जब चयनकर्ताओं से भिड़ गये दादा
१ दिसम्बर २०१७टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली 2003 में चयनकर्ताओं से बुरी तरह उलझ गये थे. एक आयोजन के दौरान दादा के नाम से मशहूर गांगुली ने खुद यह बात बतायी. असल में 2003-04 के ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए टीम चुनी जा रही थी. चयनकर्ता स्टार स्पिनर अनिल कुंबले को टीम से बाहर रखना चाहते थे. गांगुली ने ऐसा नहीं होने दिया.
उस वाकये को याद करते हुए गांगुली ने कहा, "2003 में ऑस्ट्रेलिया के दौरे से पहले मुझे सेलेक्शन की मीटिंग याद है. मैं तब टीम का कप्तान था और मैं जानता था कि चयनकर्ता अनिल को लेकर उत्साहित नहीं हैं. जैसे ही मैं सेलेक्शन की मीटिंग में पहुंचा, मुझे अहसास हो गया कि चयनकर्ता अनिल को बाहर रखने का मन बना चुके हैं. मैं उनसे आग्रह करता रहा कि वह (अनिल) इतने बड़े मैच विजेता है, उन्होंने भारतीय टीम के लिए बहुत ही अच्छा किया है. उन्हें ऑस्ट्रेलिया में होना चाहिए और चयनकर्ता राजी नहीं हुए."
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भारत के सबसे सफल क्रिकेट कप्तानों में गिने जाने वाले गांगुली चयनकर्ताओं के सामने हार मानने के तैयार नहीं हुए. गांगुली के मुताबिक चयनकर्ता बाएं हाथ का स्पिनर चुनना चाहते थे. उन्हें लग रहा था कि ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज बाएं हाथ के स्पिनर से परेशान होते हैं. मीटिंग में गांगुली के साथ भारतीय टीम के तत्कालीन कोच जॉन राइट भी थे. गांगुली के मुताबिक, "मैंने जॉन से कहा कि अगर आप अनिल को बाहर करेंगे तो शायद वह भारत के लिए फिर कभी न खेलें. मैंने कहा कि मैं सलेक्शन शीट पर तब तक दस्तखत नहीं करुंगा जब तक अनिल टीम में शामिल नहीं होंगे. चयनकर्ता मेरे रुख से झल्ला चुके थे. और उन्होंने कहा कि अगर तुम अच्छा नहीं खेले या टीम अच्छा नहीं खेली या कुंबले ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो सबसे पहले तुम्हारा नंबर आएगा."
चयनकर्ता गांगुली को सीधी चेतावनी दे चुके हैं. लेकिन इसके जवाब में गांगुली ने कहा, "ठीक है, मैं जोखिम लेने के लिए तैयार हूं और हम देखेंगे कि क्या होता है." गांगुली की नजर में अनिल कुंबले बीते 20-25 में भारत के सबसे बड़े मैच विनर थे. 132 टेस्ट मैचों में कुंबले ने 619 विकेट झटके. विकेटों की संख्या के मामले में उनसे आगे सिर्फ शेन वॉर्न (708) और मुथैया मुरलीधरन (800) हैं.
इसके आगे की जिम्मेदारी पूरी टीम और कुंबले पर थी. और टीम व महानतम स्पिनरों में शुमार कुंबले ने चयनकर्ताओं को खिसियाने पर मजबूर कर दिया. भारतीय टीम पहली बार ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज ड्रॉ कराने में सफल रही. टीम ने एक एक टेस्ट जीता, एक हारा और दो मुकाबले ड्रॉ रहे. गाबा की उछाल भरी पिच पर पर खेले गये पहले टेस्ट में तो गांगुली ने 144 रन की पारी खेली. गांगुली कहते हैं, "अनिल का पूरी सीरीज में जबरदस्त प्रदर्शन रहा, वह साल उनके लिए जबरदस्त था. उन्होंने उस साल 80 विकेट चटकाये, ये टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में एक साल में लिये गए सबसे ज्यादा विकेट हैं."
इस वाकये से पता चलता है कि अक्सर टीम को लेकर कप्तान भी किस कदर दवाब में होता है. लेकिन ऐसे दबाव के आगे न झुककर ही बेहतरीन टीम भी बनती हैं. गांगुली इसका सटीक उदाहरण हैं. उनकी कप्तानी में भारतीय टीम को वीरेंद्र सहवाग और युवराज सिंह जैसे विस्फोटक बल्लेबाज मिले तो इरफान पठान जैसा हरफनमौला ऑलराउंडर. गांगुली की ही कप्तानी में हरभजन सिंह भी टीम में आये. 1983 के बाद सौरव गांगुली के नेतृत्व में टीम 2003 के विश्व कप फाइनल में पहुंची.
(कहां जन्मे ये खेल?)