लिए लोगों को लड़ते देखा जा सकता है.

जर्मनी की बॉन-राइन-सीग यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंसेज में बिजनेस साइकोलॉजी पढ़ाने वाली ब्रिटा क्रान कहती हैं कि टॉयलेट पेपर को लेकर हो रही मारामारी "हमारे परिस्थिति संबंधी व्यवहार" को दिखाती है. उनके मुताबिक, "इस समय अनियंत्रण, अनिश्चितता और बदलाव, सब कुछ चरम सीमा पर है."

वह कहती हैं, "कोई नहीं जानता कि क्या होने जा रहा है," फिर भी लोग चाहते हैं कि चीजें उनके नियंत्रण में रहें. जब मास्क और डिसइंफेक्टेंट फटाफट बिक जाते हैं तो "जो भी उनके हाथ लग रहा है, वे उसे खरीद रहे हैं."

टॉयलेट पेपर का इतिहास

पश्चिमी देशों में आज टॉयलेट पेपर सबसे जरूरी चीजों में से एक है. हालांकि भारत समेत दुनिया के कई देशों में अब भी लोग शौच के बाद पानी ही इस्तेमाल करते हैं. पुरातत्वविदों का कहना है कि ऊपरी ऑस्ट्रिया के जाल्सकामरगुट इलाके में लोग कांस्य युग में टॉयलेट पेपर की जगह बटरबुर नाम के पेड़ की पत्तियों को इस्तेमाल करते थे.

टॉयलेट पेपर का सबसे पुराना उल्लेख छठी सदी के चीनी ऐतिहासिक दस्तावेजों में मिलता है. चीन मामलों के ब्रिटिश विशेषज्ञ जोसेफ नीडहाम (1900-1995) ने इस सिलसिले में चीनी विद्वान यान चितुई का हवाला दिया है जिन्होंने सन 589 में लिखा था, "जिस कागज पर फाइव क्लासिक्स (कंफ्यूशियसवाद की प्राचीन चीनी किताबें) के उद्धरण या टिप्पणियां लिखी हों, उन्हें मैं टॉयलेट पेपर की तरह इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं कर सकता."

सन 851 में एक यात्री ने लिखा, "वे (चीनी लोग) साफ सफाई को लेकर बहुत सजग नहीं हैं. शौच के बाद अपने पीछे वाले हिस्से को पानी से नहीं धोते, बल्कि सिर्फ कागज से पोंछते हैं." सन 1393 में नानजिंग के एक इंपीरियल कोर्ट ने टॉयलेट पेपर की 720,000 शीट्स का इस्तेमाल किया, जिसमें हर शीट 2x3 फीट की थी. सम्राट होंगवु और उनके परिवार ने अकेले 15 हजार शीट्स इस्तेमाल कीं जो बहुत ही "मुलायम और सुगंधित किस्म के टॉयलेट पेपर बताए जाते हैं."

Fußball WM Schwarz-Rot-Gold Heuballen
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Ebener

यूरोप में क्या करते थे

मध्ययुगीन यूरोप में लोग शौच के बाद अपने पीछे वाले हिस्से को साफ करने के लिए पुराने या बेकार कपड़े या फिर ऊन के गोले का इस्तेमाल करते थे. एक पेपर मिल की निदेशक जबीने शाख्टनर ने टॉयलेट पेपर और "पिछवाड़े को साफ करने की संस्कृति" पर एक किताब लिखी है. वह कहती हैं कि पुराने समय में लोग कभी कभी काई, पत्तियां, भूसे और यहां तक कि घास का इस्तेमाल भी करते थे.

मौजूदा एस्टोनिया के शहर टारटु में हुई खुदाई में मिले शौचालयों में पुरातत्वविदों को कपड़े को टॉयलेट पेपर के तौर पर इस्तेमाल किए जाने के प्रमाण मिलते हैं. इस कपड़े की गुणवत्ता लोगों की सामाजिक हैसियत के अनुरूप होती थी. अमीर लोग जहां इस काम के लिए मुलायम और मखमली कपड़े इस्तेमाल करते थे, वहीं गरीब लोग साधारण कपड़े से ही काम चलाते थे.

16वीं सदी में इस काम के लिए रद्दी कागज इस्तेमाल करने का चलन शुरू हुआ. समाचार पत्रों के प्रसार और कागज के औद्योगिक उत्पादन के बाद कागज को सैनिटरी उत्पाद की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा. फिर 19वीं सदी में ऐसे पेपर की मांग उठी जिससे सीवेज पाइप ब्लॉक ना हों. और आज यही पेपर दुनिया के एक बड़े की हिस्से की सबसे अहम जरूरतों में से एक हैं.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore